Friday, April 4, 2014

आईटी प्रफेशनल्स चाहते हैं ऑन लाइन वोटिंग

काश, चुनाव आयोग अपनी वेबसाइट के माध्यम से ऑनलाइन वोटिंग की सुविधा उपलब्ध कराता। यहां अपने वोटर आईडी के नंबर से लॉग इन अकाउंट क्रिएट होता। लॉग इन करते ही स्टेट और लोकसभा क्षेत्र सेलेक्ट करने का ऑप्शन आता। यहां से बैलट पेपर प्रिंट करने का ऑप्शन आता। फिर बैलट नंबर एंटर करने का ऑप्शन आता और फिर संबंधित क्षेत्र से चुनाव मैदान में खड़े प्रत्याशियों के नाम के साथ उनके सामने क्लिक करने का ऑप्शन आ जाता। अपने मनचाहे कैंडिडेट के सामने दिए बॉक्स में क्लिक करते ही वोटिंग कन्फर्मेशन का मैसेज डिस्प्ले हो जाता। फिर हम घर से दूर रहकर भी अपने सबसे बड़े अधिकार का इस्तेमाल कर पाते। यह विश है देश के अलग-अलग शहरों से पढ़ाई या काम के सिलसिले में यहां आए युवाओं की, जो वोट तो करना चाहते हैं, मगर उनका मतदान क्षेत्र यहां नहीं है। एक आईटी फर्म में काम करने वाली स्वाति दिल्ली के हौजखास इलाके की रहने वाली हैं। स्वाति कहती हैं, दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान मैं घर गई थी तो मैंने वोट किया था। मगर इस बार, देश के सबसे बड़े चुनाव में मैं मतदान नहीं कर सकती, क्योंकि ऑफिस से दो दिन से ज्यादा छुट्टी नहीं मिल सकती। इतने कम समय में सिर्फ फ्लाइट से आना-जाना संभव है, जिसके लिए जेब इजाजत नहीं देती। बंगलुरू यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रैजुएशन कर रहे आरिफ दिल्ली के जामिया नगर इलाके के रहने वाले हैं। आरिफ कहते हैं इन दिनों कॉलेज कैंटीन, लाइब्रेरी, हॉस्टल और यहां तक कि खाली पीरियड में क्लासरूम में इलेक्शन पर बहस का अड्डा बना हुआ है। मुझे भी इन चर्चाओं में हिस्सा लेना अच्छा जगता है, क्योंकि टीवी, रेडियो या इंटरनेट के माध्यम से मैं सारी चुनावी हलचलों पर नजर रखता हूं। ऐसे में इस बार के चुनाव का रिजल्ट जानने के लिए बेहद उत्साहित हूं। लेकिन मुझे इस बात का बेहद अफसोस है कि जो रिजल्ट आएगा उसमें मेरी हिस्सेदारी शामिल नहीं होगी। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के रहने वाले हरिओम त्यागी कहते हैं, इस तरह की मांग एनआरआई भी लंबे समय से कर रहे हैं, मगर उनके लिए भी अब तक सिर्फ ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन की ही सुविधा है, ऑनलाइन वोटिंग की सुविधा उपलब्ध नहीं कराई गई है। इसके लिए उन्हें पोलिंग बूथ पर पहुंचना अनिवार्य है। यही वजह है कि लाखों एनआरआई वोटिंग के अधिकार से वंचित रहते हैं। कुछ लोगों को यह गलतफहमी भी है कि उन्हें वोटिंग का अधिकार नहीं है। अगर युवा वोटरों की मौजूदा स्थिति को देखें तो यह मांग काफी हद तक जायज लगती है। अक्सर यह कहा जाता है कि देश का युवा वर्ग मौजूदा राजनीतिक परिस्थियों को लेकर काफी जागरूक है, बावजूद इसके एक बड़ा हिस्सा पोलिंग बूथ तक नहीं पहुंचता। उनकी पहुंच सिर्फ सोशल नेटवर्किंग साइट्स तक ही रहती है। यही वजह है कि चुनावी दौर में युवाओं का मूड कुछ और दिखता है और चुनाव के बाद रिजल्ट कुछ और ही आता है। दरअसल बड़े शहरों में रहने वाला युवावर्ग मोबाइल, लैपटॉप और फोन के जरिए ही अपने सारे जरूरी काम निबटाना पसंद करता है। यही वजह है कि तकरीबन सभी प्राइवेट कंपनियां और सरकारी विभाग अपनी ऑनलाइन सेवाएं उपलब्ध कराने लगी हैं। मगर चुनाव के मामले में यह सुविधा अब भी एक ख्याली पुलाव की तरह है। कनाडा, नॉर्वे और ऑस्ट्रेलिया जैसे कुछ देशों में इस तरह के प्रयोग शुरू भी हो चुके हैं। अमेरिका में भी इधर ऑनलाइन वोटिंग की सुविधा की मांग की जा रही है। जानकारों की दलील है कि इससे चुनाव में युवाओं की हिस्सेदारी बढ़ेगी। एक्सपर्ट ऐसी आशंका भी जताते हैं कि पार्टियां हैकरों की मदद से इस सिस्टम का दुरुपयोग कर सकती हैं। ऐसे में लगता है, वोटिंग को ऑनलाइन लिस्ट में आने में शायद कई दशकों का समय लग जाएगा।

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