Thursday, June 5, 2014

दूसरों के दुख-दर्द में साथ देने से सार्थक होगा जीवन

अमेरिका के प्रसिद्ध मानसिक रोग चिकित्सक विक्टर फैंकल ने दूसरे महायुद्ध के दौरान हिटलर के यातना शिविरों में तीन साल बिताए। उनका अनुभव था कि शिविरों में जिन लोगों का सही दिशा लिए निश्चित ध्येय था, वे यातनाओं को सह कर भी बाहर आ जाते थे। लेकिन जिनके पास जीने की कोई वजह नहीं थी, कोई उद्देश्य नहीं था और अव्यवस्थित थे, वे जान से हाथ धो बैठते थे। सफलता के लिए एक निश्चित लक्ष्य और उस तक पहुंचने के लिए खुद पर नियंत्रण आवश्यक है। जैसे धरती पर वर्षा के साथ ही सृजन का नया क्रम शुरू होता है। चारों ओर हरियाली छा जाती है। बांध और नहरों के कूल किनारों में अनुशासित करके बहाया गया पानी रेगिस्तान तक को हरा-भरा कर देता है। लेकिन जब यह पानी अनियंत्रित हो कर, बाढ़ का प्रकोप बन लक्ष्य-विहीन और दिशा-हीन होकर बहने लगता है, तब चारों ओर विनाश नजर आने लगता है। सृष्टि के सारे आधार उसमें डूब कर विलीन हो जाते हैं। नियंत्रण के अभाव में सृजनधर्मा जल भी प्रलय कर देता है। जल का शक्तिशाली प्रवाह सृजन करेगा या विनाश, यह इस पर निर्भर है कि उसे किस लक्ष्य की ओर नियंत्रित करके प्रवाहित किया गया है। हमारा जीवन भी एक शक्तिशाली प्रवाह ही तो है। मन, वाणी और शरीर हमारे इस प्रवाह का स्रोत और प्रमुख शक्तियां हैं। हमने अपने बुद्धि-कौशल से जिस तरह प्राकृतिक शक्तियों, जल, वायु आदि को नियंत्रित कर उनका उपयोग मानवता के हित में कर लिया है, उसी तरह यदि हम इन तीनों शक्तियों को सही दिशा दे कर नियंत्रित कर लें तो उन्हें सृजनात्मक कार्यों में नियोजित कर सकते हैं। जो अपनी इन शक्तियों को पहचान इन्हें संयम के किनारों में निंयत्रित कर उन्हें दूसरों के हित को लक्ष्य बनाकर कल्याण की दिशा में प्रवाहित करते हैं, वे ही समाज के लिए शुभ और मंगल के सृजन में सहायक होते हैं। नियंत्रण और अनुशासन के अभाव में हमारी शक्तियां समाज के लिए अभिशाप बन बिखरती हैं। ऐसे में अभय के स्थान पर आतंक और स्वतंत्रता के नाम पर स्वच्छंदता का बोलबाला हो जाता है। यदि हमने तमाम भौतिक सुविधाएं और संपदा एकत्र कर ली है, लेकिन हमारा अंतस, जीवन के शाश्वत मूल्यों से खाली है तो हमारी सारी उपलब्धियां निरर्थक रह जाएंगी। जीवन की सार्थकता इसमें है कि उसका हर पल ऐसे जिया जाए कि कल जब मुड़कर देखें तो शर्मिंदा न होना पड़े। केवल अपने सुख की चाह हमें इंसान होने के अर्थ से अलग करती है। जब तक हम दूसरों के दुख-दर्द में साथ नहीं देंगे तब तक जीवन सार्थक नहीं होगा।
jai guruji
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