Sunday, April 3, 2016

मनुष्य होने का भाव आते ही संसार बचाने की सोच जन्म लेगी ..(The sense of being a man come Thinking to save the world will be born.)


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कहते हैं, एक बार भारत के तीन ताकतवर नेता स्वर्ग के अधिपति के बुलावे पर उनसे मिलने पहुंचे। अधिपति ने एक से बढ़ कर एक एशो-आराम की उनकी सेवा में पेश कीं। उनका जयकारे के साथ दरबार में स्वागत किया गया। अधिपति ने कहा,‘आप तीनों देश के ताकतवर नेता हैं, लोगों को आपसे बड़ी आशाएं हैं। हम चाहते हैं कि आप सब आम लोगों की कसौटी पर खरे उतरें। इसलिए हम आप तीनों को एक-एक वरदान देना चाहते हैं, जो इच्छा हो मांग लें।’ मिस्टर ‘ए’ ने कहा, ऐसा वरदान दें कि ‘बी’ भिखमंगा हो जाए ताकि हमारे सामने वह अस्तित्वहीन नजर आए। मिस्टर ‘बी’ ने मांगा कि देश से ‘ए’ का नामोनिशान मिट जाए ताकि हमारा विरोध ही समाप्त हो जाए। अंत में मिस्टर ‘सी’ से मांगने के लिए कहा गया। उसने हंसते हुए कहा,‘माफ करें, मेरी अपनी कोई मांग नहीं है। बस इतना ही चाहता हूं कि इन दोनों की मांगों को तुरंत पूरा कर दिया जाए।’ 

यह प्रसंग पूरी तरह काल्पनिक है। लेकिन इसमें निहित अर्थ बिलकुल सही है। आज के समय की मानसिकता की सटीक झलक है इसमें। कोई भी अपने लिए नहीं, दूसरे को बर्बाद करने के लिए जी रहा है। हर कोई एक-दूसरे को निगल जाना चाहता है। एक विचार दूसरे विचार को, एक समुदाय दूसरे समुदाय को, एक मजहब दूसरे मजहब को फूटी आंखों से भी देखना नहीं चाहते। मंच पर तो बड़े जोरों से हाथ मिलाए जाते हैं, लेकिन नीचे उतरते ही जानी दुश्मन की शक्ल अख्तियार कर लेते हैं। इनमें तीसरा पक्ष हमेशा मुंह बाए खड़ा रहता है कि कब छींका टूटे और वह लपक ले।

इसी रुग्ण मानसिकता और फायदा-प्रधान संस्कृति से अराजकता का जन्म हुआ है। इसी से उन्माद बढ़ा है। छोटी से छोटी बात मनवाने और खुद को थोपने के लिए किसी भी सीमा तक जाने में परहेज नहीं हो रहा है, भले समाज और देश का कितना भी नुकसान हो जाए। हर रोज यहां ऐसे मुद्दे की तलाश की जा रही है, जो दूसरों को नीचा दिखाने के काम आ सके। हम नैतिक तौर पर मशीनी सभ्यता से भी बदतर हालात में पहुंच गए हैं। 

जब हम सजातीय मानव के प्रति निर्मम और निर्दय होने में कोई झिझक नहीं महसूस करते, तो फिर पशु-पक्षी, पेड़-पौधों आदि के प्रति करुणा और संवेदना का प्रश्न ही कहां रह जाता है।

कोई बताए कि जिस माहौल को हम आज बैठे-बिठाए बुलावा दे रहे हैं, क्या वह महाविनाश को आमंत्रण नहीं है? हमें मनुष्यता के विनाश की नहीं, अपने आग्रहों को जीवित रखने की फिक्र है। सवाल है, जब इंसान ही नहीं बचेगा तो बाकी के रहने न रहने से फिर क्या होगा? जिस दिन हम में मनुष्य होने का भाव आ जाएगा, उसी दिन संसार को बचाने की सोच जन्म ले लेगी। 
जय गुरूजी. 

In English:

(Say, once India's three-strong leader at the invitation of the governor of heaven came to meet them. An increase from the comfort of a governor Aso presented in their service. He was welcomed at the court with Jaykare. Governor said, "You are a strong leader of the three countries, people have great hopes on you. We want you to get off all the vagaries of ordinary people. So we want to give you three one boon, ask for whatever you wish. "Mr. A said that the gift of" B "in order to be beggar in front of us, he appeared non-existent. Mr. B asked that the country "A" to be erased so that no trace of our protest should be eliminated. Finally Mr. C was asked to seek out. She said with a laugh, "Sorry, I have no demands. That's all I want is to meet the immediate demands of the two. "

This passage is entirely fictional. But the underlying meaning is right. This is the exact reflection of the mentality of the times. No one, not to waste each other's lives. Everyone wants to swallow each other. One idea to another idea, one community to another community, a religion like other religions do not see the damaged eye. Then shook hands on stage are the big swing, but walking down the snowballs into bitter enemies take. These third-party stands, ready always face when he sneezed broken and take the leap.

The morbid mentality and benefit-oriented culture was born from chaos. This has increased the frenzy. The smallest thing and convince himself to go to any length to impose abstinence is not even much of a loss to society and the country. Being here everyday looking for an issue, which could serve to embarrass others. Machine civilization morally worse than the situation we have reached.

Ruthless and cruel towards homogeneous human being when we do not feel any hesitation, then the animals, plants, etc. where there is the question of compassion and sympathy.

That's no telling platter inviting atmosphere we are today, it is not an invitation to a disaster? Destruction of humanity, not us, is worried about his urges to survive. The question is, when there is no human being again, not what will happen to the rest? The day we will come in the sense of being a man, save the world thinking the same day will be born.)
Jai Guruji.

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