बच्चों को चॉकलेट बहुत अच्छी लगती है। चॉकलेट खाने के लिए उन्हें कभी कहना नहीं
पड़ता। वे खुद ही, कहीं छिपा कर रखी हो तब भी खोज कर खा ही लेते हैं। लेकिन हमसे कोई
पूछे धर्म कैसा लगता है/ सभी का एक उत्तर होगा- अच्छा है, हमें बहुत प्रिय है। धर्म
से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है। इसी तरह पाप के बारे में भी सब एक स्वर
में कहेंगे कि पाप बुरा है। तब क्या हमारी सोच बच्चों से भी गई-गुजरी है कि धर्म
प्रिय होने के बाद भी उसे अपनाने के लिए, और जो बुरा है उस पाप से हमको बचाने के
लिए युगों-युगों से अवतार, पैगंबर, तीर्थंकर, साधु, संत और ज्ञानी हमें प्रेरित
करते रहे हैं।
बचपन में मिट्टी खाना या कहीं भी पड़ी कोई चीज मुंह में रख
लेना अच्छा लगता है। समझ आते ही कि यह ठीक नहीं, हम ऐसा करना छोड़ देते हैं। लेकिन
हम आज भी नासमझी के बचपन में जी रहे हैं। क्रोध और अधर्म का स्वरूप और फल दोनों ही
खराब हैं। इनके कारण हमारे कितने ही संबंधों में कटुता आ गई, कितने धन-जन की हानि
हो गई। कई बार के अनुभव के बाद भी क्या हमने कभी क्रोध और अधर्म की राह छोड़ने की
सोची/ हम क्यों नहीं प्रिय लगने वाले धर्म को उसी तरह गृहण कर लेते जैसे बच्चे
चॉकलेट को पाने के लिए लालायित रहते हैं। हम अपनी सभी पसंदीदा चीजें पल भर की देर
किए बिना स्वीकार कर लेते हैं। जो कुछ बुरा लगा या स्वादहीन होता है, उस सब को नकार
देते हैं। धर्म अच्छा है तो उसे स्वीकारने में और पाप बुरा है तो उसे छोड़ने में देर
कैसी और क्यों/ ‘धर्म करो और पाप छोड़ो’ जैसी सीधी सी बात मनवाने के लिए प्रवचन
क्यों आयोजित कराए जाते हैं।
कहीं ऐसा तो नहीं कि धर्म अच्छा है, यह हमें
परमात्मा से मिला हुआ संदेश है। यह हमारा अनुभव नहीं है। अनुभव हमारा यह है कि धर्म
पर आचरण कष्टदायक है। उसी तरह पाप बुरा है, यह भी उपदेश है, लेकिन हमारा अनुभव है
कि पाप स्वादिष्ट होता है। उसे करने में मजा आता है।
चॉकलेट अच्छी है, यह
बच्चे ने सुना भी है और उसका अनुभव भी है। इसलिए उसे स्वीकार करने में किसी प्रेरणा
की आवश्यकता नहीं होती।
जब तक परमात्मा का संदेश और हमारा अनुभव एक नहीं
होगा, तब तक हमें धर्म अपनाने, पाप त्यागने के लिए प्रेरणा की जरूरत बनी रहेगी।
हमें धर्म का स्वरूप अच्छा लगना चाहिए, फल मिले या न मिले। अगर नजर धर्म से मिलने
वाले फल पर होगी, तो फल में देरी होते ही हम धर्म छोड़ देंगे।
Jai Guruji
Email: birendrathink@gmail.com
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