सेवा मानव-हृदय के भीतर उत्पन्न होने वाला वह मिशनरी भाव है, जिसका आविर्भाव, स्वहित की अपेक्षा लोकहित के उद्देश्य से निस्वार्थ रूप से हृदय-कमल में होता है। सेवा का उद्देश्य पाना नहीं, बल्कि प्राण-पण से अपना इष्टतम अपने आराध्य या अभीष्ट को समर्पित करना है। इसका पारितोषिक भौतिक नहीं, बल्कि अभौतिक और अनुभूतिपरक होता है। सेवा शाश्वत आनंद प्रदान करने वाली अनमोल और कभी न समाप्त होने वाली आंतरिक खुशी प्रदान करती है। सेवा से हृदय सर्वथा प्रफुल्लित और आनंदित रहता है। दूसरे अर्थो में सेवा से मिलने वाले सुख और आनंद की प्राप्ति का स्थान संसार का कोई भी भौतिक सुख या उपलब्धि नहीं ले सकता। नौकरी भी किन्हीं अर्थो में सेवा की ही अनुगामिनी या सहचर है, किंतु इससे मिलने वाला पारितोषिक भौतिक रूप में उपस्थित होकर क्षणिक सुख की सृष्टि रचता है और दूसरे ही क्षण इसकी प्राप्ति से अतृप्ति, असंतोष, निराशा, घृणा, पश्चाताप, चंचलता, अरुचि और अन्यान्य नकारात्मक भाव पैदा होने लग जाते हैं। नौकरी भौतिक उन्नति या प्राप्ति की प्रत्याशा से किया जाने वाला कार्य है, जिसमें समर्पण, अपनत्व, श्रद्धा और सेवा से कहीं अधिक स्वार्थपरायणता, भौतिक प्राप्ति की उत्कंठा या जिज्ञासा समाहित रहती है। नौकरी से मिलने वाले पारितोषिक से जीवन की खुशी का ग्राफ ऊपर-नीचे होकर मन को उसी अनुपात में सुख-दुख; खुशी-पश्चाताप का सुफल या कुफल देकर उद्वेलित-आंदोलित करता रहता है, लेकिन सेवा का पारितोषिक सदैव मन की जीर्ण-शीर्ण कुटिया को हरी-भरी कर सुख, आनंद और खुशी को बहुगुणित हर्षित-प्रफुल्लित रखता है। भौतिकता केंद्रित नौकरी संसार के भवसागर में गोते खाने के लिए बाध्य करती रहती है, जबकि स्वार्थरहित सेवा ईश्वर के साम्राज्य का राही बनाकर अलौकिक सुख और आनंद के लोक का मार्ग प्रशस्त करती है। सेवा ईश्वर का स्थायी सानिध्य पाने का आनंददायी मार्ग है। वहीं नौकरी स्वयं की प्रतिभा को भौतिक इच्छाओं को पूरा करने का साधन मात्र है। सच्ची सेवा, स्वयं के इस भौतिक अभिनय से जन्म-जन्मांतरों के बंधनों को काटकर, ईश्वर के साथ तादात्म्य स्थापित करने का एक स्थायी प्रमाण पत्र है।
जय गुरूजी.
In English:
(Service to be generated within the human heart is the missionary spirit, which emerged, with the aim of self-interest rather than the public interest is selfless in the heart-lotus. The purpose of the service to be, but their optimal life-Gage adorable or is intended to be dedicated to. The reward is not physical, but it is immaterial and Anubhutiprk. Precious and eternal bliss service provider that offers never-ending inner happiness. Service is heart downright cheerful and happy. In another sense the location of the service to meet the attainment of pleasure and enjoyment of the world can not take any physical pleasure or achievement. Anugamini job to service or companion in any sense, but it gives momentary pleasure and reward physically present at the moment of its receipt from the other world and creates discontent, dissatisfaction, disappointment, disgust, remorse, restlessness, anorexia and the other takes the negative sense. Physical job advancement or the work done by the anticipation of receipt, in which dedication, affinity, devotion and service more than Swarthprayanta, anxiety or curiosity of physical receipt is included. By the premium received from the job up and down graph of the joy of life and mind, happiness and sadness in the same proportion; Pleasure-giving repentance successful or Kufl disturbs agitated-lived but always reward the service of mind dilapidated hut by the lush happiness, joy and happiness, joyful, cheerful keeps multiply. Dives into the world of job-centered materialism whirlpool forces is to eat the selfless service of the Kingdom of God by making a supernatural happiness and pleasure traveler that led to public. Enjoyable way to gain exposure to the service of God is permanent. The job itself is only a means to satisfy the desires of physical talent. Sincere service, the physical act of self-birth-Jnmantron cut ties, to identify oneself with God is a permanent certificate.)
Jai Guruji.
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