Monday, June 27, 2016

आस्था रखने के लिए बंधन की नहीं, मुक्त होने की आवश्यकता है...(The bond for the believer No need to be free...)


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उठते-बैठते भगवान का नाम लेते रहने पर भी इंसान को उम्र बढ़ने के साथ यह चिंता होने लगती है कि भगवान का ध्यान करने का न तो जीवन में समय मिला, न सही दिशा दिखाने वाला कोई गुरु, जो पार उतरवा देता। पर यह याद रखना ज्यादा जरूरी है कि अपने हर रिश्ते को वह चाहे भगवान से हो या इंसान से, सीधे जोड़ना सबसे अच्छा होता है। 

जब हम किसी तीसरे का सहारा लेते हैं तो संशय पैदा होने का डर रहता है। कोई दूसरा हमारी भावना को कितना समझ पाएगा, यह कोई नहीं जान सकता। 

कई बार यह संदेह भी उठता है कि अभ्यास के सहारे नाम स्मरण करना, व्रत-उपवास निभाना क्या भक्ति का सही रूप है? क्या वे मेरी बात सुनेंगे? भक्त तो विधिवत मंत्र-पाठ आदि करते हैं, घंटों पूजा में लीन रहते हैं, उनके सामने मेरी क्या बिसात होगी? 

पर भक्त वही सच्चा नहीं है, वह भी है, जो ज्ञान और भक्त के मार्ग में ऊपर उठता है। बल्कि वह है जो मन की गहराई से उसके सुदृढ़ आधार को पकड़े रहता है।

धर्मप्रचारक स्टेनली जोन्स ने हिमालय क्षेत्र में प्रार्थना की जगह एक लता को चीड़ के पेड़ तक पहुंचने की कोशिश करते देखा, मानो वह उच्चतर जाने की आकांक्षा से प्रेरित हो रही थी। एक सुबह उसे वहां पहुंचा हुआ देख कर खुशी हुई। पर अगली सुबह का दृश्य उन्हें दुखी कर गया। रात को आए तूफान ने उसे उखाड़ दिया था। 

वह धरती पर गिरी पड़ी थी। तब देखा वह पेड़ की एक छोटी कमजोर डाल के सहारे उठी थी, जो तूफान का सामना नहीं कर पाई। अगर वह मजबूत पेड़ के तने से जुड़ी होती तो टूटने की नौबत नहीं आती।

स्टेनले ने इस कथा के माध्यम से बताया- संसार में बहुत से लोग भगवान तक पहुंचने की इच्छा रखते हैं। पर केवल एक अच्छा निश्चय काफी नहीं होता। कई बार हमारा चुना माध्यम उस छोटी, टूटी डाल जैसा दुर्बल साबित हो जाता है जो खुद ही इतना समर्थ नहीं होता कि लक्ष्य तक पहुंच पाए। ऐसा सहारा संकट में हमारा साथ नहीं दे सकता। 

वास्तव में आस्था रखने के लिए हमें बंधन की जगह मुक्त होने की आवश्यकता है। क्या बच्चा मां का दूध पीने से पहले कहता है कि पहले यह सिद्ध करो कि तुम मेरी मां हो? 

जब किसी के मन में आध्यात्मिक भावना जागती है, तब उसे उनके चेहरे और आवाज का चमत्कार पता चल जाता है। वह प्रभु बाहर से पुकारता है और भक्त की आत्मा भक्ति में डूब जाती है। उसे उनकी आवाज सुनाई दे जाती है, ‘मैं तुम्हारे पास हूं।’ अतः किसी और का सहारा न ढूंढकर अपने मन और अपने ढंग से उन पर भरोसा रखने से वे कभी साथ नहीं छोड़ते। स्वयं अपने साथ लगा लेते हैं।

In English:

(It is important to remember that every relationship whether to God or to man, it is best to add directly.

When we resort to a third generation of the doubt is fear. How else can understand our feelings, no one can know.

At times it also raises doubt remember that name with the help of exercise, play a fast-fast what is the correct form of devotion? They will listen to me? Devotees chant the duly-text etc., the hours are absorbed in worship, him will my chicken feed?

The same is not true on the man, he is also in the path of knowledge and the man wakes up. But from the depths of the mind is holding his bedrock.

Preacher Stanley Jones Himalayan place of prayer, a vine seen trying to reach the pine tree, as if he had been inspired by the desire to go higher. Glad to see him one morning arrived. The next morning at the scene, they were sad. The night was uprooted by the storm.

He had fallen to the ground. Then she saw the tree broke through to put a little weak, which could not withstand the storm. If he was so attached to the tree trunk does not happen to break.

Stanley told through the narrative world, many people are willing to reach out to God. There is only one good enough to decide. Many times we chose the smallest medium, which is proving to be weaker than put the broken myself so would not be able to reach that goal, he said. It can not help us in crisis.

In fact for the believer needs to be free to replace us bond. The child from the mother's milk

First it says that first prove that you're my mother?

When a spiritual sense in the mind awakens, he realizes the miracle of his face and voice. Calls out the spirit of the Lord and the devotees are immersed in devotion. It is their voices heard, "I am with you." So, not to resort to finding another way your mind and your trust in them than they ever leave together. When putting together their own.)

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