प्रकृति ने धरती पर मौजूद सभी जीवों को कुछ न कुछ जरूर दिया है। कोई बेहतरीन शिकारी है, कोई दूध दे सकता है, कोई बहुत अच्छी सुगंध बिखेर सकता है तो कोई बहुत सुरीली आवाज निकाल सकता है। मगर इन सब में सबसे ज्यादा खूबियां पाने वाला केवल मनुष्य है। प्रकृति ने इसे अच्छा गाने, बोलने, करने, सोचने आदि की तमाम खूबियां दी हैं। यह अपने हाथों से स्वादिष्ट भोजन बना सकता है। यह दूसरों की जिंदगी आसान कर सकता है। यह न्याय कर सकता है, निर्बल को प्रश्रय दे सकता है। यह प्रकृति की परतों में दबी जीवन की गुत्थियों को सुलझा सकता है।
सबसे ज्यादा पाने के बावजूद मनुष्य नाम का यह जीव सबसे ज्यादा रोता है। इसके रोने की वजह इसे न मिलने वाली चीजें हैं। वह दहाड़ें मार-मार कर उन चीजों के लिए रोता है जो उसके जैसे दूसरे मनुष्य ने बनाई है। वह प्रकृति को उन चीजों के लिए कोसता है जिनका निर्माण उसके जैसे ही मनुष्य ने किया है। अगर वह मनुष्य रोता रहेगा तो यकीन जानो रोता ही रहेगा क्योंकि उसके पास सब कुछ है, बस निर्माण का ज्ञान नहीं है। ऐसा नहीं है कि निर्माण का ज्ञान प्रकृति ने केवल कुछ ही मनुष्य को दिया है। यह सूत्र सबको बराबर मिला है। मगर यह मनुष्य ही है जो तय करता है कि निर्माण का सारा ज्ञान वह निर्माण में लगाता है या विध्वंस में। या फिर इसे लिए वह सुप्तावस्था में बैठा रहता है।
एक मनुष्य का मस्तिष्क उसके लिए सब कुछ होता है। इस मष्तिष्क में प्रकृति ने असीम संभावनाओं को बांध रखा है। यदि मनुष्य अपने मस्तिष्क का उपयोग करके उसके भीतर जाएगा तो निर्माण की पहली गिरह खुलेगी। वह जितना इसके भीतर जाता जाएगा, उतना मार्ग आसान बनता जाएगा। यदि मनुष्य अपने मस्तिष्क को उन चीजों में लगाएगा जो दूसरों ने किया है तो वह निर्माता नहीं बन पाएगा, केवल उपभोक्ता ही रह जाएगा। उपभोक्ता के हाथ में केवल वह आता है जिसे बाजार ने पकड़ाया है। बाजार की नजर में नफा-नुकसान अहम है, जबकि मनुष्य के लिए यह मायने नहीं रखता।
एक बार किसी संत से किसी इंसान ने कहा कि मनुष्य सब जीवों में सर्वश्रेष्ठ है। तब संत ने कहा- नहीं, सभी मनुष्य श्रेष्ठ नहीं हैं। केवल वही श्रेष्ठ हैं, जिन्होंने मानव जीवन को दिशा दी है। जिन्होंने दूसरे जीवों की भी चिंता की है, प्रकृति के समानता के नियम का पालन किया है। सर्वश्रेष्ठ वही हैं, जिनमें प्रेम है, जो तोड़ने से दूर जोड़ने में लगा है। जिसके हृदय में दूसरे मनुष्य के लिए उतनी ही जगह है जितनी खुद के लिए। जो जीव-जीव में भिन्नता करे और उनसे नफरत करे, वह मनुष्य हो ही नहीं सकता। जो प्रेम करुणा के साथ निर्माण मार्ग पर बढ़ता जाए, केवल वही मनुष्य है, वही श्रेष्ठ है।
जय गुरूजी.
In English:
(Nature has given something to all the creatures on earth. There is a great hunter, someone can give milk, a very nice fragrance can scatter, so someone can pull a lot of symphony. But the only person to get the most features in all of these is man. Nature has given it all the strengths of good songs, speaking, doing, thinking etc. It can make delicious food with your hands. It can make life easier for others. It can do justice, it can promote weakness. It can solve the clutches of life buried in nature's layers.
In spite of getting the most, this creature, named Man, cries the most. The reasons for this crying are not the things that can be found. He kills the roar and cries for those things that other humans like him have made. He casts nature to things that humans have created as they have been. If that person continues to cry, then you will be sure to cry, because he has everything, not just knowledge of creation. It is not that the knowledge of creation has given nature only to a few humans. This formula has got the equivalent of all. But it is the man who decides that all the knowledge of creation is in the form of creation or in vandalism. Or for him, he is sitting in a state of sleep.
A human brain has everything for him. In this mind, nature has tied up immense possibilities. If man goes into it using his brain, then the first part of construction will open. The more you go through it, the easier it will be. If a person will put his mind in things that others have done then he will not be able to become a creator, only the consumer will remain. In the hands of the consumer, only the market is caught. Profit and loss in the eyes of the market is important, while it does not matter to humans.
Once a person said to any saint that man is the best among all creatures. Then the saint said - No, not all humans are superior. Only those who have given direction to human life are the best ones. Those who have also worried about other creatures, have followed the rule of equality of nature. The best is the one who has love, which has been involved in connecting away from breaking. In the heart of which is the same place for other people as much as for themselves. The person who differentiates between the organism and hates them, can not be a human being. The one who grows on the path of love, along with compassion, is the only person, that is the best.)
Jai Guruji
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