Wednesday, January 18, 2017

धार्मिक व्यक्ति वही है जो दुःख को सुख में बदलना जानता है. ..(The religious person is what sorrow The change in happiness knows...)


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आज जीवन का जहाज उत्ताल तरंगों और तूफानों से भरे संसार सागर में भटक गया है। इसका नैतिक-बोध व दिशासूचक यंत्र खराब हो गया है। जीवन को गतिशील बनाने के लिए जीवन ऊर्जा चाहिए, परंतु उससे ज्यादा महत्वपूर्ण है उसका सही दिशा में संयोजन। इसके अभाव में मनुष्य अनेक प्रकार की विभीषिकाओं के बीच खड़ा है। कभी वह बीमारी से भयभीत रहता है, कभी उसे बुढ़ापा सताता है, कभी वह मौत से घबराता है। न जाने कितने चेहरे हैं भय और दुःख के। मनुष्य उन सबसे सुरक्षा चाहता है। दुनिया की सबसे बड़ी प्रार्थना दुःख मुक्ति की है, लेकिन मेरी दृष्टि में जीवन में दुःख न आए, यह प्रार्थना कायरतापूर्ण है। दुःख और कठिनाइयों के बीच में मनोबल बना रहे, यही सच्ची प्रार्थना है, जो व्यक्ति को अहंकार से बचाने वाली और पुरुषार्थी बनाने वाली है।

इच्छा करना एक बात है और इच्छापूर्ति के उपाय खोजना दूसरी बात। जब तक उपाय हाथ नहीं लगते, इच्छा पूरी नहीं होती। यदि दुःखमुक्ति के उपाय नहीं किए जाएं तो दुःख मुक्त रहने का सपना भी केवल सपना बनकर रह जाता है। ‘रक्षंति पुण्यानि पुरा कृतानि’ अर्थात पहले के किए हुए पुण्य प्रबल हों तो मनुष्य को दुःख से मुक्ति मिल सकती है। जंगल हो या युद्ध का मैदान, शक्तिशाली शत्रु से सामना करना पड़े या जल और अग्नि का प्रकोप, मनुष्य के पुण्य प्रबल हों तो उसे कोई मार नहीं सकता। 

महाभारत में लिखा है-‘धर्मो रक्षति रक्षितः।’ अर्थात मनुष्य धर्म की रक्षा करे तो धर्म भी उसकी रक्षा करता है। हमारी व्याख्या के अनुसार मनुष्य की धार्मिक वृत्ति उसकी सुरक्षा करती है। यह व्याख्या सार्थक भी है। आखिर धर्म अपने आप में है क्या? वास्तव में धर्म का न कोई नाम होता है और न कोई रूप। व्यक्ति के आचरण, व्यवहार या वृत्ति के आधार पर ही उसे धार्मिक अथवा अधार्मिक होने का प्रमाणपत्र दिया जा सकता है। श्रीमद भागवत के प्रथम स्कंध में कुंती का आत्मनिवेदन अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। उसने मनोबल बढ़ाने की प्रार्थना के स्थान पर विपदाओं को आमंत्रित किया। प्रभो! मेरे पग-पग पर निरंतर विपत्तियां रहें, क्योंकि मैं जब विपदाओं से घिरी रहती हूं, तभी आपके दर्शन होते हैं। आपके दर्शन मेरे लिए मुक्ति के दर्शन हैं - मेरे जन्म-मरण की परंपरा को उच्छिन्न करने वाले हैं।

धार्मिक व्यक्ति के जीवन में कष्ट नहीं आता। यह बात नहीं है कि उसे बुढ़ापा, बीमारी या आपदा का सामना नहीं करना पड़ता। बुढ़ापा आता है, पर उसे सताता नहीं। बीमारी आती है, पर उसे व्यथित नहीं कर पाती। इस कथन का सारांश यह है कि धार्मिक व्यक्ति दुःख को सुख में बदलना जानता है। इसे यों भी कहा जा सकता है कि धार्मिक वही होता है, जो दुःख को सुख में बदलने की कला जानता है।
जय गुरूजी. 

In English:

(Uttal ship full of waves and storms of life today has strayed into the world ocean. The sense of moral compass and has deteriorated. Should the life energy to dynamic life, but more important than that is the combination in the right direction. In its absence man stands between Vibisikaon variety. He is never afraid of illness, old age is persecuting him ever, ever, she is afraid of death. There are so many faces of fear and sorrow. The man who wants to protect. The world's largest prayer of liberation is sorrow, but sorrow in life comes to me, it is cowardly to pray. Between sorrow and difficulties making morale, this is true prayer, the person is ego-saving and effort-making.

To desire one thing and another thing to find fulfilling ways. Unless measures do not hand, will not. Not be so sad if Duःkmukti measures dream remains only dream of living free. "Full Kritani Rkshnti Punyani viz virtue prevail if given before a person can get rid of pain. Jungle or Battlefield, face a powerful enemy or an outbreak of water and fire, the dominant form of human virtue can not kill him.

Mahabharata written Rkshita-'dharmo Rkshti. "That is to protect human religion is the religion also protects her. According to our interpretation of man's religious instinct is to protect her. This interpretation is also worthwhile. After all what religion is in itself? In fact, no name and no form of religion. Individual behavior, attitude or her religious or irreligious by instinct certificate can be given. The first wing of Kunti in the Srimad Bhagavatam Atmnivedn is extremely important. He prayed to lift the morale of the place invites disasters. Prbho! Be plagues me constantly step on, because I'm surrounded by disasters, then you are seen. If your vision is the vision of liberation for me - I look forward to Uchchinn tradition of birth and death.

Religious person's life does not suffer. It does not matter that her old age, illness or disaster would not have. Old age comes, not troubling him. Sickness comes, it can not distressed. A summary of this statement is that the religious person knows sorrow transform into happiness. Thus it can be said that it is the religious who knows the art of transforming suffering into happiness.)
Jai Guruji.

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