Tuesday, July 15, 2014

क्रांतिकारी की मां ..


भारत के स्वाधीनता संग्राम में कई महान विभूतियों का योगदान रहा है। इनमें से कुछ अहिंसा के रास्ते पर चलते थे तो कुछ क्रांतिकारी उपायों में विश्वास रखते थे। ये देश को न केवल राजनीतिक स्वतंत्रता दिलाना चाहते थे बल्कि सामाजिक-आर्थिक दृष्टि से भी उन्नत बनाना चाहते थे। ये एक बेहतर समाज बनाने का स्वप्न देखते थे। इनका व्यक्तिगत जीवन त्याग और आदर्श से भरा था। इन्हीं में से एक थे यतींद्रनाथ बोस, जो क्रांतिकारी थे। उन्होंने आजादी के लिए लड़ते हुए अपनी जान दे दी। उन्हीं के जीवन की यह घटना है। एक दिन वह चिलचिलाती धूप में कोलकाता की एक सड़क पर पैदल कहीं जा रहे थे। रास्ते में एक जगह उन्होंने भारी भीड़ देखी। यतींद्रनाथ भीड़ को चीरते हुए अंदर घुसे तो अवाक रह गए। उन्होंने देखा कि एक वृद्धा गर्मीं से परेशान, बोझा उठाने में असमर्थ होकर नीचे गिर पड़ी थी। उसे घेरकर खड़े लोग मौखिक सहानुभूति तो जता रहे थे, मगर उसे उठाकर घर पहुंचाने के लिए कोई तैयार नहीं था। सब आपस में ही बहस में उलझे थे कि उस महिला की मदद कैसे की जाए। यतींद्रनाथ ने उस वृðद्धा को सहारा देकर उठा लिया और बोले- चलो मां, घर चलें। घर पहुंचकर उन्होंने पूछा- तुम्हारा और कोई नहीं है क्या/ यह सुनकर वृद्धा रो पड़ी और बोली- एक ही बेटा था, जो महामारी के कारण मृत्यु को प्राप्त हो गया। अब बोझा ढोकर पेट की आग बुझाती हूं। यतींद्रनाथ बोले- मां, यह बेटा अभी जीवित है। अब तुम्हें कभी बोझ नहीं ढोना पड़ेगा। यह कहते हुए उन्होंने उसके चरण छूकर उसे कुछ रूपये दिए और फिर आजीवन उसका भरण-पोषण किया।

jai guruji

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