
जिस व्यक्ति के नाम पर संसार का सर्वश्रेष्ठ नोबल पुरस्कार दिया जाता है,
वह डाइनामाइट का अविष्कारक था। परमाणु शक्ति की खोज और उसके
शस्त्र-रूप में हिरोशिमा और नागासाकी पर द्वितीय महायुद्ध के दौरान अमेरिका द्वारा प्रयोग विश्व-युद्धों के इतिहास की अभूतपूर्व घटना है। एयर मार्शल टिबेट्स ने ये बम गिराए थे, लेकिन अपराध से पीड़ित उसकी मानवीय संवेदना अनेक बार मानसिक चिकित्सा से गुजरने के बाद भी उसे जन्म-भर पीड़ा देती रही।
शस्त्रों को परिसीमित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय संधियां होती रही हैं, पर उनका उल्लंघन करते हुए देश शस्त्र-निर्माण में लगे हैं। किसी को किसी का विश्वास नहीं है। सबको एक दूसरे से भय है। भय से भयानक शस्त्रों का निर्माण होता जा रहा है और उनसे भय बढ़ता ही जा रहा है। जब तक शस्त्रों का समूल उन्मूलन नहीं हो जाता, मानव जाति को भय से मुक्ति नहीं मिलेगी।
भगवान महावीर ने कहा है- हिंसा से भय, भय से हिंसा, यह एक निरंतर गतिमान अधोगामी चक्र है जिसका कोई अंत नहीं है। जब तक भय है, हिंसा होगी और जब तक हिंसा है, भय होगा। इसने मुझे मारा है, यह मुझे मार रहा है, यह मुझे मारेगा, यह सोचकर वे एक-दूसरे को मारते हैं। यह एक अंतहीन क्रम है। आज सारा विश्व इसकी लपेट में है। इसलिए भगवान महावीर केवल यही नहीं कहते कि शस्त्र मत बनाओ या जो बने हुए शस्त्र हैं उन्हें विसर्जित कर दो। वे यह भी कहते हैं कि आदमी का भीतर से अशस्त्र बनना जरूरी है। एक बार सारे शस्त्र शून्य अंतरिक्ष में विसर्जित कर देने पर भी यदि आदमी भीतर से अशस्त्र नहीं बना तो नए सिरे से और भी अधिक विनाशक शस्त्रों का निर्माण कर डालेगा। अगर भीतर से वह बन चुका है अशस्त्र, तो शस्त्रों का होना या न होना उसके लिए कोई मायने ही नहीं रखता।
Jai Guruji
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