Wednesday, August 3, 2016

सार्थक जीवन जीने के लिए सात्विक सोच बहुत जरूरी है. ..(To live a meaningful life Ontological thinking is a must. ..)


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एक स्वामीजी सत्संग के लिए पधारे। लोगों ने प्रवचन देने का आग्रह किया तो स्वामीजी ने कहा, ‘मैं क्या बोलूं, आप सब जानते हैं। जो अच्छा है उसे करो और जो बुरा है उसे मत करो, उसे त्याग दो।’ लोगों में से एक स्वर उभरा, ‘स्वामीजी, हम सब बहुत अच्छे बनना चाहते हैं और इसके लिए यथासंभव प्रयास भी करते हैं, लेकिन फिर भी हम सबसे अच्छे तो दूर अच्छे भी नहीं बन पाते, ऐसा क्यों?’ स्वामीजी ने कहा, ‘हम अपने ऊपर जैसी मोहर लगाते हैं वैसा ही तो बनेंगे।’ लोगों ने प्रार्थना की कि स्वामीजी इसे स्पष्ट करें। 

स्वामीजी ने जेब से तीन नोट निकाले और पूछा, ‘ये कितने-कितने के नोट हैं?’ एक नोट दस रुपये का था, दूसरा सौ रुपये का और तीसरा हजार का। इसके बाद स्वामीजी ने पूछा कि इनमें क्या अंतर है? लोग चुप थे। स्वामीजी ने समझाया, ‘ये तीनों नोट एक जैसे कागज पर छपे हैं। कागज के पहले टुकड़े से दस रुपये की चीज खरीदी जा सकती है, दूसरे से सौ रुपये की और तीसरे से हजार की। ये कागज पर लगी मोहर या छाप द्वारा निर्धारित हुआ है।’

हमारा जीवन भी एक कोरे कागज की तरह ही है। हम चाहें तो उस पर दस रुपये के बराबर छोटी-मोटी विशेषता या गुण की मोहर लगा सकते हैं और चाहें तो हजार रुपये या उससे भी अधिक की कीमत के गुणों की मोहर लगा सकते हैं। जैसी छाप या सोच वैसा जीवन। इस संसार रूपी छापे खाने में मन रूपी कागज पर केवल सात्विक व जीवनोपयोगी उच्च विचारों की मोहर लगाकर ही जीवन को हर प्रकार की उत्कृष्टता प्रदान की जा सकती है। जिसकी सोच ऊंची और सकारात्मक होती है, वह अभाव को भी भाव तथा दुःख को भी सुख में बदलने में सफल हो सकता है। जिसका विचार निषेधात्मक होता है, वह सुख को भी दुःख में परिवर्तित कर देता है।

हर व्यक्ति में गुण और अवगुण दोनों होते हैं। हमारा चिंतन गुणों की ओर केंद्रित रहना चाहिए। इसमें हमें शांति और प्रसन्नता का अनुभव होगा। निराशावादी और अवगुणवादी मनुष्य अपने चारों ओर अभावों और दोषों के दर्शन करते हैं। वे अपने जीवन में शांति और प्रसन्नता का अनुभव कभी नहीं कर सकते। जो अभाव को भाव तथा दुःख को सुख में बदलने की कला जानता है, उसी का जीना सार्थक है, वही सच्चा धार्मिक है, विद्वान है। 

सफलता और सार्थक जीवन जीने के लिए सात्विक एवं ऊंची सोच बहुत जरूरी है। जिसकी सोच संकीर्ण होती है, वह सफलता का जीवन जी नहीं सकता। घड़ा बनने की जो प्रक्रिया है, वह खुदाई से लेकर आग में तपने तक की प्रक्रिया है। मिट्टी से सीधे ही घड़ा नहीं बन सकता। उसके लिए निर्धारित विधि का अनुसरण करना होगा। यही प्रक्रिया सोच को व्यापक बनाने पर भी लागू होती है।
जय गुरूजी. 
In English:

(Swami arrived for a satsang. People have sought the discourse Swamiji said, "what I speak, you know. Do what is good and what is bad, do not let her sacrifice. "The tone of the people emerged, 'Swamiji, we all want to be the very best and try to do as well as possible, but still we best so far not even be able to become good, why? "Swami said," we will have the same validity as the stamp. "people prayed that the Swamiji to elaborate.

Swamiji three notes extracted from the pocket and asked, "How many of these notes?" Was one of the ten bucks, one hundred and three thousand bucks. Swamiji then asked them what is the difference? The people were silent. Swamiji explained, "These three notes are printed on the same paper. The first thing worth ten pieces of paper can be purchased, and the third by another hundred thousand bucks. The paper has been set by the stamp or seal. "

Our life is like a blank sheet of paper. We wish him the equivalent of ten bucks minor feature or quality and if you want to put the stamp of thousand bucks or more to the price of properties can stamp. So life-like impression or thinking. The raid on the paper form of the world-mind to eat only pure and vital, high ideas stamped all forms of life can be provided excellence. Whose thinking is high and positive, he lacks sense, and also be able to change sorrow into happiness. Whose opinion is negative, it converts into sorrow to happiness.

Every person has both merits and demerits. We must remain focused on the reflection properties. It will experience peace and happiness. Pessimistic and Avgunwadi man around to see shortages and defects. Peace and happiness in their lives they can never experience. Who lack the spirit and knows the art of transforming suffering into happiness, to live in the same sense, the same is true of religious, scholar.

Success and meaningful life is a must for the virtuous and high thinking. Whose thinking is narrow, he could not live a life of success. The process of becoming a pitcher, he dug up from the firing process. Clay pot can not directly. For him to follow the prescribed method. The same process applies to broaden thinking.)
Jai Guruji.

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