Thursday, May 7, 2015

हमारे अंदर महा-संग्राम हरदम चलता रहता है. ..(In our great struggle always continues. ..)


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आखिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि महान धनुर्धर और अजेय अर्जुन के हाथ कांपने लगे। उनके पैरों तले की जमीन ही खिसकने लगी। क्या उन्हें पहले से यह नहीं मालूम था कि उन्हें अपने ही अनेक रिश्तेदारों से युद्ध करना होगा? कहां गई उनकी सारी शक्ति, ऊर्जा और बल, क्यों हो गए वे किंकर्त्तव्यविमूढ़? अर्जुन के सामने घोर अंधकार छा गया मोह-माया का। उन्हें कुछ भी सूझ नहीं रहा था, कौन सा रास्ता अपनाएं, दिखाई नहीं दे रहा था। इसलिए वे युद्ध का कर्त्तव्य भी भूल चुके थे। जब श्रीकृष्ण ने देखा कि अर्जुन गहन अंधकार के गर्त में खोकर कर्त्तव्यच्युत हो रहे हैं तब श्रीकृष्ण ने उन्हें जो उपदेश दिया वह गीता के रूप में हमें मिला है। 

अर्जुन आत्मशक्ति खो चुके थे, भय व संशय ने उन्हें बुरी तरह से जकड़ लिया, तब श्रीकृष्ण ने समझाया। वे बातें अब हमें भी समझनी होंगी। कृष्ण ने अर्जुन को नए हथियार नहीं दिए थे, आत्मशक्ति को जगाने के लिए ‘आत्मज्ञान’ का उपदेश दिया। जब अर्जुन ने श्रीकृष्ण का विराट स्वरूप देखा, तब उनमें आत्मशक्ति का स्फुरण हुआ और वह युद्ध के लिए तत्पर हो गए। हमारे अंदर भी एक घमासान युद्ध हरदम चलता रहता है। यह महाभारत से भी बड़ा है। इस युद्ध में हम अकेले हैं। यदि जीतते हैं तो हम ही और हारेंगे तो भी हम ही। 

इस युद्ध में हमारे अपने ही शत्रु हैं काम, क्रोध, मद, लोभ, अज्ञानता आदि। हमें इनसे इतना मोह हो गया है। हम इन्हें मारना नहीं चाहते। सचमुच हम विस्मित हो जाते हैं और कुछ भी सूझता नहीं है कि क्या करें और क्या न करें। अर्जुन की भांति कभी-कभी तो धनुष छोड़कर बैठ जाने को तत्पर हो जाते हैं। संसार से ऊबकर, संसार के, परिवार के कर्त्तव्यों से विमुख होकर कहीं बहुत दूर चले जाने को दिल करता है। इससे गहरा अंधकार भला क्या होगा? ऐसी परिस्थिति में हमें श्रीकृष्ण जैसा मार्गदर्शक चाहिए। 

ऐसा मार्गदर्शक जो हमारी राह प्रकाशित कर सके। श्रीकृष्ण चौथे अध्याय के चौंतीसवें श्लोक में स्वयं कह रहे हैं- ‘तत्वदर्शी महापुरुष की शरण में जाकर दंडवत प्रणाम कर निष्कपट भाव से तत्वज्ञान के बारे में पूछना चाहिए। इससे प्रसन्न होकर वे तत्वज्ञान कराएंगे। क्या हमने सच्ची लगन व सच्ची प्यास को लेकर ऐसे तत्वज्ञानी महापुरुष की खोज की है? नहीं, राह में कोई भी गुरु मिला उसे गुरु बना लिया। क्योंकि आजकल गुरुओं की कमी नहीं है और गुरु बनाना चाहिए, ऐसा धर्मशास्त्र कहते हैं, इसलिए लोग गुरु बना लेते हैं। लेकिन ऐसे काम नहीं चलेगा। श्रीकृष्ण जैसे सच्चे तत्वज्ञानी की खोज करनी चाहिए जो ज्ञान द्वारा जीवन की राह रोशन कर दे और हमें सच्चे मार्ग पर चलने की हमेशा प्रेरणा देते रहे.
जय गुरुजी.  

In English:


(After all happened so suddenly that the great archer Arjun invincible hand and began to tremble. The ground from under their feet soon began sliding. What they did not know beforehand that it would make war with them, several relatives? Where it all their strength, energy and force, perplexed why have they? There was thick darkness in front of Arjun Illusion. He did not sense anything, which take way, was not visible. So they had forgotten the duty of war. When Krishna saw that Arjuna dark pit of delinquency are losing the Gita Krishna as he preached to them who got us.

Arjun Self-powered had lost, badly gripped by fear and doubt, then Krishna explained. Now we also have to understand those things. Krishna to Arjuna were not given new weapons, Self-powered awaken 'Enlightenment' preached. When Arjun Krishna saw the immensity of nature, then flutter of Self-powered them and he was ready for war. We always moves in a pitched battle. It's bigger than the Mahabharata. In this war we are alone. If we win it and if we lose the same.

We are our own enemy in this war, anger, pride, greed, ignorance, etc.. They got us so much fascination. We do not want to kill them. We are really surprised and finds what and what not. Like Arjuna, except sometimes bow down to move forward again. Bored from the world of the world, alienated from family duties and the heart has to go somewhere far away. The deep darkness, what will happen? In such a situation should be guiding us as Krishna.

It could publish guides our path. In the fourth chapter, verses Verse-34 are- Krishna himself saying, 'Go and worship, worship in the shelter Guiding element colossus honest philosophy should ask about. This philosophy will delight they passed. With true passion and true thirst we have discovered that Self-powered colossus? No way did any master made him a master. Because today is the shortage of teachers and the master should make theology that says, so people are able to master. But that will not do. Krishna as Self-powered must discover the true way of life by the knowledge to illuminate the true path and we are always encouraging.)
Jai Guruji

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