दरअसल प्रतिमा का अर्थ होता है 'प्रतिरूप'। इसी भाव को स्पष्ट करने के लिए 'प्रतिकृति', 'प्रतिमा', 'बिम्ब' आदि शब्दों का उपयोग किया जाता है। इनमें बिम्ब का अर्थ होता है 'छाया' यह शब्द परलौकिक प्रतिमाओं के लिए उपयोग में लाया जाता है। हम मंदिर जाते हैं, चर्च जाते हैं, और यहां ईश्वर की प्रतिमा के सामने नतमस्तक होकर अपनी मनोकामना पूरी होने की अभिलाषा करते हैं। लेकिन हम जिस मूर्ति के सामने सजदा करते हैं, कभी सोचा है ? इस मूर्ति (प्रतिमा) का अर्थ क्या है? अमूमन धार्मिक लोगों का जबाव 'न' में ही होगा।
पश्चिम बंगाल में मिट्टी की बनी हुई दुर्गा पूजा के समय कांसे या तांबे के पात्र में शीशा इस प्रकार रखा जाता है। जिससे प्रतिमा की छाया शीशे पर पड़े। उस छाया पर देवी को स्नान कराने के लिए पवित्र जल डाला जाता है। इस प्रकार देवी का स्नान संपन्न होता है। यह कार्य बिम्ब के वास्तविक अर्थ को स्पष्ट कर देता है।
शुक्र ने 'शुक्रनीति' ने लिखा है अपि 'श्रेयस्करं नृणां देवबिम्बमलक्षणम्' कहकर प्रतिमा के लिए बिम्ब शब्द का प्रयोग किया है। प्रतिकृति का अर्थ होता है 'समान आकृति'। पाणिनि ने अपने सूत्र 'इवे प्रतिकृतौ' में साम्य आकृति के लिए प्रतिकृति शब्द का प्रयोग किया है।
प्रतिमा शब्द अत्यंत प्राचीनकाल से बोलचाल की भाषा में लाया जा रहा है। ऋग्वेद में यज्ञ के रूप में प्रतिमा शब्द का प्रयोग हुआ है। श्वेताश्वतर उपनिषद में 'न तस्य प्रतिमा अस्ति, यस्य नाम महदयशः' कहकर यशस्वी की प्रतिमा बनाने का आदेश देता है। पतंजलि ने प्रतिमा के लिए 'अर्चा' शब्द का प्रयोग किया है और कुछ ऐसी प्रतिमाओं का उल्लेख है। जिन्हें मौर्य राजा अत्यधिक स्वर्ण प्राप्ति की इच्छा से बनवाते थे।
प्रतिमा शब्द का उपयोग केवल देवी अर्थ में ही नहीं होता, बल्कि 'महानात्मा', 'यशस्वी' और पूर्वजों की बनी हुई आकृतियों की प्रतिमाएं कहलाती हैं। शुक्रनीति में उल्लेख मिलता है कि, 'प्रतिमा नामक नाटक में भास ने सूर्यवंशी राजाओं की प्रतिमाओं का उल्लेख किया है।' वे सभी प्रतिमाएं आदरणीय अवश्य थीं। लेकिन उनकी रोज पूजा करना आवश्यक नहीं हुआ करता था।
इस तरह आगे के समय में प्रतिमा के लिए 'वपु', 'तनु', 'विग्रह', 'रूप', 'बेर' आदि अनेक शब्दों का उल्लेख होने लगा जो ऐतिहासिक ग्रंथों में दर्ज है।
Jai Guruji
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