प्राचीन काल से हमारा जीवन रहस्यमय बना हुआ है। इस जीवन को जानना जितना प्राचीन काल में कठिन था, उतना आज भी है। कुछ लोग इस शरीर को जीवन मान लेते हैं और उसकी जैविक व्याख्या करने लगते हैं। कुछ लोग जीवन की आंतरिक प्रक्रिया में उलझ जाते हैं। जीवन के संदर्भ में विचार करने वाले जितने भी विचारक आज तक हुए हैं, उन्होंने अपनी-अपनी तरह से व्याख्या की है। जीवन क्या है, जगत क्या है, जगत का नियंता कौन है, ये प्रश्न आज भी उलझे हुए हैं, लेकिन जो लोग तत्व वेत्ता हैं, उन लोगों ने अपनी आध्यात्मिक चेतना को जाग्रत कर इस जीवजगत के रहस्यों को जानने का प्रयास अवश्य किया है। हमारे आध्यात्मिक संतों के चिंतन का आधार यही है कि जब मूल प्रकृति से जीवन अलग होकर शरीर में प्रवेश करता है, तो उस शरीर की पात्रता, योग्यता और क्षमता की जांच अवश्य करनी चाहिए। हिन्दू धर्म-दर्शन की ऐसी मान्यता है कि जीवात्मा शरीर को माध्यम बनाकर परमतत्व या परमानंद को प्राप्त करना चाहता है। इसलिए जीवात्मा को स्वयं प्रबुद्ध और चैतन्य बनना पड़ता है। जीवात्मा तभी तक स्वस्थ विचरण कर सकता है जब शरीर स्वस्थ और प्रसन्न रहे। बीमार शरीर स्वस्थ जीवात्मा को धारण नहीं कर सकता। इसलिए प्राचीन काल से यह अनुभव किया गया कि शरीर आत्मा नहीं है, फिर भी शरीर को नैतिक आचरण करते हुए स्वस्थ रहना पड़ेगा, तभी आत्म धर्म की रक्षा हो सकती है। सबसे पहले आत्मा की रक्षा करनी चाहिए, यही धर्म है। यहां आत्मा की रक्षा का अर्थ है, शरीर की रक्षा। ऐसा इसलिए, क्योंकि आप आत्मा की रक्षा तो कर नहीं सकते, अपने शरीर की रक्षा करेंगे तो स्वत: आत्मा की रक्षा हो जाएगी। जीवात्मा पंचभूतों से निर्मित इस भौतिक शरीर में कैद है। शरीर के बगैर आत्मा के होने का कोई अर्थ नहीं है। इसलिए शरीर धर्म का निर्वाह करने वाले लोग ही शरीर धर्म, आत्म धर्म, और परमात्म धर्म का निर्वाह कर सकते हैं। आत्म धर्म के लिए तो आत्मिक चेतना की आवश्यकता पड़ती है। यह चेतना आत्मचिंतन से बढ़ती है। दूसरी ओर शरीर धर्म का पालन तभी हो सकता है, जब जिन भौतिक तत्वों से शरीर बना है, उन भौतिक तत्वों का संतुलन हमारे शरीर में बना रहे, क्योंकि जब शरीर बीमार पड़ता है, तो इसका एक ही कारण होता है कि शरीर में जो मूल भौतिक तत्व हैं उनका संतुलन बिगड़ चुका है।
जय गुरुजी.
(Since ancient times, our life remains mysterious. In ancient times it was difficult to know if this life as much as it is today. Some people assume that the body and its biological life begin to explain. Some people become involved in the internal processes of life. In terms of all the thinkers who consider life to date has been, he has his own way of interpretation. What is life, what is the universe, who is the controller of the universe, these questions are still unresolved, but those who Element Wise man, those people are waking up to their spiritual consciousness attempt to learn the secrets of the Biological world. That is the foundation of our spiritual contemplation of the saints lives different from the original nature enters the body, then the body's eligibility, qualification and competence should check. It was believed that the Hindu religion-philosophy through the medium of the individual soul, the body wants to get the ultimate reality or bliss. So the individual soul and the self-consciousness has to become enlightened. Only then can move to the individual soul, the body healthy and remained healthy. Sick body can not hold healthy spirit. Therefore, since ancient times, it was felt that the body is not the soul, then the body will be healthy by the moral code, can be protected only if the self-righteousness. First the soul must protect, it is religion. It means protecting the soul, the body's defense. That's because you can not do this to protect the soul, your body will protect auto souls will be saved. The individual soul is imprisoned in this physical body Five Elements built. The body without a soul is no meaning. Therefore body a disservice to the people the body of religion, self-righteousness, and divine can disservice. For self-righteousness requires spiritual consciousness. It is growing consciousness soliloquy. On the other hand the body religion can only happen when the physical body is made up of elements, the physical balance of elements in our bodies are made up, because when the body is ill, so this is the only reason that the body of the original Their physical element is out of balance.)
Jai Guruji.
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