करुणा को विकसित करने के लिए सबसे पहले जरूरी है कि जिन वस्तुओं को हम निर्जीव समझते हैं, उन सबके प्रति हमारे मन में प्रेम व आदर की भावना हो। तब वृक्षों, लताओं, पशु-पक्षियों सागर, नदियों, पर्वतों के प्रति भी प्रेम व करुणा जैसे भावों को विकसित करना सुगम हो जाता है।
हर सुबह एक नया सूर्योदय हमारा स्वागत करता है। रात को जब हम सब कुछ भुला कर सो जाते हैं तब हमारे साथ कुछ भी हो सकता है, हमारी मृत्यु भी सम्भव है। क्या हम उस अद्भुत शक्ति का धन्यवाद करते हैं, जिसने हमें अगले दिन सुबह उठ कर पूर्ववत ही सब कार्य करने योग्य बनाये रखा, हमारे देह व मन को सभी प्रतिकूलताओं से बचा कर रखा?
मनुष्य द्वारा प्रेरित युद्ध एवं मृत्यु का कोई अन्त नहीं और न ही ऐसी त्रासदियों के पीड़ितों द्वारा बहाए गए आंसुओं का। ये सब आखिर किसलिए? मनुष्य जाति अनेकों प्रकार से अभिशप्त है। और इन शापों से मुक्ति पाने के लिए कम से कम अब तो, प्रायश्चित करना चाहिए। जिस वजह से हम इस दुनिया में हैं, उसके प्रति कृतज्ञ होना चाहिए।
जय गुरुजी.
In English:
(First to develop compassion for inanimate objects that we consider necessary, in our minds, love and respect to all of them to get a sense. The trees, vines, birds sea, rivers, mountains, love and compassion for such expressions are easy to grow.
We welcome a new sunrise every morning. When we go to sleep at night when all fairness could be anything with us, our death is possible. We thank you for that wonderful power, the next morning we got up and maintain qualified to undo all the work, our body and mind, protected from all adversity?
Inspired by man of war, and not an end in death or tears shed by the victims of such tragedies. Why do all this? Human race is doomed to many forms. To get rid of these Damn (Shapon) least now, must atone. The reason we are in this world, should be grateful to him.)
Jai Guruji
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