आजकल हर कोई अपनी राय जाहिर करने को उतावला है। चाहे वो फेसबुक हो, या कोई
समाचार-पत्र या कोई न्यूज-चैनेल। सभी जगह राय देने और जानने में होड़ लगी हुई है।
आप भी जब मित्र-मंडली में होते हैं, तो दुनिया भर में हो रही चीजों पर घंटों अपनी
विशेषज्ञ-राय देते रहते हैं, भले ही आपको उस विषय का कोई खास ज्ञान न हो। यह बस समय
काटने का एक तरीका बन गया है। लेकिन एक बात तो पक्की है कि आपकी अपनी राय होने का
मतलब है, कि आप चीजों को वैसा अनुभव नहीं करते जैसी वे हैं।
जैसे ही आप कोई
राय मेरे बारे बनाएंगे, आप मुझे वैसा अनुभव नहीं कर सकेंगे जैसा मैं हूं। आपकी राय
आपके लिए रुकावट बन जाएगी। और यही बात जिंदगी की हर चीज पर लागू होती है। जीवन के
बारे में आपकी जितनी ज्यादा राय होगी, आप जीवन को उतना ही कम अनुभव करेंगे। ऐसे में
आप जीवन को जानने की संभावना नष्ट कर देते हैं। जब आप इस जीवन को ही जानने में
सक्षम नहीं हैं, तो फिर जो जीवन से परे है, उसे जानने की संभावना कहां है।
यह पूरी प्रक्रिया, जिसे आप ‘जीवन’ कहते हैं, एक ऊर्जा के रूप में घटित
होती है। आपका व्यक्तित्व, आपकी धारणाओं, आपकी भावनाओं से बना है। जीवन का
व्यक्तित्व से कोई लेना-देना नहीं है। अपने व्यक्तित्व को आपने खुद ही, अनजाने में
गढ़ा है। और अब आप इसके गुलाम बन गए हैं। अनजाने में, आपने जो यह व्यक्तित्व रूपी
राक्षस पैदा किया है, उसे और ताकतवर न बनाएं। मैं आपके व्यक्तित्व को एक राक्षस
कहता हूं। खास तौर पर जब आपका व्यक्तित्व बहुत ही आर्कषक और मनोहारी हो और आपको
उससे गहरा लगाव हो, तो वाकई में यह एक राक्षस जैसा है। यह व्यक्तित्व की सीमाओं के
परे जानने की सारी संभावनाओं को हमेशा के लिए खत्म कर देता है।
हर चीज के
बारे में राय देने वाले अगर वाकई में शांतिपूर्ण होते, तो हम उनकी राय को महत्व दे
सकते थे। लेकिन वे खुद बहुत उलझे हुए हैं, उनकी राय का कोई मतलब नहीं बनता। वे
बुद्धि की वजह से राय जाहिर नहीं करते, बल्कि आदत से मजबूर हैं। वे जो भी देखते
हैं, उसके बारे में उन्हें कुछ न कुछ कहना जरूरी लगता है। इससे बाहर निकलने में
हमें उनकी मदद करनी चाहिए। आपके बारे में दूसरों को राय बनाने का अधिकार है। आप
उन्हें नहीं रोक सकते। लेकिन आप खुद तो हर किसी के बारे में राय बनाने से बच सकते
हैं।
Jai Guruji.
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