Wednesday, June 20, 2018

मानवीय व सामाजिक जिम्मेदारी में छिपा है जीवन का सच्चा अर्थ (Human and Social Responsibility Hidden in the true meaning of life..)



जीवन अंधेरे का दूसरा नाम है, आजकल इसे साबित करने की मानो होड़ लगी है। जिसे देखो, वही इस नकारात्मक प्रवृत्ति को अपने-अपने तर्कों के साथ प्रतियोगिता में तब्दील कर रहा है। लेकिन विसंगति यह है कि अगर सचमुच अंधेरा है तो इसे लाने की जिम्मेदारी खुद लेने के लिए कोई भी तैयार नहीं है। हर कोई दूसरे को दोषी बता रहा है। मेरे पास भी ऐसे लोग बड़ी संख्या में आते हैं जो इस माहौल को कोसते हुए थकते नहीं हैं। उनसे पूछो कि इस अंधेरे को हटाने के लिए आप क्या कर रहे हैं तो खुद को लाचार बताते हुए सारी जिम्मेदारी सरकार और प्रशासन पर डाल देते हैं। 

यह समस्याओं से पलायन की दुखद स्थिति है। अफवाहों के आधार पर किसी की हत्या कर देना, किसी के साथ कुछ गलत हो रहा हो तो उससे कन्नी काट लेना, कोई घायल होकर सड़क पर जान बचाने की गुहार लगा रहा हो तो उसकी मदद करने के बजाए विडियो बनाने में लग जाना, आखिर क्या साबित करता है? या तो हमारी संवेदना मर चुकी है या हम गैर-जिम्मेदार हो चुके हैं। जो काम हमारे दायरे में है, उसके प्रति लापरवाही अमानवीय दृष्टि है जो समाज को खतरनाक अंजाम की ओर ले जाती है। हम भूल जा रहे हैं कि अपने आस-पास जो कुछ भी है और जैसे है, उसे संवारना और सुरक्षा देना हमारा भी सामाजिक तथा मानवीय दायित्व है। जिस दिन इस दृष्टि से अपने आस-पास को देखना शुरू कर देंगे, हमें भी अपने जीवन का अर्थ मिलना शुरू हो जाएगा। 

संत नामदेव के माता-पिता ने उन्हें पेड़ की छाल लाने के लिए कहा। उन्होंने पेड़ के तने पर कुल्हाडी मारने के बजाए अपने पांव पर ही मार ली। पूछने पर जवाब दिया कि कुल्हाड़ी की मार पड़ने पर पेड़ को कितना कष्ट होता होगा, यह जानने के लिए मैंने अपने पांव पर कुल्हाड़ी मार ली। इसका सीधा अर्थ है कि अस्तित्व का प्रवाह सर्वत्र एक है। सचेतन और अचेतन, अपना और पराया जैसा भी यहां कुछ नहीं है। किसी को ‘पर’ मानना, एक अलगाव का भाव है जो आज सारी समस्याएं पैदा कर रहा है। 

हमारी मुश्किल यह है कि हम शास्त्रों और संतों से सकारात्मक दृष्टि लेने की जगह उनके गाथा गायन को पुण्य-लाभ का माध्यम मान रहे हैं। व्यक्तित्व और विचार के इस भटकाव के कारण जो आज समाज और दुनिया का नुकसान हो रहा है, उसे रोकने के लिए ‘मनुष्य’ बनने की कोशिश करनी होगी। लेकिन उसके भी पहले अपनी बुद्धि, विवेक और अपने मन को जागृत करना होगा। यह सन्मार्ग पर जाने का सुगम रास्ता है। अनुभव करके देखें कि जैसे ही आपके अंदर सकारात्मक और निर्दोष दृष्टि पैदा होगी, आप इस सृष्टि जीवन की भव्यता का अनुभव करना प्रारंभ कर देंगे। 

जय गुरूजी. 


In English:




(Life is another name for the dark, nowadays it is like competing to prove it. See who is transforming this negative tendency into competition with his own arguments. But the discrepancy is that if it is really dark then no one is ready to take responsibility for it. Everyone is blaming others. I also have a large number of people who do not get tired of cursing this environment. Ask them what you are doing to remove this darkness and then put yourself on the government and administration, telling them to be helpless.

It is the tragic situation of migrations with problems. To kill someone on the basis of rumors, if someone is going wrong with someone, then cutting him off, if someone is wounded and is trying to save lives on the road, instead of helping him, instead of helping to make a video, Prove? Either our condolences have died or we have been irresponsible. The work that is in our purview is a negligent, inhuman sight towards society which leads to a dangerous end to society. We are forgetting that it is our social and humanitarian obligation to protect and protect the things around us and the like. On the day when this vision will start to look around, we will also get the meaning of our life.

The parents of Saint Namdeo asked them to bring the tree bark. Instead of hitting the tree's ax, he hit his feet on his feet. On the question I asked, 'How much trouble will the tree suffer if you hit the ax, I hit the ax on my feet to know it. It has a direct meaning that the flow of existence is universally the same. Subliminal and unconscious, there is nothing here like ours and ours. Recognizing someone as "over", is the sense of separation that is causing all the problems today.

Our difficulty is that instead of taking positive views from the scriptures and saints, they are assuming their saga singing as the means of virtue. Due to this disorientation of personality and thought which is causing loss to society and the world today, it will have to try to become 'human' to stop it. But before that, you have to awaken your intellect, discretion and your mind. This is the easiest way to go on the road. Experience and experience that as soon as you have a positive and innocent vision, you will start experiencing the magnificence of this universe.)

Jai Guruji

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