अभिवादन करने का अर्थ सामने वाले के प्रति समर्पण नहीं बल्कि प्रभु का स्मरण और आभार ज्ञापन है जिसका अंश उसमें है। उस परम शक्ति के प्रति विनम्र भाव हमें विकट परिस्थितियों में राह दिखाता है। जब हम नेक मंसूबों से प्रभु के समक्ष झुकते हैं तो वह हमारे साथ खड़ा हो जाता है, और जब वह हमारे साथ होता है तो हमारे विरुद्ध कोई नहीं टिक सकता।
प्रकृति की लीलाएं चिरकाल से अबूझ रही हैं। सिद्ध ज्ञानी-विज्ञानी प्रभु द्वारा नियामित प्रकृति की गुत्थियां सुलझाने में मानवीय चेष्टाओं के बौनेपन को समझते हुए सदा नतमस्तक रहे। विज्ञान तो उस परम शक्ति के आगे, बहुत हुआ तो पानी भर सकता है। थॉमस अल्वा एडीसन ने कहा, यदि लेबोरेटरी में घास का एक तिनका भी ईजाद कर लिया जाए तो विज्ञान का लोहा माना जाए। न्यूटन, आइंस्टाइन सरीखे शीर्ष वैज्ञानिकों ने सदा प्रभु के प्रति विनम्रता की पुरजोर वकालत की। विनम्रता के बदले धृष्टता से पेश आना ईश्वरीय इच्छा और प्राकृतिक विधान का उल्लंघन है, इसीलिए दंडनीय है, जिसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। बच्चों को सिखाया जाता है कि बड़ों, सयानों व अन्यों को प्रभावित करने के लिए उनके समक्ष कैसे पेश आएं, यह नहीं कि उनके प्रति भाव कैसा हो या अंतःकरण को कैसे पुख्ता किया जाए। मनोयोग से किए जा रहे अभिवादन की महक और रस्म निभाते अभिवादन की दुर्गंध छिपती नहीं है। जब हम निश्छल भाव से नतमस्तक होते हैं तभी सामने वाला दिल से हमें ऐसी दुआएं देता है जो हमें लगती हैं।
कारण- मनुष्य चलता-फिरता मांस का लोथड़ा नहीं है, उसका दैविक गुणों से परिपूर्ण ऊर्जावान स्वरूप भी है। दूसरे जीवों की उपस्थिति में आपसी अंतर्क्रिया से ऊर्जा का आदान-प्रदान होता है। सुबह के सूर्य नमस्कार और भवन निर्माण से पहले भूमि-पूजन में ऊर्जा के असीम स्रोत और समस्त चराचर जगत को संबल देती पृथ्वी के प्रति नतमस्तक होकर आह्वान किया जाता है ताकि उनकी कृपादृष्टि बनी रहे। फलों से लदे झुके वृक्ष की भांति ज्ञान की जिज्ञासा व सद्कार्यों में सराबोर व्यक्ति के मन में अहंकार के लिए स्थान कहां? इसीलिए कहते हैं, जो सच्चे ज्ञानी होते हैं उन्हें अपने ज्ञान का अहंकार नहीं होता चूंकि उन्हें अपने अज्ञान का पता रहता है।
दोनों हाथ जोड़ कर, दूसरे से हाथ मिला कर या हिला कर, आलिंगन, चुंबन आदि तरीकों से अभिवादन की प्रथाएं प्रचलन में हैं। मेलभाव संवर्धित करने के लक्ष्य से डेढ़ सौ से अधिक देशों में प्रतिवर्ष 21 नवंबर को विश्व अभिवादन दिवस मनाया जाता है, इस आयोजन को अनेक जानी-मानी हस्तियों का समर्थन प्राप्त है। अभिवादन से दो व्यक्तियों के बीच की रिक्तता टूटती है, संशय के बादल छिटकते हैं और संवाद के द्वार खुलते हैं। आज यह बहुत आवश्यक है।
Jai Guru ji.
In English
(Greetings means surrender to the front but there is a part of God's remembrance and gratitude memo. Polite gesture towards the ultimate power guides us in difficult situations. Good intentions when we bow before the Lord, he is standing with us, and when he is with us, then no one can stand against us.
Nature's pastimes are chronically unsolved. Proven knowledge in solving complex nature of human nature regulated by biologist Lord Bunepan Recognising the efforts are always subservient. So the ultimate power of science forward, enough water could enter. Thomas Alva Edison said, a straw of grass in the laboratory have also invented the science of the iron may be considered. Newton, top scientists like Einstein always strongly advocated the Lord with humility. Audacity instead of politely treat the will of God and is a violation of natural law, therefore, is punishable, which suffers the brunt. Children are taught that the elders, Syanon and others to influence both how to deal with them, it's not like they have a sense or conscience to be cemented. And ritual of greetings are studiously smelling hides foul play is not welcome. Guileless sense only if we are capitulating to the front of the heart gives us the devotions which dictates to us.
Reason- dapper man of flesh is not Lothdha, energetic nature is filled with the divine qualities. Mutual interaction in the presence of other organisms is the energy exchange. The morning sun salutation and laid foundation before building limitless source of energy doing that and all animate and inanimate world is called the earth subservient to maintain their favor. Bowed like a tree laden with fruits of knowledge, curiosity and wet in Sdkaryon place for arrogance in the person's mind Where? That is to say, who are the true knowledge of their knowledge because they do not know ignorance is arrogance.
By adding both hands, or shake hands with each other, hugging, kissing etc. greetings practices in ways that are in vogue. Aiming to strengthen bond over one hundred countries world greetings Day is celebrated annually on November 21, the event has the support of several prominent. Stretching from greeting between two people is the emptiness, doubt Chitkte the cloud and the open door to dialogue. Today it is very necessary.)
Jai Guruji.
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