Friday, July 18, 2014

समाज के सहयोग के बिना हम आगे नहीं बढ़ सकते ..


अक्सर कुछ लोग शिकायत करते हैं कि हमें अपने मां-बाप से विरासत में कुछ नहीं मिला। वे खुद को सेल्फ मेड कहते और मानते हैं। यह भ्रम ही नहीं, अहंकार भी है। प्रश्न उठता है कि क्या मात्र धन-दौलत या पैसा ही वास्तविक विरासत है. कुछ लोगों को तो मां-बाप से ही नहीं, पूरे समाज से शिकायत होती है। उनका कहना है कि दुनिया ने उनके लिए कुछ नहीं किया। उनके लिए सबकी जिम्मेदारी होती है लेकिन वे खुद किसी के लिए जिम्मेदार नहीं होते। वे कभी ये सोचने की जहमत नहीं उठाते कि उन्होंने समाज के लिए क्या किया है। 

यह सही है कि आपने खुद अपना विकास किया। आपने अपने समय का सदुपयोग किया, खूब मेहनत करके पढ़ाई की, लेकिन एक विद्यार्थी को भी पढ़ने-लिखने और आगे बढ़ने के लिए कापी-किताब और कलम-दवात आदि न जाने कितनी चीजों की जरूरत पड़ती है। उनके लिए वह दूसरों पर निर्भर होता है। यह ठीक है कि आपने पुरुषार्थ किया और एक अच्छी सी नौकरी पा गए या अपना एक अच्छा-सा व्यवसाय स्थापित कर लिया। यदि पुरुषार्थ नहीं करते तो आपका ही अहित होता। पुरुषार्थ करके आपने अपने लिए अच्छा किया, लेकिन क्या प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से अनेक व्यक्तियों और समाज ने आपको आगे बढ़ने के अवसर उपलब्ध नहीं कराए/

बड़ी-बड़ी चीजों की बात छोड़िए, छोटी-छोटी जरूरतों के लिए भी हम दूसरों पर निर्भर होते हैं। एक मामूली सी लगने वाली कमीज जो हमने पहन रखी है, उसे हमारे तन पर सुशोभित करने में सैकड़ों लोगों का योगदान है। खेत में बीज बोने से लेकर पौधे उगने और उनसे कपास मिलने फिर कपास से कपड़ा और कमीज बनने के बीच असंख्य हाथों का परिश्रम है। कपड़े से कमीज बनाने के लिए एक सिलाई मशीन की जरूरत पड़ती है। वह लोहे और कई दूसरे पदार्थों से बनती है। खनिकों द्वारा लोहा और अन्य खनिज पदार्थ खानों से निकाले जाते हैं। बड़े-बड़े करखानों में मजदूरों द्वारा लोहा साफ किया जाता है। फिर दूसरे बड़े-बड़े करखानों में लोहे से बड़ी-बड़ी मशीनों द्वारा छोटी मशीनें बनती हैं। उन्हीं में से एक मशीन पर कारीगर कपड़े से एक कमीज सिलकर आपको पहनाता है। 

यदि कमीज में बटन न लगे हों तो कैसा लगे। एक बटन जैसी सस्ती चीज भी ऐसे ही नहीं बन जाती। जाने कितने हाथों के सहारे की जरूरत पड़ती है। एक बटन टांकने के लिए सबसे जरूरी यंत्र सुई है। इस छोटी सी चीज को भी हम खुद नहीं बना सकते। हम सब एक दूसरे के सहयोग के बिना अधूरे हैं। माता-पिता, भाई-बंधु, समाज, विरोधी-प्रतिद्वंद्वी और प्रकृति के मिले जुले प्रयासों से हमारा जीवन गति पाता है।

Jai guruji

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