दशहरा एक प्रतीक पर्व है। राम-रावण के युद्ध में जिस ‘रावण’ की कल्पना की गई है, वह
है- मन का विकार और विकाररहित परम पुरुष हैं राम। ये दोनों ही विपरीत अर्थ का बोध
कराते हैं। आध्यात्मिक संदर्भों में रावण का अर्थ है- रुलाने वाला और राम से अर्थ
है- लुभाने वाला। रावण का एक नाम दशानन भी है, अर्थात दस सिर वाला। लेकिन रावण का
सिर तो एक ही है, शेष सिर काम, क्रोध, मद, मोह, मत्सर, लोभ, मन, बुद्धि और अहंकार
की प्रवृत्तिओं के रूप में माने गए हैं।
जो इन दसों प्रकार की पाप
प्रवृत्तियों को हर ले, उसका ही सार्थक नाम है दशहरा। इसे विजयदशमी भी कहते हैं। यह
वर्षा ऋतु की समाप्ति और शरद के आगमन की सूचना देता है। जिस दिन यह मनाया जाता है,
इन दोनों ऋतुओं के इस संधि काल में आश्विन शुक्ला दशमी को तारा उदय होने के समय
विजय नाम का काल होता है। यह काल सर्वकार्य सिद्धिदायक माना जाता है।
दशहरा
अधर्म पर धर्म की विजय के रूप में पूरे देश में अपनी-अपनी परंपराओं के हिसाब से
मनाया जाता है। खेतिहर संस्कृति में आज भी नए जौ के अंकुर शिखा में बांधकर
जय-यात्रा का आरंभ मानते हैं। इस दिन नीलकंठ पक्षी में लोग विषपायी शिव का दर्शन
करना चाहते हैं। इस शुभ अवसर पर क्षत्रिय शस्त्रों की पूजा करते हैं। मान्यता है कि
राम ने रावण पर विजय प्राप्त करने हेतु नवरात्र व्रत का पालन कर दुर्गा सहित
शस्त्र-पूजा भी की थी। ताकि शक्ति की देवी दुर्गा उनकी विजय में सहायक बनें। शिवाजी
ने भी इसी दिन देवी दुर्गा को प्रसन्न करके तलवार प्राप्त की थी। इस दिन सरस्वती
पूजन भी होता है और व्यवसायी हिसाब-किताब की बहियों और माप-तोल के उपकरणों पर कलावा
बांध कर पूजते हैं।
विजयादशमी, किसी हार-जीत से बढ़कर अन्याय के अंत का
सूचक है। रावण पर विजय में राक्षसों का पराभव नहीं हुआ, राक्षसों की सभ्यता भी नष्ट
नहीं हुई। संहार हुआ तो केवल रावण के अहंकार का। अधर्म पर धर्म का यह विजय समर आज
भी जारी है।
हम बाहर से मुखौटा जरूर राम का लगाए रहते हैं, मगर हमारे अंदर
आज भी कई रावण मौजूद हैं। ये हमें कामनाओं की मृगमरीचिका में फंसाकर भोग में
अतृप्ति, ऐश्वर्य के दिखावे, शक्ति और संपत्ति के लिए भय और आतंक का अभियान चलाने
पर मजबूर करते हैं। अपने-परायों की शांति रूपी सीता का हरण कराते रहते हैं। जिस दिन
हम इन पर विजय पा लेंगे, असली विजयोत्सव उसी दिन होगा। आइए, पहले अपने भीतर के रावण
कर वध करें।
Happy Dussehra to all dear and near friends.
Jai Guruji.
Email: birendrathink@gmail.com
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