Saturday, June 11, 2016

धरती आग उगल रही है : कौन है जिम्मेदार? (Earth has been spewing fire: Who is responsible?..)



विश्व पर्यावरण दिवस सभी देशो में मनाया मनाया जाता है। यह तारीख और पर्यावरण के हिसाब से दुनिया के लिए सबसे बड़ा दिन होना चाहिए था, क्योंकि पर्यावरण और जीवन का अटूट संबंध है। लेकिन आज पूरी दुनिया में कुछ व्यक्तिगत प्रयास या NGO ही पर्यावरण के संरक्षण, संवर्धन और विकास का संकल्प लेने की बात कर रहे है, वो भी आर्थिक राजनितिक लाभ के लिए। 

यह किसी भी सभ्य समाज के लिए चिंताजनक ही नहीं, शर्मनाक भी है। पर्यावरण प्रदूषण की समस्या पर सन् 1972 में संयुक्त राष्ट्र संघ आज तक का लंबा सफर तय कर चुका है। आयोजन केवल खाना पूर्ति के लिए लग रहा है। हर साल विश्व भर के देशों का पर्यावरण सम्मेलन आयोजित किया जाता है, लेकिन पर्यावरण को बचाने की मुहीम में विकसित राष्ट्र विकाशील देशों पर यह समस्या मढ़ते रहते हैं और किसी एक देश में अमीर वर्ग गरीब लोगों पर इस समस्या का आरोप लगाते रहते है। किंतु सार्थक और सही दिशा में सोचने की पहल कोई नहीं कर रहा है। न ही सरकारी गैर सरकारी प्रयास कही भी नजर आ रहा है। हां, विज्ञापन में पर्यावरण बचाने का अभियान है किंतु धरातल पर कुछ भी नजर नहीं आता है।
  
आज कई जगह पर पर्यावरण कार्यक्रम प्रति वर्ष की भांति 5 जून को पर्यावरण दिवस आयोजित करके नागरिकों को प्रदूषण की समस्या से अवगत कराने के लिए सेमिनार गोष्टियां और रैलियां तक होंगी। इनका मकसद मुख्य उद्देश्य पर्यावरण के प्रति जागरूकता लाना नहीं बल्कि राजनीतिक रोटियां सेकना मुख्य काम दिखाई देता है। ये आयोजन अवाम की चेतना कुंद करने का काम भी साथ ही साथ कर रहे है, क्योंकि इनसब की मांग बहुत सतही और तात्कालिक है। जबकि समस्या बहुत गंभीर हो चुकी है।

एक तरफ पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 19 नवंबर 1986 से पर्यावरण संरक्षण अधिनियम लागू हुआ। इसमें जल, वायु, भूमि - इन तीनों से संबंधित कारक तथा मानव, पौधों, सूक्ष्म जीव, अन्य जीवित पदार्थ आदि पर्यावरण के अंतर्गत लाने का कानूनी प्रयास किया गया। वहीं दूसरी तरफ पहाड़ों, जंगलों नदियों और प्राकृतिक संपदाओं का दोहन करने के लिए देशी-विदेशी कंपनियां बहुत तेजी से काम कर रही हैं, और पर्यावरण का विनाश कर रही हैं। यह काम भी सरकारों के संरक्षण में हो रहा है। यह काम पूरी दुनिया में बहुत तेजी से बढ़ा है, जिसका नतीजा,  निरंतर पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है।

पूरी दुनिया में गर्मी के प्रकोप से इस बार लाखों लोगो की जानें जा चुकी है। लीबिया दुनिया के सबसे गर्म देशों में से एक है। यहां का तापमान 58 डिग्री सेल्सियस तक रिकॉर्ड किया जा चुका है। विश्व में सऊदी अरब का तापमान 50 डिग्री के आस-पास हमेशा बना रहता है। इस बार यहां का औसतन तापमान 52 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया। इराक, अल्जीरिया का अधिकतम तापमान 50 डिग्री सेल्सियस रहता है जो इस बार  50-53 डिग्री सेल्सियस तापमान तक पहुंच चुका है।

इस बार भारत के राजस्थान के फलोदी का सर्वाधिक तापमान 51 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया है। आसमान से सूरज लगातार आग उगल रहा है। लोगों का घर से बाहर निकलना दूभर हो गया है। वहीं दिल्ली में पारा भी 45 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया। तेलंगाना राज्य में इस साल गर्मियों की शुरुआत में 309 लोगों की मौत हुई है। नालगोंडा जिले में सबसे ज्यादा 90 लोगों की मौतें हुई हैं, जबकि महबूब नगर में 44 और खम्माम में 37 लोगों की हो चुकी है। वहीं ओडिशा में इस साल गर्मी से अब तक मरने वालों की संख्या 188 से बढ़कर 191 पहुंच गई। कुल मिलाकर आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में लू से मरने वाले लोगों की संख्या 1979  तक जा चुकी है।

देश के कई हिस्सों में पड़ रही भीषण गर्मी और लू की चपेट में आने से मरने वालों का आंकड़ा 2000 से ऊपर जा चुका है और पिछले तीन सालों में लू से 4200 से ज्यादा लोगों की मौत हुई है।

