Wednesday, January 18, 2017

सभी में अपनापन महसूस करना ही स्वयं में उन्नति की पहचान है ..(I feel all warm Growth in itself is identified ..)


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यह तो सभी मानते हैं कि संसार के सभी प्राणियों का कारण एकमात्र ईश्वर है। कोई उन्हें भगवान कहे, कोई प्रकृति, कोई अल्लाह, कोई कहे ब्रह्म तो कोई कहे नूर। कहन से परे एक तथ्य यह है कि सभी के कारण वही ईश्वर है। इसी नाते से हम सब का आपस में प्रगाढ़ संबंध है। जो लोग कहते हैं कि यह व्यक्ति तो मेरा अपना है, यह पराया, वे उस आत्म उन्नत अवस्था में नहीं हैं। यह भेद-भाव है। इसी अपने-पराये की भावना के कारण दुनिया में हिंसा, आपसी तनाव, मन-मुटाव, अपराध इत्यादि लगातार बढ़ते जा रहे हैं।

सभी के मन में चाह होती है कि सब ओर शांति हो, कहीं से उसे कोई खतरा न हो। सभी निश्चिंत होकर खुशहाल जीवन जिएं। इसके लिए आपसी प्रेम होना जरूरी है। श्रीचैतन्यदेवजी ने सभी मनुष्यों में एकता की स्थापना करने के लिए, उनमें आपसी प्रेम की भावना लाने के लिए संदेश दिया। उन्होंने कहा, हर मनुष्य का कर्त्तव्य है यह जानना कि उसके साथ-साथ सभी मनुष्य उसी परमपिता से आए हैं। साथ ही साथ यह भी जानना आवश्यक है कि ‘मैं कौन हूं और यह दूसरे मनुष्य कौन हैं? मेरा इन अन्य मनुष्यों से क्या संबंध है?’

श्रीचैतन्यदेवजी का कहना है कि मनुष्य का दूसरे सभी प्राणियों से संबंध है। ईश्वर का यह संदेश सभी प्राणियों के लिए है। जब इस संबंध का ज्ञान हो जाएगा तो एक मनुष्य दूसरे मनुष्य के प्रति या दूसरे प्राणी के प्रति हिंसा नहीं करेगा। आपसी मन-मुटाव तभी छंटेगा, जब हम एक-दूसरे को अपना सगा, अपना प्रिय, अपना भाई-बहन जानेंगे और मानेंगे। तभी उनके प्रति द्वेष, ईर्ष्या खत्म होगी और प्रेम बढ़ेगा। इससे शांति व एकता स्थापित करने की संभावना बढ़ेगी। 

वैज्ञानिक न्यूटन ने अपने नियम में बताया है कि प्रत्येक क्रिया अथवा कार्य के फलस्वरूप समान और विपरीत प्रतिक्रिया होती है। अर्थात आधुनिक विज्ञान ने भी यह माना है कि प्रत्येक क्रिया की समजातीय प्रतिक्रिया होती है। इसीलिए शास्त्रों का आदेश है कि किसी भी जीव के साथ किसी तरह की हिंसा नहीं करनी चाहिए क्योंकि हिंसा से किसी का भला नहीं हो सकता। किसी को मारना ही हिंसा नहीं है, बल्कि किसी भी प्राणी को तंग करना, परेशान करना भी जीव हिंसा ही है। जीव-हिंसा से कोई फायदा नहीं होता। दूसरे प्राणियों की हिंसा करने से अभी शायद कुछ फायदा नजर आए, किंतु अंत में पछताना ही पड़ता है। इसीलिए वेद-शास्त्र कहते हैं, मा हिंस्यात् सर्वाणि भूतानि। हिंसा से बचने का एकमात्र उपाय है आपसी संबंध का ज्ञान। इस ज्ञान को प्राप्त करने का तरीका है, जिज्ञासा। जिज्ञासा भगवान के भक्त से भी हो। अगर भगवान के भक्त का हम सत्संग करेंगे तो हमें यह ज्ञान स्वतः प्राप्त हो जाएगा कि हम कौन हैं, अन्य प्राणियों का स्वरूप क्या है तथा हमारा उनसे संबंध क्या है।
जय गुरूजी. 

In English:

(It is believed that the cause of all the creatures of the world is only God. He said no God, no nature, no God, no God, no man says Nur. Kahn is a fact beyond all of that is God Himself. We all have strong ties with each other by virtue of the same. Those who say that this man is my own, it's strange, they are not at an advanced stage of self. This is discrimination. The spirit of their own, because of violence in the world, mutual tension, mind-Mutav, crime and so are increasing.

All the peace of mind that everything is desire, there is no threat to it from anywhere. All back and live happier lives. This love must be mutual. Sricatnydevji to establish the unity of all human beings, to get a sense of mutual love message. He said, knowing that this is the duty of every man, along with all the men that have come from the Father. It is also important to know that as well as "Who am I and who are the other humans? The other has to do with my men? "

Sricatnydevji say that all other human beings are concerned. This message is for all of God's creatures. Knowledge of this relationship will be a human or other creature violence towards other human beings will not. Cntega mutual mind-Mutav only when we his relatives to each other, my dear, my brothers and sisters learn and obey. Then their resentment, jealousy and love will end. This will increase the possibility of establishing peace and unity.

Newton explained in scientific terms is the result of each action or action has equal and opposite reaction. It is also believed that modern science that for every action there is reaction homogeneous. Therefore, the order of the Scriptures that any creatures should not any violence with violence can not be good to anybody. Violence is not to kill anyone, but to harass any person, creature violence is also troubling. Life-violence does not help. So perhaps some use of violence to other creatures appeared, but in the end has to depreciate. So says the Veda scriptures, Ma Hinsyat Bhutani Srwani. Violence is the only way of avoiding knowledge of interrelationship. This is the way to achieve knowledge, curiosity. Curiosity also to the man of God. Discourses of the man of God when we will automatically get this knowledge to us who we are, what is the nature of other creatures, and what we regard them.)
Jai Guruji.

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