शिकायत में सुकोमल संवेदना कुम्हला जाती है। इसकी चुभन में पीड़ा और छटपटाहट होती है। इसकी कसक हमारे अंतर्मन में कांटों की सेज बिछाती है, जिसमें न हम रह पाते हैं और न सब्र कर पाते हैं। हम अपनी बुनी-बनाई पीड़ा से बहुत पीड़ित होते हैं और दूसरों को भी इसे बांटना चाहते हैं। हम शिकायत करते हैं कि हमारे मन के मुताबिक नहीं हो रहा है। हम जो चाहते हैं, जो आदेश करते हैं, जब उसकी अवहेलना होती है तो शिकायत रूपी छायाग्रंथ का प्रादुर्भाव होता है। यह प्रत्यक्ष अस्तित्व में होती नहीं है, परंतु जिंदगी में असंतुलन अवश्य खड़ा कर देती है। शिकायती प्रवृत्ति के व्यक्ति के चरणों में त्रिलोक का वैभव भी रख दिया जाए तो भी वह उसमें कुछ कमी निकाल ही लेगा। जब किसी व्यक्ति की हर पल शिकायत करने की आदत बन जाती है तो वह अपना सम्मान गंवाने लगता है। हमारी शिकायत औरों से होती है, संबंधियों और रिश्तेदारों से होती है। यहां तक तो ठीक है, परंतु कभी-कभी शिकायत स्वयं से भी बड़ी गहरी होती है। सच कहें तो जिसकी शिकायत स्वयं से जितनी घनी होती है, वह दूसरों से भी उतनी ही शिकायत करता है। शिकायत करने वाले की सबसे बड़ी शिकायत रहती है कि कोई उसे पूछता नहीं, प्यार नहीं करता, सम्मान नहीं देता और जब उसे प्यार, अपनापन, सम्मान देने की बारी आती है, तो एकाएक जाने कितनी शर्ते थोप दी जाती हैं। आखिर शिकायत को हटाएं कैसे? शिकायतों हटाने की पहली शर्त है - प्यार बांटें, सम्मान बिखेरें, अपनापन लुटाएं। यह अनमोल थाती है, जिसे भगवान ने हमें मुक्तहस्त से प्रदान किया है और हम भी इसे खुले हाथों बांटें। देने पर शिकायत मर जाती है और लेने पर जिंदा हो जाती है। भला देने में शिकायत क्या होगी। लेने में तमाम शिकायतें हो सकती हैं। हम किसी को अपने मन-माफिक अधिकारपूर्वक चलाना छोड़ें। जिंदगी हर एक की अपनी है। दूसरों को अपनी दिशा और दशा में चलने देकर केवल उनके प्रति सेवा-सद्भाव देने का प्रयास करना चाहिए। सभी प्रकार के कष्टों को सहते हुए भी सद्चिंतन, सद्भावना और सद्कर्म में संलग्न रहना, यही है शर्त, शिकवा और शिकायत से मुक्ति पाने का राजमार्ग।
जय गुरुजी.
In English:
(The complaint is frail delicate sensation. The prick is the pain and restlessness. Whose bed of thorns in its Bichhati our conscience, in which we will be able to find and patience. We are suffering from pain woven-made and others to share it. We complain that we have not agreed to. What we want to do the order, is when the complaint form of neglect is the emergence of Chhayagrnth. It does not have direct exist, but stands there is an imbalance in life. The splendor of nature Trilok complaint also put at the feet of the person if he removed it will be something missing. When a person becomes used to complain all the time, it seems to lose his honor. Our complaint is with others, relatives and neighbors are. Even then, but sometimes the complaint itself is also very deep. The fair, which is denser than the complaint itself, the same complaint from others. The biggest complaint is complaining that he did not ask, do not love, does not respect and love, affection, respect comes, when suddenly what conditions are imposed. How to remove all the complaints? Complaints removal is the first condition - Share Love, respect spoil, Lutaan affinity. This precious asset, which the Lord has provided us with generous and we share it with open arms. Once the complaint is to be alive, is dead. What would be good to complain. Can take all complaints. We miss your mind run-suited authoritatively. Each has its own life is. Others by walking in his direction and state should try to give them only a service-harmony. Also, going through all the sufferings Sdcintn, to engage in good faith and Sdkarm, is the condition, get rid of complaining and complaining highway.)
Jai Guruji
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