मौसम विभाग के अनुसार देश में इस बार गर्मी के मौसम में तापमान सामान्य से एक डिग्री सेल्सियम अधिक रहेगा। इसके साथ ही भारत के मध्य और उत्तर पश्चिमी हिस्सों में गर्मी से कोई राहत मिलने की उम्मीद नहीं है।

एक सर्वे के अनुसार भारत के शहरी इलाकों में 2080 तक गर्मी से संबंधित मौत के मामलों की संख्या में दोगुनी बढ़ोतरी हो जाएगी। यह अनुमान भारतीय प्रबंधन संस्थान- अहमदाबाद (आईआईएम) की ओर से कराए गए अध्ययन में लगाया गया है। आईआईएम के शोधार्थी अमित गर्ग, भारतीय गांधीनगर संस्थान के विमल मिश्रा और दिल्ली आधारित गैर सरकारी संगठन ‘काउंसिल फॉर एनर्जी, इनवायरमेंट एंड वाटर’ के सदस्य हेम ढोलकिया के अनुसार 21वीं सदी के आखिर में गर्मी से संबंधित मौत के मामलों में 71 से लेकर 140 फीसदी तक वृद्धि का अनुमान है।

अब सवाल उठता है कि जलवायु परिवर्तन के तहत गर्मी से संबंधित मौत के मामलों में वृद्धि क्या सिर्फ एक प्राकृतिक मौत के रूप में माना जाना चाहिए या इसे लाभ आधारित व्यवस्था द्वारा दी गई मौत के रूप में देखना चाहिए। सिर्फ भारतीय नीति-निर्माताओं को ही नहीं दुनिया के सभी देशों को जलवायु परिवर्तन की चुनौती को लेकर योजना नहीं बना सकते। देश ही नहीं पूरी दुनिया के प्रबुद्ध लोगो को आम जनता के साथ मिलकर पर्यावरण को बचाने काम अपने हाथों में लेना पड़ेगा क्योंकि, दुनिया को बचाना आज की सबसे बड़ी जरुरत है।
जय गुरूजी. 

In English:

(Celebrated World Environment Day is celebrated in all countries. This date and according to the environment to the world was supposed to be the big day, the environment and life is a symbiotic relationship. But some individual effort or NGO in the world today the protection of the environment, promotion and development of the resolutions are talking about, that too for economic political gain.

It is not only distressing for any civilized society, is shameful. In 1972 the United Nations on environmental pollution problem to date has come a long way. Looks only for organizing the food supply. Environmental Conference held in countries around the world each year, but the campaign to save the environment in the developed countries and developing countries live in one country on this issue, attributing the problem on poor accuse the rich elite live. But meaningful and is no right-thinking initiatives. Nor the government seems to be non-governmental efforts elsewhere. Yes, advertising campaign to save the environment, but do not see anything on the ground.
  
At various environmental programs today like every year on June 5, World Environment Day by organizing seminars to make citizens aware of the problem of pollution and rallies will Goshtiaan. The main objective aimed to bring environmental awareness rather foment political loaves main task appears. Blunt the consciousness of the people involved in these arrangements are as well, because Insb demand is very superficial and temporary. While the problem has become very serious.

Aside from the Environmental Protection Act, Environmental Protection Act came into force November 19, 1986. The water, air, soil - and all three factors related to human, plants, micro-organisms, the environment and other living matter was attempting to bring legal. On the other hand the mountains, rivers and forests to exploit their natural resources by foreign companies are working very fast, and there are environmental destruction. This work also is under the protection of governments. It has grown very fast in the world, the result, the earth's temperature is rising constantly.

All the heat this time of the outbreak have claimed the lives of millions of others. Libya is one of the world's hot countries. The temperature 58 ° C have been recorded. Saudi Arabia, the world's temperature is always around 50 degrees. This time, the average temperature was 52 degrees Celsius. Iraq, Algeria, which this time is the maximum temperature of 50 ° C has reached 50-53 degrees Celsius.

This time, most of India's Rajasthan Phalodi temperature is 51 degrees Celsius. The sun is constantly spewing fire from the sky. People have been difficult to get out of the house. While in Delhi, the mercury touched 45 degrees Celsius. Telangana state in early summer this year 309 people have died. Nalgonda district, 90 people have died in the worst while Mahabubnagar 44 and 37 people have been in Khammam. The state so far this year, the death toll from the heat reached 191 from 188. Andhra Pradesh and Telangana, who died of heat stroke in the overall number of people have been through 1979.

Falling in many parts of the country are victims of heat stroke deaths has exceeded 2000's figure in three years, more than 4,200 people have died of heat stroke.

According to the weather office, this time in the summer season will be more Selsiam one degree above the average. Also central and northwestern parts of India do not expect relief from the heat.

According to a survey in urban India by 2080 the number of cases of heat-related deaths will be doubled. The estimated Indian Institute of Management, Ahmedabad (IIM) is engaged in the study conducted. IIM researcher Amit Garg, India Gandhi Institute Vimal Mishra and Delhi-based NGO Council for Energy, Environment and Water, "a member of the hem drummer according to the 21st century at the end of heat-related death cases, 71 to 140 per cent the growth estimates.

Now the question arises that under climate change increase in heat-related death cases should be regarded as just a natural death or was killed by the profit system as a must see. Indian policy makers, not just all countries of the world can not plan on climate change. Country as well as the enlightened people of the world together with the general public, will take charge of the work to save the environment, save the world's greatest need today.)
Jai Guruji.

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