Tuesday, September 16, 2014

हमारी सकारात्मक नजर से जीवन में आशाएं बनी रहती हैं ...


एक बार दुर्योधन श्रीकृष्ण के पास गया और बोला- ‘भगवन, हम कौरव और पांडव चाहे आपस में बैर-भाव रखते हैं, किंतु पांडवों की तरह हम आपको तो पूरा सम्मान देते हैं। फिर आपकी नजर में तो कोई फर्क नहीं होना चाहिए। आपके लिए जैसे पांडव वैसे कौरव।’ श्रीकृष्ण मुस्कराए। बोले, ‘तुम्हारे सवाल का उत्तर मिलेगा। पहले तुम मेरे प्रश्न का उत्तर खोजकर लाओ। मैंने जो द्वारिका बनाई है, उसमें देश के भले लोग आकर बसे हैं या बुरे/ इसका पता लगाकर आओ।’ दुर्योधन द्वारिका की ओर चल पड़ा। वापस आकर वह श्रीकृष्ण से बोला,‘महाराज, द्वारिका में तो सब बुरे लोग आकर बस गए हैं। मैं पूरी नगरी के लोगों से मिलकर आया हूं। मुझे तो एक भी भला आदमी वहां नहीं दिखा।’ 

श्रीकृष्ण बोले- ‘इतने श्रम और चाव से मैंने इस नगरी का निर्माण किया और भर गए इसमें बुरे लोग। यह तो ठीक नहीं हुआ।’ तभी वहां युधिष्ठिर आ पहुंचे। श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से भी वही प्रश्न पूछा। युधिष्ठिर भी द्वारिका से लौटकर श्रीकृष्ण से मिले। उन्होंने कहा,‘किसने कहा आपसे कि द्वारिका में सब बुरे लोग बस गए हैं। मैं शहर के लोगों से मिलकर आया हूं। मुझे तो एक भी बुरा इंसान नहीं मिला। हर किसी में कोई न कोई अच्छाई मौजूद है।’

यह सुन कर श्रीकृष्ण दुर्योधन की ओर मुड़े। उससे पूछा, ‘दुर्योधन, तुम्हें तो एक भी भला आदमी नहीं मिला, लेकिन युधिष्ठिर को एक भी बुरा आदमी नहीं मिला। इतना अंतर कैसे/ द्वारिका तो एक ही थी, किंतु दोनों की नजरों में फर्क था। तुम्हारी नजर लोगों की बुराइयों पर थी, लेकिन युधिष्ठिर की नजर उनकी अच्छाइयों पर लगी थी। उसी के अनुसार परिणाम मिला। यही तुम्हारे प्रश्न का उत्तर है। तुम्हारा कहना है कि मेरी नजरों में फर्क है। लेकिन सचाई यह है यह फर्क मेरी नजरों में नहीं, तेरी अपनी नजरों में है।

प्रश्न केवल दुर्योधन का नहीं, हम सबका है। सोचना है हमारी नजर कहां पर है/ हर वस्तु के दो पहलू होते हैं- सकारात्मक और नकारात्मक। दिन के बाद रात आती है, रात के बाद दिन। सकारात्मक नजर वाला सोचेगा- कितनी सुंदर है प्रकृति की व्यवस्था, जहां इधर भी दिन उधर भी दिन। यह सकारात्मक नजर है, जिससे जीवन में आशाएं बनी रहती हैं। नकारात्मक नजर में आशाएं दम तोड़ देती हैं। आशावादी दृष्टि दो दिनों के बीच एक रात देखती है। दिन वे ही ही हैं, रात वे ही हैं, किंतु नजर अपनी-अपनी है। 

Jai Guruji

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