Friday, April 4, 2014

हौसला बुलंद हो तो कुछ भी मुमकिन।

अशोक कटारिया उम्र: 64 साल कंपनी : अशोका बिल्डकॉन हेडक्वॉर्टर: पुणे सीड कैपिटल : ~5,000 अभावों से नहीं टूटा हौसला, खड़ी कर दी 1700 करोड़ की कंपनी
जब मैं पांच साल का था तो मेरी मां का निधन हो गया। यह मेरे पिता के लिए काफी मुश्किल वक्त था। उन्हें मेरी और चार बड़ी बहनों की देखभाल करनी पड़ती थी। ऐसे में मैं स्कूल के बाद पुणे के पास सिन्नर में अनाज बेचकर उनकी मदद किया करता था, लेकिन हम दिन में 2-3 रुपये ही कमा पाते थे। स्कूल में मुझे स्कॉलरशिप मिली, जिससे मैंने अपना एजुकेशन और हॉस्टल खर्च पूरा किया। इसके बाद मुझे पुणे के फॉर्ग्यूसन कॉलेज में एडमिशन मिला। मैंने कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से 1973 में ग्रेजुएशन किया। पढ़ाई पूरी करने के तुरंत बाद मुझे 240 रुपये महीने की सैलरी पर पब्लिक हेल्थ डिपार्टमेंट में नौकरी मिल गई। मैंने अतिरिक्त इनकम के लिए पुणे के एक प्रॉपर्टी डिवेलपर के यहां पार्ट टाइम जॉब शुरू की और इसे 1975 तक जारी रखा। ठीक इसी साल मैंने खुद का कुछ करने की सोची। मैंने 56,000 रुपये वैल्यू वाले कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट के लिए अपने ससुर और दोस्तों से 5,000 रुपये उधार लिए। इस प्रोजेक्ट में एक गवर्नमेंट ऑर्गनाइजेशन के लिए छह महीने में छोटी दुकानें बनानी थीं। मैंने इस प्रोजेक्ट के लिए बिड की और इसका काम चार महीने के रिकॉर्ड टाइम में पूरा किया। सभी खर्च निकालने और लिया गया लोन चुकाने के बाद मुझे 5,500 रुपये का फायदा हुआ। कॉन्ट्रैक्टर्स मेरे काम से बहुत खुश थे और उन्होंने मुझे ऐसे छोटे-छोटे प्रोजेक्ट्स देने शुरू कर दिए। मैंने एक दूसरे इंजीनियर के साथ साझेदारी की और अशोका कंस्ट्रक्शन के नाम से अपनी कंपनी रजिस्टर्ड कराई। कई छोटे प्रोजेक्ट्स करने के बाद 1979 में हमें 10 करोड़ रुपये का कॉन्ट्रैक्ट मिला, इस प्रोजेक्ट में हमें सीनियर एसएसईबी ऑफिशियल्स के लिए 43 बंगले बनाने थे। हमने सफलतापूर्वक इस प्रोजेक्ट को बनाया, जिससे हमारा कॉन्फिडेंस बढ़ा। 1982 के बाद हमने इंस्टीट्यूशनल कंस्ट्रक्शन शुरू कर दिया। 1985 में हमने रिवरव्यू अपार्टमेंट्स नाम का प्रोजेक्ट डिवेलप किया और डील के हिस्से के तौर पर हमने अपनी कंपनी के लिए पहले तीन फ्लोर्स अपने पास रख लिए। हम वहां शिफ्ट हो गए और यह फ्लैट हमारा रजिस्टर्ड कॉरपोरेट ऑफिस बना रहा। 1987-88 में हमारा टर्नओवर बढ़कर 1 करोड़ रुपये पहुंच गया। 1987 में गवर्नमेंट पॉलिसी के तहत एजुकेशन ट्रस्ट्स को खुद के कॉलेजेज और एजुकेशनल इंस्टीट्यूशंस बनाने की इजाजत दी गई। इससे हमारी कंपनी को काफी मजबूती मिली। हमने कई बड़े इंजीनियरिंग, मेडिकल और एजुकेशनल इंस्टीट्यूशंस बनाए, जिनमें एमआईटी और भारती विद्यापीठ (महाराष्ट्र) शामिल हैं। ठीक इसी समय, हमने कंपनी का नाम बदलकर अशोका बिल्डकॉन कर दिया। अपने पहले बीओटी कॉन्ट्रैक्ट के बाद हमने मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे राज्यों में एंट्री की। 2000 में हमने रेडी-मिक्स कंक्रीट (आरएमसी) की मैन्युफैक्चरिंग में भी कदम रखा। 2006 में आईडीएफसी ने लिस्टिंग की शर्त पर 100 करोड़ रुपये का इनवेस्टमेंट किया। इससे हमें अपने बिजनेस को ऑर्गनाइज करने में मदद मिली और हमें इसका फायदा मिला। तीन सालों के बाद हमने पावर सेक्टर में काम करना शुरू कर दिया। मौजूदा समय में तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र में हमारे पास 2,500 करोड़ रुपये वैल्यू के कॉन्ट्रैक्ट हैं। हम 2010 में 225 करोड़ रुपये का आईपीओ लेकर आए थे, जो कि करीब 15 गुना ओवर-सब्सक्राइब्ड हुआ था। निकट भविष्य में हमारी एग्रीकल्चर, बायोगैस और एजुकेशन जैसे सेक्टर में उतरने की योजना है। फाइनेंशियल ईयर 2012-13 में हमारा टर्नओवर 1,700 करोड़ रुपये था और मार्च 2014 तक इसके 2,000 करोड़ रुपये पार करने की उम्मीद है।

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