चीजों में छिपा हुआ है, वह सभी जगह व्याप्त है। वह व्यक्त जगत के रूप में कुछ हद तक मानवीय अनुभूति और धारण के क्षेत्र में आता है।
यदि प्रकाश बहुत तेज है तो तुम उसे नहीं देख सकते, यदि यह बहुत ही कम है, तब भी तुम इसे नहीं देख सकते। इसलिए मैं कहता हूं कि इस व्यक्त जगत में एक विशेष सीमा तक ही तुम देख सकते हो, अनुभव कर सकते हो, धारण कर सकते हो, यानी इस सीमा से न कम न अधिक। लेकिन यह सर्वथा सत्य है कि उसका अभिप्रकाश सीमित नहीं है। वह तुम्हारी सीमा के अंदर आबद्ध नहीं है, उसका असीमित विस्तार है, उसका असीमित क्षेत्र है।
जब तुम्हारा छोटा आस्तित्विक बोध उसके संस्पर्श में आने की चेष्टा करता है, तो तुम उसके साथ एक हो जाते हो। तुम्हारी छोटी निजी सत्ता उसमें लुप्त हो जाती है। तुम जो कुछ भी देखते हो, जो कुछ भी सुनते हो, अपने मन में उसकी सिर्फ पुनर्रचना कर सकते हो, तुम केवल स्वप्न में उन चीजों को देख सकते हो। तुम्हारा मानसिक अस्तित्व उसके मन के अंदर है। इसलिए यदि तुम द्रष्टा हो, साक्षी सत्ता हो, तो वह परमद्रष्टा है।
वह परम साक्षी सत्ता है। यदि तुम आत्मा हो, तो वह परमात्मा है। तुम यदि छत हो, तो वह परम छत है।
अब हम भौतिक जगत में अपने कार्यकलापों पर विचार करें। तुम बहुत तरह के कर्म करते हो। तुमलोग सोचते हो कि हमलोग बहुत सारे कर्मों का संपादन कर रहे हैं। वास्तव में मनुष्य ईश्वर से शक्ति प्राप्त किए बिना कुछ भी नहीं कर सकता। तुम कहते हो, मैं एक शक्तिशाली व्यक्ति हूं, मैं एक स्वस्थ व्यक्ति हूं। तुम कहां से यह शक्ति प्राप्त करते हो? तुम यह शक्ति हवा, पानी, फल, भोजन आदि से पाते हो। अतः न तुम शक्ति को बनाने वाले हो और न इसके मालिक ही हो। यह प्राण शक्ति तुम्हारी नहीं है। यदि तुम कुछ दिनों तक, कुछ महीनों तक या कुछ वर्षों तक भोजन नहीं लो, तो तुम अपने आपको किसी भी तरह व्यक्त नहीं कर सकोगे। यही तुम्हारी शक्ति है।
आध्यात्मिक साधकों का दर्शन जो तंत्र के नाम से जाना जाता है, उसका कहना है कि ईश्वर एकल सत्ता है। ऐसा हम क्यों कहते हैं? जब भी आध्यात्मिक साधक कहते हैं कि ईश्वर एकल सत्ता है तो विचार करने की जरूरत है कि वे क्यों ऐसा कहते हैं। इसलिए कहते हैं क्योंकि जब मन की सारी वृत्तियां, मन को चंचल करने वाले सारे आवेग एक बिंदु में परिवर्तित हो जाते हैं, जब वे एक हो जाते हैं, तब वह मन ईश्वर के संपर्क में आ जाता है। इस तरह तुम पूरी तरह ईश्वर की कृपा पर निर्भर हो। सभी चीजों का स्वामी ईश्वर ही है और सभी कर्मों का परमकर्ता भी ईश्वर ही है।
जय गुरूजी.
In English:
(Things are hidden, it is rife everywhere. He comes to the extent of humanity as a manifest world and in the field of human perception and holding.
If the light is very fast then you can not see it, even if it is very small, even then you can not see it. That is why I say that in this world, you can see, experience, bear up to a certain extent, that is, not less than this limit or more. But it is absolutely true that his motivation is not limited. She is not bound within your limits, she has unlimited detail, she has unlimited area.
When your small personal motive tries to come in contact with him, then you become one with him. Your little personal power is lost in it. Whatever you see, whatever you hear, you can only rearrange it in your mind, you only those dreams can be seen in the dream. Your mental existence is inside her mind. So if you are a watcher, if you are a witness, then it is a savior.
He is the supreme witness power. If you are a soul, then it is divine. If you have a roof, then it's the ultimate roof.
Now let us consider our activities in the physical world. You do a lot of activities. You people think that we are editing many activities. Actually man can not do anything without gaining power. You say, I am a powerful person, I am a healthy person. Where do you get this power from? You get this power from air, water, fruit, food etc. Therefore, neither you nor you are the owner of the power. This life force is not yours. If you do not take food for a few days, for a few months or for some years, you will not be able to express yourself in any way. This is your power.
The philosophy of spiritual seekers known as the system, they say that God is a single power. Why do we say that? Whenever a spiritual seeker says that God is a single power then to think
Why do they say so. That is why because when all the minds of the mind, all the impulses that make the mind change, become one point, when they become one, then that mind comes in contact with God. In this way you are completely dependent on God's grace. Lord of all things is God and the Creator of all actions is also God.)
Jai Guruji
No comments:
Post a Comment