एक जगह काम चल रहा था। मजदूर एक खंभा उठा रहे थे। वह काफी भारी था। कई बार प्रयत्न करने पर भी उठाया नहीं जा रहा था। ठेकेदार पास ही खड़ा था। नेपोलियन उधर से निकला, देखा और उसे बड़ा अजीब लगा।
पास जाकर बोला, ‘तुम ऐसे खड़े हो और बेचारे मजदूर इतना श्रम कर रहे हैं। खंभा उठाया नहीं जा रहा है, थोड़ा-सा सहारा दो, इनका काम बन जाएगा।’ वह बोला,‘कौन होते हो तुम सलाह देने वाले! जानते नहीं मैं कौन हूं! मैं ठेकेदार हूं! क्या इन मजदूरों के साथ खंभा उठाऊंगा? ठेकेदारी कौन करेगा? जा, चला जा।’ नेपोलियन ने स्वयं मजदूरों का साथ दिया और खंभा उठ गया। ठेकेदार ने देखा कि बड़ा अजीब आदमी है। राह चलते मजदूरों का साथ दिया। उसने पूछा, ‘अरे, तू कौन है?’ जवाब मिला,‘मुझे नेपोलियन कहते हैं।’ ठेकेदार शरमा गया और उसका सिर जमीन में गड़ गया। नेपोलियन ने जाते-जाते कहा, ‘देखो मेरा यह पता है, यदि फिर काम पड़े तो मुझे फिर बुला लेना।’
आप हजार बार आप उपदेश दें कि श्रम करें, प्रेरणा नहीं जाग सकती और एक घटना मन में प्रेरणा भर देती है। जितने भी महान पुरुष हुए हैं उनकी जीवनियां पढ़ने पर ज्ञात होता है कि उन्होंने आदर्श का उपदेश भर नहीं दिया, उसे जीकर दिखाया। उपदेश वही कारगर और मूल्यवान होता है जो पहले जिया जाता है, फिर कहा जाता है।
दूसरों को विनय और आचार के मार्ग पर वही व्यक्ति ले जा सकता है जो स्वयं विनीत हो, अनाग्रही हो। इसी को कहा जाता है कि दीए से दीया जलता है। लौ से लौ जलती है।
आज के समय की सबसे बड़ी समस्या है व्यक्ति का आग्रह। अपनी बात मनवाने का आग्रह आम आदमी से लेकर संसद तक जुड़ा हुआ है। कोई किसी को सुनना नहीं चाहता, कोई किसी को समझना नहीं चाहता। अहंकार और आग्रह की दीवारें चारों ओर खड़ी हैं। औरों को सहना नहीं सीखा, इसीलिए चाहे व्यक्तिगत हो, सामाजिक हो, राष्ट्रीय हो या अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों का सफर- कहीं पर भी विवाद, संघर्ष, मनमुटाव, वैमनस्य, घृणा, प्रतिशोध की स्थितियां सिर उठा लेती हैं।
जीवन की सफलता का बहुत बड़ा सूत्र है अहं की दीवार को तोड़ देना। दो के मिलन का बड़ा सूत्र है अहं की दीवार को तोड़ देना। अन्यथा पास में बैठे भी इतने दूर होते हैं जैसे तीन का और छह का अंक। पास रहते हैं, किंतु दोनों इतने दूर कि कभी मुंह मिलते ही नहीं। दूर रहने वाले पास हो जाते हैं, जिनके अहं का दीवार टूट जाती है। बहुत निकट रहने वाले दूर हो जाते हैं, जिनके निकट अहंकार की दीवार खड़ी रहती है। वही सीख सकता है जो अहंकार की दीवार तोड़ देता है। उसी को विनय उपलब्ध होता है, उसी की सद्गति होती है। जरूरत है नजरिया बदलने की।
जय गुरूजी.
In English:
(The place was going to work. Workers were lifting a pole. He was too heavy. No efforts were being picked on at times. The contractor was standing nearby. Napoleon went thence, he saw and felt very strange.
Go and said, "You stand there and so are labour poor laborer. Pole being raised, little support us, their work will become. "He said, 'Who are you to give advice! Do not know who I am! I am a contractor! These workers will take up the pole? Contractor who will? Going, going gone. 'Napoleon sided with the workers themselves and strut up. Contractor saw that the strange man. Sided with the workers on the move. He asked, "Hey, who are you?" Was the reply, "I said Napoleon." The contractor was blushing and her head was covered with earth. Going Napoleon said, 'Look, I know it, you'll have to work again, call me again. "
Thousand times, do you preach that you labour, can not wake the motivation and spirit into an event fills. All the great men are reading their biographies would have known that he did not stop preaching filled, shown live it. Preaching is the first carried out valuable work and then called.
Others modestly and the person can carry on the path of ethics itself is unobtrusive, be Anagrhi. This is said to have the flame of a lamp. Flame is the flame.
The biggest problem today is the person sought. Consent is attached to Parliament to ask the common man. Do not listen to anyone, no one wants to understand. Standing around the walls of arrogance and insistence. Others did not endure, so personal and social way, national or international issues Sfr- anywhere dispute, conflict, estrangement, enmity, hatred, vengeance, then pick up the positions of the head.
Huge source of career success is to break the wall of ego. Two major threads of the union to break the wall of ego. Sitting too close or too remote for the three and six of the points. Live near, but so far that the two never meet ever face. I tend to be shy, which breaks down the wall of ego. Are living far too close, which is near a wall of arrogance. He could learn the ego wall breaks. Vinay is available to him, is his salvation. Attitude needs to change.)
Jai Guruji.
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