Thursday, May 7, 2015

ज्ञान की कमी ..(Lack of knowledge ..)

वर्तमान में संसार के लगभग सभी विचारक इस बात को लेकर चिंताग्रस्त हैं कि मनुष्य को दुखों से कैसे मुक्त किया जाए। सभी लोग केवल यही चिंता कर रहे हैं कि मनुष्य दुखों से कैसे मुक्त हो, लेकिन मुक्त होने का प्रयास कोई नहीं कर रहा है। महर्षि पतंजलि जैसे संतों ने जिन मार्गो को बताया उसका भी अनुसरण कोई नहीं कर रहा है। पूरी मनुष्य जाति असहाय बनकर विकारों के सामने हाथ जोड़कर खड़ी है। हमें अब अपनी ओर से इस महाविनाश को रोकने के लिए थोड़ा प्रयास करना है। मेरा मानना है कि प्रत्येक मनुष्य जब अपना कल्याण करने लगेगा तो देश में एक ऐसा समाज बनेगा जिसे सर्वोत्तम  कल्याण कहा जाएगा। ऐसे समाज में कोई दुखी, अशांत और बीमार नहीं होगा, क्योंकि दुख हमारे कारण ही हमें घेरता है। दुखी होने में हमारी कोई सहायता नहीं करता। दुख और सुख दोनों के हम स्वयं कारण होते हैं।  प्रत्येक मनुष्य का मूल स्वरूप स्वस्थ और प्रसन्न रहना है। यही उसकी मूल प्रकृति है, लेकिन हम स्वयं अपने विकारों से ग्रस्त होकर बीमार पड़ जाते हैं या मर जाते हैं। मारने के लिए कोई यमराज डंडा लेकर नहीं आता। हमारा दुष्कर्म ही डंडा लेकर हमें धीरे-धीेरे मारता रहता है। ऐसा नहीं होता तो लोग शराब पीकर या अन्य मादक पदार्थ खाकर कैसे मरते। यमराज को तो ऐसे लोगों का नाम पता भी मालूम नहीं है, लेकिन लोग मरे चले जा रहे हैं। इन सबके पीछे प्रबल कारण है ‘अज्ञान’। अज्ञान का अर्थ है जागरूकता का अभाव। ऐसा संतों का मानना है। जागरूक व्यक्ति अकाल मृत्यु को प्राप्त नहीं होता। भगवान बुद्ध कहते हैं, ‘जो भी करते हो होशपूर्वक करो’। होशपूर्वक किया गया कोई भी काम अनैतिक नहीं होता। इसलिए मनुष्य अगर दुखी है, चिंताग्रस्त और उदास है तो उसका कारण वह स्वयं है। ऐसा इसलिए, क्योंकि किसी ने भी उसे दुखी, चिंताग्रस्त और उदास होने के लिए नहीं कहा है कि वह दुखी होना चाहता है इसलिए वह दुखी है। जो सुखी रहना चाहता है वह सुखी है। बीमार भी वही पड़ता है जो बीमार होना चाहता है। कुछ लोगों को तो बीमार होने पर दूसरों की सहानुभूति पाने में सुख मिलता है। ऐसे लोग अपनी छोटी बीमारी को भी बड़ी बीमारी बताते हैं। ऐसे बहुत से लोग हमारे समाज में हैं, जो अपने छोटे दुखों को बढ़ा-चढ़ाकर दूसरों की सहानुभूति प्राप्त करना चाहते हैं।
जय गुरुजी. 

In English:

(At present almost all the thinkers of the world are worried about the fact that human beings be free from suffering. All people are the only concern that human beings be free from suffering, but no one is trying to be free. Maharishi Patanjali also follow him like the saints whom no one has told Margo. The whole human race as helpless standing with folded hands in front of disorders. We are now a little effort on your part to prevent the cataclysm. I believe that every human being will feel when their best in the country will create a society will be called welfare. In such societies a sad, troubled and sick will not hurt our cause because we are covering. Being miserable does not help us. We ourselves are the cause of both sorrow and happiness. Every Man's basic nature is to stay healthy and happy. That is its basic nature, but we are armed with their own disorders fall sick or die. To kill an angel of death does not come with a stick. Dhiere slowly kills us with our misdeeds is only rung. If it does not, people die after consuming alcohol or other intoxicating substances, how to eat. Yama even know the names of such people is not known, but people are going to go dead. The reason behind all this is egregious, 'ignorance'. Ignorance means lack of awareness. It believes saints. Conscious person would not have died of famine. Buddha says, "Do whatever consciously do. Any work not consciously immoral. If man is so unhappy, anxious and depressed if he has his reasons. That's because someone hurt him, not to be pensive and sad that he wants to be unhappy because he is unhappy. Who wants to be happy, he is happy. Ill have the same wants to be sick. Some people just get sick pleasure in gaining the sympathy of others. Such a disease also explains their short illness. So many people in our society who exaggerated their little sorrows of others want to get sympathy.)
Jai Guruji.


No comments: