जीवन में वे अवसर ढूंढ़े जाने चाहिए, जब हम अपना उपकार कर सकें। अशांति से मुक्ति चाहने वालों को स्वयं पर एक उपकार करना होगा। हमारे भीतर कुछ दैवीय गुण होते हैं। उन्हें जाग्रत करने से शांति प्राप्त करना सरल है। इन दिनों अनेक लोगों के जीवन में तीन बातें बहुत परेशान करती हैं।
जीभ पर नियंत्रण नहीं होना पहली परेशानी है। हमारा अधिकांश समय इसी में उलझा रहता है।
दूसरी बड़ी समस्या है क्रोध। बाहर से हम इसे नियंत्रित कर लेते हैं तो भीतर से ये कई बीमारियों को जन्म दे जाता है।
तीसरी दिक्कत है अपवित्र और अवांछित विचार, जो हमारे भीतर चलते ही रहते हैं। विचारों के प्रवाह में हमारी शांति बह जाती है।
ये तीनों समस्याएं ही गुलामी के लक्षण हैं। इन पर काबू पाने की औषधि का नाम है आत्म-संयम।
एक समझ लेनी चाहिए कि शरीर और आत्मा अलग-अगल हैं। यह ज्ञान ही आत्म-संयम को हमारे जीवन में ले आएगा। मैं शरीर नहीं आत्मा हूं, लगातार इसका चिंतन करना चाहिए। अशांति इसी वजह से उत्पन्न होती है कि हमने जीवन के केंद्र में शरीर और उसके सुखों को रखा हुआ है।
शरीर जन्म लेता है तो मृत्यु भी होती है और इन दोनों में दुख है। इसीलिए हम जीवनभर दुख आने से डरते हैं और सुख की चाहत में भटकते हैं।
जैसे और जितने आत्मा से परिचित होते जाएंगे, हम समझने लगेंगे कि आत्मा का न जन्म होता है, न मृत्यु। इस बोध के बाद हमारे जीवन में वही सब होगा जो हो रहा है, लेकिन हम अशांति से दूर होंगे।
जय गुरुजी.
In English:
(They should explore opportunities in life, when we can favor. Do yourself a favor freedom from disturbance would seekers. There are some divine qualities within us. It is easy to get them to infuse peace. Three things in life these days, many people are upset.
Not control the tongue is the first problem. Most of the time this is complicated in our lives.
The other big problem anger. If we are able to control it from the inside out, these are the cause of many diseases.
The third problem pollute and unwanted thoughts, let us live in. Our peace is flowing into the flow of ideas.
These three problems are characteristic of slavery. The name of the drug is to overcome these self-restraint.
One must realize that the body and soul were different. This knowledge will bring the self-control in our lives. I am not the body, the soul, must continue discussion. That is why we have created a disturbance in the heart of life is preserved body and its pleasures.
The body is born, there is death and suffering of these two. That is why we are afraid of the pain and pleasures of life are somewhere in love.
The soul will be familiar with such as we have come to understand that the soul is not born, nor death. After the realization that our lives would all be the same, but we are far from the turmoil.)
Jai Guruji.
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