हमारी संस्कृति में ही नहीं, सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन में भी अभिवादन का महत्त्वपूर्ण स्थान है। यह हमारी दिनचर्या का एक प्रमुख अंग भी है। अभिवादन की भाषा और स्वरूप चाहे जैसा हो, वह होता कैसे है, यह अधिक महत्त्वपूर्ण है। हम अभिवादन में भावना को महत्त्व देते हैं या यह महज शाब्दिक औपचारिकता होता है/ हमारा अभिवादन मात्र वाचिक होता है या मनसा, वाचा, कर्मणा तीनों स्तरों पर घटित होता है/ हम किसी का अभिवादन करें या सम्मान, यह मन के स्तर पर घटित होना अनिवार्य है। तभी इसका लाभ हमें मिल पाता है। नहीं तो यह शब्दों का आडंबर भर बनकर रह जाता है। ऐसे में यह सौहार्द के बजाय वैमनस्य पैदा करने लगता है। अभिवादन के औपचारिक शब्दों के बाद हम पूछते हैं कि क्या हाल-चाल है/ कैसे मिजाज हैं/ उत्तर मिलता है- मैं ठीक हूं। आप कैसे हैं/ प्रत्युत्तर में कहा जाता है कि मैं भी ठीक हूं। आपकी कृपा है। औपचारिक वाक्यों का आदान-प्रदान स्वाभाविक रूप से होता है लेकिन कुछ लोग कमाल कर देते हैं। कैसे हो, का उत्तर मिलता है कि बस ठीक ही हूं या किसी तरह कट रही है। हालचाल पूछते ही दुनिया भर की समस्याओं का रोना रोना शुरू कर
देंगे। इससे पता चलता है कि उनके जीवन में कोई आनंद शेष नहीं है। उनका दृष्टिकोण नकारात्मक है।
कई लोग बावजूद अनेक समस्याओं के चेहरे पर मुस्कराहट लाकर कहेंगे कि मैं बहुत अच्छा हूं, मैं बिलकुल ठीक हूं या मजे में हूं। ये सिर्फ उसके मुख से निकले शब्द नहीं, उसके जीवन की सचाई दर्शाते हैं। इन शब्दों के द्वारा वह वर्तमान में अपने जीवन के लिए इन सकारात्मक और आशावादी स्थितियों का चुनाव कर रहा होता है। दोनों ही प्रकार के लोगों की स्थिति कमोबेश एक जैसी ही होती है। अंतर होता है दृष्टिकोण का। कुछ लोग बेहद सामान्य स्थितियों में भी उत्साहपूर्ण और आशावादी बने रहते हैं। वे सामान्य रूप से अभिवादन और उसके बाद के भावों को व्यक्त करते हैं। उनके शब्द और भाव ही उनके जीवन की असलियत बन जाते हैं। जैसे हमारे भाव होते हैं, वैसा ही हमारा जीवन होता है। हमारे विचार, भाव, शब्द अथवा सपने हमारे ब्रेन सेल्स या न्यूरोंस को सक्रिय कर देते हैं। हमारे ब्रेन सेल्स अथवा न्यूरोंस सक्रिय होकर हमें अपेक्षित दिशा में कार्य करने के लिए इतना प्रेरित करते हैं कि हम अपने सपनों को पूरा किए बिना बैठ ही नहीं सकते। इसलिए जीवन में अच्छा स्वास्थ्य, सक्रियता और सफलता पाने के लिए आपसी बातचीत में सकारात्मक भावों को दर्शाने वाले शब्दों का प्रयोग ठीक रहता है।
Jai guruji
No comments:
Post a Comment