Wednesday, October 29, 2014

छठ पर गाए जाने वाले लोकगीतों में कई संदेश, नेचर को बचाने का भी सबक ...

कईनी बरतिया तोहार हे छठी मईया ...

पर्व के दौरान घरों से लेकर घाटों तक छठ गीत गूंजते रहते हैं



गीतों में बेटियों और एजुकेशन की महत्ता भी बताई गई है


छठ महापर्व में लोक गीतों का अपना ही महत्व होता है। पर्व के दौरान घरों से लेकर घाटों तक छठ गीत गूंजते रहते हैं। व्रती महिलाएं जब जलाशयों की ओर जाती हैं, तब भी वे छठ महिमा की गीत गाती हैं। 




सूर्य की उपासना का पावन पर्व छठ अपने धार्मिक, पारंपरिक और लोक महत्व के साथ ही लोकगीतों की वजह से भी जाना जाता है। छठ मनाने की परंपरा के साथ-साथ उससे जुड़े गीत भी पीढ़ी दर पीढ़ी समाज का हिस्सा बनते जाते हैं। सुबह उदीयमान सूर्यदेव को अर्घ्य देने के लिए घाटों पर पानी में खड़ी व्रती ‘जल्दी-जल्दी उग हे सूरज देव...’, ‘कईनी बरतिया तोहार हे छठी मईया...’ ‘दर्शन दीहीं हे आदित देव...’, ‘कौन दिन उगी छई हे दीनानाथ...’ जैसे गीत गुनगुनाती रहती हैं। 

छठ पूजा के मौके पर गाए जाने वाले लोकगीतों में स्त्री व्यक्तित्व की प्रधानता, प्रकृति संरक्षण और जैव विविधता के कई संदेश हैं। छठ के एक लोक गीत में बेटियों के महत्व को बताया गया है। ‘रूनकी झुनकी बेटी मांगीला...’ भक्तों का छठी मइया से यह आग्रह समाज में बेटियों (महिलाओं) की महत्ता को दर्शाता है। इसी गीत की अगली पंक्ति है- ‘मांगीला पढ़ल पंडित दामाद...’। इस पंक्ति में शिक्षा पर बल दिया गया है। एक और लोकगीत ‘कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए...’ में प्रकृति संरक्षण के महत्व को बताया गया है। इस गीत में विलुप्त होते जंगल के साथ बांस की महत्ता बताई गई है। 
छठ पूजा के लिए बांस की बनी हुई बड़ी टोकरी (दौरी) में पूजा का सभी सामान और प्रसाद रख दिया जाता है। महिलाओं और बच्चों की टोली एक सैलाब की तरह दिन ढलने से पहले नदी के किनारे लोकगीत गाते हुए जाते हैं।

काचि ही बांस कै बहिंगी लचकत जाय

भरिहवा जै होउं कवनरम, भार घाटे पहुंचाए


सुबह इसी तरह श्रद्धालु सूर्योदय से काफी पहले पूजा का सामान, प्रसाद के रूप में ठेकुआ और कई तरह के फल लेकर नदी और तालाबों के किनारे जाते हैं। पूजा का सामान वहां बने घाट पर रखा जाता है। सूर्य देव की प्रतीक्षा में महिलाएं हाथ में प्रसाद से भरा सूप लेकर पानी में खड़ी हो जाती हैं। सूर्य की पहली किरण दिखते ही लोगों के चेहरे पर खुशी दिखाई देती है और अर्घ्य देना शुरू हो जाता है। इसके बाद व्रती महिलाएं प्रसाद ले कर अपना व्रत खोलती हैं। परिवार और सभी परिजनों को भी प्रसाद दिया जाता है। इसके साथ लोक आस्था का महापर्व पूरा हो जाता है। 

Jai Guruji.
Email: birendrathink@gmail.com


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