Tuesday, July 8, 2014

संसार पार पाने के लिए साधन and पापों से पार पाने के लिए साधना


धार्मिक साहित्य में संसार को सागर माना गया है और उसको तरने के लिए नौका को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया गया है। जहां कहीं कठिनाई होती है उसे पार करने के लिए आदमी को साधन की अपेक्षा होती है। इसी तरह संसार का पार पाने के लिए भी कोई साधन चाहिए और पापों से पार पाने के लिए साधना चाहिए। श्रीकृष्ण अर्जुन को उपदेश देते हैं कि अर्जुन, मान लो तुम बहुत पापी हो, तुमने बहुत पाप किए हैं। पापों की नदी को तैरने के लिए तुम्हें साधन का उपयोग करना होगा। वह साधन होगा ज्ञान का। ज्ञानरूपी नौका में बैठ जाओ। वह ज्ञान रूपी नौका तुमको पाप रूपी नदी से पार पहुंचा देगी। ज्ञान आंतरिक अंधकार को दूर करने वाला प्रकाश है। गीता में ज्ञान को कहीं अग्नि कहा गया, कहीं नौका भी कहा गया। विभिन्न रूपों में ज्ञान को प्रस्तुत किया गया। जैन आगम उत्तराध्ययन में भी ज्ञान को बहुत महत्व दिया गया है। सम्यक दर्शन के बिना सम्यक ज्ञान नहीं हो सकता और सम्यक ज्ञान के बिना चारित्र का गुण नहीं हो सकता और चारित्र का गुण आए बिना कर्मों से छुटकारा नहीं मिलता। कर्मों से छुटकारा मिले बिना निर्वाण नहीं मिलता। यानी निर्वाण के लिए सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान आवश्यक है। उसके बाद ही चारित्र संभव है। सम्यक ज्ञान के बिना सम्यक चारित्र भी नहीं हो सकता। सम्यक ज्ञान अंक के समान है और चारित्र शून्य के रूप में है। ज्ञान के साथ चारित्र हो तो उसका मूल्य बहुत बढ़ जाएगा। आदमी सम्यक ज्ञान का अभ्यास करे, तत्व को समझने का प्रयास करे। दो तत्व मुख्य हैं- बंध और मोक्ष। बंध और मोक्ष में सारा तत्वज्ञान आ जाता है। आश्रव, पुण्य और पाप बंध का परिवार है। संवर और निर्जरा मोक्ष का परिवार है। बंध और मोक्ष का विस्तार नव तत्वों में आता है। गीताकार ने ज्ञानरूपी नौका की बात कही है। उत्तराध्ययन में ‘नाव’ शब्द का प्रयोग किया गया। धार्मिक साहित्य में अनेक समानताएं मिलती हैं। संसार तरने के लिए श्रीकृष्ण ने भी नौका बताई है और उत्तराध्ययनकार ने भी नौका बताई है। श्रीकृष्ण ने ज्ञान को नौका बताया तो उत्तराध्ययनकार ने शरीर को। शरीर नौका, जीव नाविक और संसार समुद्र। शरीर द्वारा साधना करें, तप करें, जप करें तो संसार समुद्र का पार पा जायेंगे। शरीर रूपी नौका में भी जब पाप रूपी छेद होंगे, वह हमें संसार रूपी सागर में डुबो देगी। इस शरीर में हम धर्म करें तो यह निश्छिद्र नौका की भांति पार ले जाएगी।

Jai guruji

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