Tuesday, July 5, 2016

जीवन की सफलता का मूल्यवान सूत्र है- मुंह में राम, हाथ में काम ..(Valuable life success Sources in-the mouth Ram, the task at hand..)


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पौराणिक कथा के अनुसार भृगु ने अपने पिता वरुण से कहा, ‘भगवन! मैं ब्रह्मज्ञान पाना चाहता हूं। अतः आप मुझे कोई सरल रास्ता सुझाएं।’ पिता ने उसे तपोमार्ग का निर्देश दिया। कठिन तपस्या की समाप्ति पर उसने पिता से कहा - पिताश्री, अन्न ही ब्रह्म है।’ पिता ने कहा, ‘पुत्र! अभी तुम अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंचे हो। दोबारा तप करो।’ दूसरी बार तप की समाप्ति कर उसने कहा, ‘प्राण ही ब्रह्म है।’ 

इस बार के उत्तर से भी पिता संतुष्ट नहीं हुए। वरुण पुनः कठोर तपस्या में संलग्न हो गया। तप में उसे अनुभव हुआ कि ‘मन ही ब्रह्म है।’ इस उत्तर से भी पिता संतुष्ट नहीं हुए। पुनः तप करने पर ‘विज्ञान ही ब्रह्म है’, ऐसी अवधारणा पुष्ट हुई। पिता ने पुत्र को कहा, ‘अभी मंजिल प्राप्त नहीं हुई है, पुनः तप करो।’ इस बार तप की संपन्नता पर वरुण का मुख अलौकिक तेज से दमक रहा था। उसने कहा- ‘पिताश्री! आनंद ही ब्रह्म है।’ पिता ने पुत्र को गले लगाते हुए कहा,‘बेटा! तुम्हारी खोज पूरी हुई। आनंद का अर्थ है- अध्यात्म की प्राप्ति।’

मनुष्य जीवन वह दुर्लभ क्षण है, जिसमें हम जो चाहें पा सकते हैं। जो चाहें कर सकते हैं। यह वह अवस्था है, जहां से हम अपने जीवन को सही समझ दे सकते हैं, सफल और सार्थक कर सकते हैं। उपयोगी जीवन जीने वालों ने सदा अपने वर्तमान को आनंदमय बनाया है। 

शक्ति का सदुपयोग करने वालों ने वर्तमान को दमदार और भविष्य को शानदार बनाया है। मगर शक्ति और समय का दुरुपयोग करने वाला न तो वर्तमान में सुख से जी सकता है और न अपने भविष्य को चमकदार बना सकता है। जीवन की सफलता का एक बड़ा मूल्यवान सूत्र है - मुंह में राम, हाथ में काम। कर्म का सिद्धांत बड़ा सीधा-सादा है। जैसा करोगे, वैसा फल पाओगे। इसका हिसाब इस जन्म में ही हो जाता है।

अच्छे काम करने वाला हमेशा फूल की तरह हल्का और खिला रहता है। आदमी जब राग-द्वेष की अंतर में लगी गांठें खोल देता है और नई गांठें बंधने नहीं देता तो उसे इस धरा पर ही मोक्ष मिल जाता है। लेकिन ऐसा करना उतना सरल नहीं है।

खलील जिब्रान कहते हैं कि ‘तुम भले हो जब तुम अपने लक्ष्य की ओर दृढ़ता और साहसपूर्ण पैर बढ़ाते हो। लेकिन तब भी तुम बुरे नहीं हो जब तुम उस तरफ लंगड़ाते-लंगड़ाते जाते हो। लंगड़ाते हुए जाने वाले लोग भी पीछे की तरफ नहीं जाते।’ लक्ष्य तक पहुंचने के लिए दृढ़ निष्ठा ही नहीं, धैर्य और सहनशीलता भी अनिवार्य है। 

स्वामी विवेकानंद दृढ़ आत्मविश्वास के साथ कहते हैं, ‘जो विलासमय जीवन की इच्छा रखते हुए आत्मानुभूति की चाह रखता है, वह उस मूर्ख के समान है, जिसने नदी पार करने के लिए, एक मगर को लट्ठा समझकर पकड़ लिया।’
जय गुरूजी. 

In English:

(According to legend, his father Bhrigu Varun said, "Lord! I want to receive supreme. So you suggest me a simple way. "Father Tpomarg directed. He said at the end of tough austerity father - father, food is Brahman. "The father said," Son! Right now you have not reached your goal. Again, do penance. "By the end of the second heat he said," life is Brahman. "

This time the father was not satisfied with the reply. Varun was re-engage in austerity. Her experience in meditation that the mind is Brahman. "The father was not satisfied with this answer. To meditate again on the 'science is brahman', a concept reinforced. Father, son, "said the floor has not yet, do penance again." This time the tenacity of the wealth of the glory shining on Varun's face was uncanny. He said, 'father! Brahman is bliss. 'Father hugging son said,' Son! Your search was completed. Means the attainment of spiritual bliss. "

Human life is a rare moment in which we can find whatever you want. You can do whatever you wish. This is the stage where we can get the right to life, are successful and meaningful. The useful life of their existing ones ever made delightful.

Those who utilize the power of the strong current and future wonderfully made. However, abuse of power and time that neither could live happily in the present and can not make their future bright. life

Is a very valuable source of success - in the mouth Ram, the task at hand. The principle is simple karma big. As you, so will the fruit. This account is only in this life.

Good work habits and feeding light is always like flowers. The man involved in the passion-hatred of difference and opens new bales bales binding does not get her own salvation on earth. But it is not as straightforward.

Khalil Gibran says that "you toward your goals even when you are increasing strongly and plucked feet. But then you're not evil when you go on that side dot-dot. People who are not even on the back limping. "The goal is not only to reach the strong loyalty, patience and tolerance is essential.

Swami Vivekananda says with firm confidence, "the desire for self-realization, which maintains the desired luxurious life, he is similar to the foolish, to cross the river, but to a stilt caught thinking.")
Jai Guruji.

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