आमतौर पर लोग आध्यात्मिक विकास के लिए किसी खास जगह की खोज में रहते हैं। हम किसी
भी स्थान पर आध्यात्मिक रूप से विकसित हो सकते हैं। किसी भी संस्कृति, स्थान, या
धर्म में रहते हुए, किसी भी प्रकार की गतिविधियों में भाग लेते हुए भी हम अध्यात्म
को पा सकते हैं।
कुछ परंपराओं में लोग आध्यात्मिक यात्रा की ओर ही ध्यान
देते हैं, लेकिन हमें चाहिए कि हम संपूर्ण इंसान बनें। हम शारीरिक, मानसिक,
भावनात्मक और आध्यात्मिक रूप से विकसित हों। आत्मा के स्वास्थ्य पर ही शरीर, मन और
बुद्धि का स्वास्थ्य निर्भर करता है। पूर्वी देशों में कहा जाता है कि जंगल में मोर
नाचा, किसने देखा/ जैसे एक फूल खिलकर दूसरों को खुशबू देता है, ठीक उसी प्रकार हमें
भी दूसरों की जीवन में खुशियां लानी चाहिए। एक बार यह जान लेने के बाद कि हम आत्मा
हैं, हमें अपनी आत्मिक शक्ति के विकास में समय लगाना चाहिए। इसके लिए हमें
आध्यात्मिक लक्ष्य तय करने होंगे। आध्यात्मिक क्षेत्र में हमारे लक्ष्य हैं
ध्यान-अभ्यास में समय देना और स्वयं में सद्गुणों का विकास करना। यह जानना चाहिए कि
वास्तव में जरूरी क्या है/ अपने लक्ष्य निर्धारित करने चाहिए और उन्हें पाने की
दिशा में बढ़ना चाहिए।
आध्यात्मिक प्रगति की कुंजी है- मन शांत रखना। हम
ऐसा नहीं करेंगे तो अपने सच्चे आत्मिक स्वरूप को नहीं जान पाएंगे। सच्चाई, अहिंसा,
नम्रता, पवित्रता, और निष्काम सेवा जैसे सद्गुणों से भरपूर जीवन से हम आध्यात्मिक
मार्ग पर तरक्की कर सकते हैं। जब शरीर और मन शांत हो जाते हैं, तभी अपने अंतर में
प्रभु के साथ जुड़ पाते हैं। मन तमाम इच्छाओं का स्रोत है। इसी कारण सिमरन का बहुत
महत्त्व है। मन खाली रहेगा तो उसमें दूसरे विचार पैदा होंगे। जैसे ही हमारे अंदर
कोई विचार उठता है, हमारे ध्यान में रुकावट डालता है। हम मन को शांत करना सीख लेते
हैं, तो हम खुद ऐसी अवस्था में पहुंच जाते हैं जहां हमारे भीतर कोई इच्छा नहीं
रहती।
हम ध्यान के लिए शांत जगह ढूंढते हैं, लेकिन जब हम आध्यात्मिक यात्रा
में एक खास ऊंचाई पर पहुंच जाते हैं, तो फिर बाहरी हलचल हमारा ध्यान भंग नहीं कर
पाती। एक दिन न्यूटन सड़क के किनारे बैठे कुछ सोच रहे थे। वह इतना खोए हुए थे कि
उन्हें सामने से एक बैंड के गुजरने का भी पता नहीं चला। जब ध्यान पूरी तरह से प्रभु
पर केंद्रित हो, तो बाहर की कोई भी चीज उसका ध्यान भंग नहीं कर पाती। हम किसी भी
वातावरण में धीरे-धीरे आध्यात्मिक विकास कर सकते हैं।
JAI GURUJI.
E-MAIL: birendrathink@gmail.com
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