Thursday, July 17, 2014

प्रभु हममें अपनी मौजूदगी का अहसास हरदम कराते रहते हैं ..


एक संत के आश्रम में दीक्षा ग्रहण समारोह चल रहा था। आश्रम में पधारे महा गुरु ने दीक्षा देने से पहले शिष्यों से प्रश्न किया, ‘ईश्वर कहां बसते हैं/’ किसी ने कहा संसार में तो किसी ने जीव-जंतुओं में। किसी ने पेड़-पौधों में बताया तो किसी ने ब्रहमांड में। शिष्यों के उत्तरों से नाखुश गुरुजी बोले- ‘परमात्मा प्रकृति के रोम-रोम में तो बसते ही हैं, लेकिन वे मनुष्य की अंतरात्मा में सर्वाधिक वास करते हैं। इसीलिए कहा गया है कि आत्मा परमात्मा का एक अंश है।’ हम सभी जानते हैं कि हमारे शरीर में परमात्मा की आत्मा का वास है। हमारा नश्वर शरीर एक दिन पृथ्वी में मिल जाएगा और आत्मा परमात्मा में एक हो जाएगी। अंत में रह जाएंगे तो सिर्फ हमारे द्वारा किए गए सत्कर्म। इसलिए जीवन रहते कुछ न कुछ अच्छा कर जाना जरूरी है। कम से कम जरूरतमंदों की मदद कर कुछ पुण्य ही कमाने का प्रयास करें, ताकि नेक कर्मों द्वारा हम खुद को हासिल कर सकें। हमारे मन, दिल, और शरीर पर रजस, तमस और सात्विक गुणों का प्रभाव शुरू से ही पड़ने लगता है। जो इंसान जीवन यात्रा के दौरान इन सभी पर संतुलन रख पाता है वही आगे चलकर अपने इष्ट देवता को खोज पाता है। जिसने सत्कर्मों से खुद को खोज लिया है, उसने दूसरों को भी पा लिया है। ऐसे व्यक्ति शाश्वत परमेश्वर का स्वरूप होते हैं। उनका अपने अहम पर काबू होता है। वे स्वभाव से निर्मल, मन से कोमल, दिल के प्रेमी और आत्मा के मधुर होते हैं। वे हमेशा दूसरों का भला पहले चाहते हैं। ऐसे लोगों ने स्वयं को खुद से जीत लिया है। वे अपनी आत्मा की आवाज जानते और सुनते हैं। उसमें समाये ईश्वर के स्वरूप को भी पहचानते हैं। वे खुद ईश्वर का प्रतीक हैं। ईश्वर से संवाद करना ऐसे इंसानों के लिए बहुत आसान होता है। यह संभव है तो फिर ईश्वर को कहीं ओर क्यों खोजें/ जो लोग ईश्वर को नहीं पहचान पाते, उसे आत्मसात नहीं कर पाते, उन पर दुखों का पहाड़ यहीं गिरता है। वे अंधकार में जीते हैं। अधूरी लालसा पूरा करने के लिए उनकी आत्मा अपने परमात्मा को खोजने में लगी रहती है। बाइबल में लिखा है- ‘क्या आप यह नहीं जानते कि आपका शरीर पवित्र आत्मा का मंदिर है/ वह आप में निवास करता है और आपको ईश्वर से मिला है।’ अगर हम अपने भीतर बसने वाले ईश्वर को पहचान लें तो हमारी आत्मा का मिलन परमात्मा से हो जाएगा। जरूरत है बस अपने अंदर झांकने की। क्योंकि प्रभु हममें अपनी मौजूदगी का अहसास बराबर कराते रहते हैं। बस जरा ध्यान देने की जरूरत है/ आप ही परमात्मा हैं, आपके द्वारा किए गए सभी कार्य परम हैं। आइये, संसार में परमत्व लाएं और क्यों न कुछ अच्छा कर जाएं।

Jai Guruji

No comments: