यह उन दिनों की बात है जब मशहूर तबला वादक पंडित किशन महाराज जी से अनेक लड़के तबला
सीखने आते थे। कुछ तो उनके घर पर रहकर सीखते थे। एक बार कुछ नए लड़के आए जिन्हें
उनके घर पर ही रहकर शिक्षा लेनी थी। किशन महाराज ने उन्हें रोज घर के नज़दीक पार्क
में बढ़ी हुई घास तोड़ने और बिना पीछे देखे घास को पीछे की ओर फेंकने का आदेश दिया।
वे शिष्य रोज सुबह पार्क में जाते और घंटा डेढ़ घंटा घास तोड़कर अपने पीछे की ओर
फेंकते। लगभग महीना भर ऐसा ही चलता रहा। कुछ शिष्यों के मन में सवाल भी उठे कि तबले
का रियाज कराने के बजाय उनसे घास क्यों तुड़वाई जा रही है। लेकिन किसी ने कोई सवाल
नहीं किया। फिर एक दिन किशन जी ने उन सबको बुलाया और पूछा कि मैं तुम्हें रोज पार्क
में घास तोड़ने भेजता हूं। क्या तुम जानते हो मैं ऐसा क्यों करता हूं/ वे बोले,
‘नहीं गुरुजी। हम तो बस आपके आदेश का पालन करते हैं और आपके कहे अनुसार ही घंटा डेढ़
घंटा घास तोड़ते हैं और बिना पीछे देखे उसे पीछे की ओर फेंक देते हैं।’ इस पर किशन
महाराज बोले, ‘दरअसल एक तबलावादक के अंदर धैर्य होना बहुत जरूरी है। साथ ही उसकी
बाजुओं का मजबूत होना भी आवश्यक है। तभी वह देर तक तबला वादन कर सकेगा। तबला वादन
करते वक्त कई बार हाथ ऊपर जाता है फिर तबले पर आता है ऐसे में जब तुम लोग अगर हाथों
का अभ्यास नहीं करोगे तो देर तक तबला नहीं बजा सकोगे। घास तोड़ने के बहाने मैं
तुम्हें तबले का अभ्यास ही तो करा रहा था।’ किशन महाराज की यह बात सुनकर वे शिष्य
दंग रह गए।
Jai Guruji
e-mail: birendrathink@gmail.com
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