मानव-जीवन की सर्वोत्तम उपलब्धि शांति है। जीवन में जो दौड़ है वह इसी शांति के लिए है। कोई धन से शांति खरीदना चाहता है, कोई पद से और कोई सत्ता से, कोई अधिकार के बल पर। सच तो यह है कि शांति पाने के लिए बहुत सारे साधनों की जरूरत नहीं होती। शांत और सुखी हर कोई बन सकता है, जबकि धनवान हर कोई नहीं बन सकता। सामान्यतया प्रत्येक व्यक्ति में कुछ बनने की चाह होती है। यही चाह अशांति का मूल कारण है। दूसरे जैसा मकान, दूसरे जैसा अधिकार, दूसरे की जैसी कार, दूसरे के जैसा मोबाइल, दूसरे जैसे वस्त्र, इस प्रकार की नकल से प्रतिस्पर्धा का भाव पनपता है। प्रतिस्पर्धा से संघर्ष और संघर्ष से असंतोष, अतृप्ति और दुख होता है। भगवान महावीर ने कहा है कि जो व्यक्ति बाहर से स्वयं को भरने की चेष्टा में है वह अशांत है। जो अर्थ या पदार्थ विशेष में सुख की खोज करता है, वह सुख-दुख रूपी दो तटों के बीच बहकर समाप्त हो जाता है। अपेक्षा है कि शांति के लिए अध्यात्म और भौतिकता के बीच संतुलन स्थापित किया जाए। महान दार्शनिक राधाकृष्णन के शब्दों में विज्ञान ने मानव को पदार्थ जगत में विजयी बनाया है, परंतु उसके साथ-साथ भीतरी रिक्तता से उसे भर दिया है। वर्तमान युग हमारे सामने प्रश्नचिह्न् बनकर खड़ा है। इस समस्या का समाधान भौतिकता में कदापि नहीं है। महावीर से पूछा गया था, शांति का मार्ग क्या है? उन्होंने कहा-आत्मा को देखो। इसी प्रश्न पर भगवान कृष्ण ने कहा-मन को देखो और बुद्ध ने कहा-सांस को देखो। परिणाम तीनों के समान हैं। श्वास दर्शन यानी अध्यात्म का दर्शन। इसी से मन शांत होता है, आत्मानुभव बढ़ता है और यही वास्तविक शांति का मार्ग है। भगवान महावीर ने कहा है कि शांति को धरती पर उतरने के लिए योग्य पात्र चाहिए। आज स्वयं शांति किसी में समा जाने को आतुर है। विश्व कवि रवींद्रनाथ टैगोर ने लिखा है कि घड़ा नदी के पानी के लिए जितना आतुर है, उससे अधिक आतुर है स्वयं नदी घड़े में समा जाने के लिए। शांति हमारे चारों ओर बिखरी पड़ी है। अपेक्षा है केवल उसका आह्वान करने की, पुकारने की। जिन्होंने भगवान को पुकारा, भगवान उनमें समा गए। शांति की खोज भीड़ से नहीं, एकांत से होती है, आचरण से नहीं अंतस से होती है।
जय गुरुजी.
In English:
(The best achievement of human life is peace. The race is for the same peace in life. If someone wants to buy peace with money, no job and no power, no authority to force. The truth is that peace does not need to get too many resources. Everyone can become calm and happy, while not everyone can become rich. Everyone is trying to be something in general. This desire is the root cause of unrest. Like other houses, like other rights, such as another car, like other mobile, others such as textiles, thus fostering a sense of competition from copying. Competition conflict and conflict dissatisfaction, discontent and hurts. Lord Mahavira said that the person who is trying to fill out the self is turbulent. Meaning or substance which finds pleasure in particular, the form of pleasure and pain ceases flowing between the two coasts. To expect that peace should be the balance between spirituality and materialism. In the words of the great philosopher Radhakrishnan science is the man that won the matter in the universe, but it is filled with the inner emptiness him. Prsncihn stands before us as the present age. The solution is never to materialism. Mahavira was asked, what is the path of peace? They look at the soul. On this question to mind the look of Lord Krishna and Buddha look-breath. The results are similar to three. Breathing the spiritual philosophy of philosophy. This is the calm mind, and that real peace is the path of Atmanubv increases. Lord Mahavira said that peace should be eligible for landing on earth. Today is eager to occupy themselves in peace. World poet Rabindranath Tagore wrote that the pitcher as eager for the river, the more eager to fit themselves into the river pitcher. Peace around us is lying. Is expected to be called upon only, to address. Who cried out to God, God was upon them. Not to rush the search for peace, solitude is not the conduct is of the inner.)
Jai Guruji.
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