Tuesday, March 8, 2016

कुदरत के पास ऐसा कुछ नहीं जो इंसान को विभाजित करता हो.

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सूरज हर रोज अपने समय पर निकलता है. बस, उसके निकलते ही चारो ओर प्रकाश फ़ैल जाता है. उसकी रोशनी में एक हिन्दू का माकन रोशन होता है तो सिख, मुसलमान, ईसाई, और पारसी के घर भी उजाले का आनंद लेने लगते है. सूरज सबको सामान प्रकाश देता है. अगर वह समय पर न उगे तो सम्पूर्ण धरती अंधेरे में डूब जाए. विज्ञानं कहता है. जिस दिन सूर्य ठंडा जो जायेगा, सात मिनट के अंदर प्रलय आ जाएगी. इसी तरह वर्षा पुरे देश में होती है, वह किसी एक धर्म, जाती, भाषा में भेद-भाव नहीं करती। इतना ही नहीं, उसके मन में बंजर और उपजाऊ का भी बिलकुल भेद नहीं होता. वह आपद धर्म का पालन करती है. अगर वह समय पर न बरसे तो धरती आग उगलने लग जाए. हवाओं का भी यही स्वाभाव होता है. वे न अमीर-गरीब, हरिजन-महाजन, गोरा-काला, हर आदमी, जीव-जंतु, पक्षी तक पहुंचकर सबको प्राण सौंपती है. 
हर कोई रात-दिन देखता है की खेत सबके लिए एक समान फसल पैदा कर रही है. 
गायें दूध देने में किसी के साथ कोई फर्क नहीं करती, पेड़ हर किसी को फल देते हैं. रोशनी, हवा, दूध, फसल कोई भी अपने में हिन्दू-मुसलमान-ईसाई नहीं होती. कुदरत के घर ऐसी कोई चीज नहीं, जो जाती मजहब आदि में विभाजित हो अथवा विभाजित करती हो.  हर वस्तु अपने में भेद मुक्त, व्यापक और सार्वजनीन है.  
बच्चा जब माँ की कोख से जन्म लेता है, न उसका कोई नाम होता है, न कोई जाति और न ही मजहब होता है. हम बस पहचान के लिए नाम देते है, फिर उसे जाती और धर्म से जोड़ देते है. जन्म के साथ इन चीजों से सम्बन्ध न होने का बावजूद उसे स्वीकारना पड़ता है. यही से अपना परया शुरू हो जाता है. भेद की दीवारें इतनी ऊँची हो जाती है की उसे तोड़ पाना बहुत मुश्किल हो जाता है. 
हालांकि इसे तोड़ने के लिए हमारे ऋषि मुनियों ने हमें अभेद दृष्टि दी है. महावीर ने कहा की मनुष्य जाती तो एक है. बंगाल के महान संत चंडी दास ने जो कहा - मेरे भाइयो सुनो! सबसे ऊपर मनुष्य ही सत्य है, उसके ऊपर और कुछ नहीं. 
भारतीय अंतरिक्ष यात्री चाँद पर पहुँचते ही अपनी पहली प्रतिक्रिया में कहते है -  यह धरती मुझे सम्पूर्णता एक और अखंड दिखाई दे रही है. 
फिर हमें क्यों नहीं लगता की जाती, भाषा, महजब और देशो के भेद अपने में मिथ्या और निरर्थक है. भारतीय मनीषी हमेशा से कहते आये है मेरा और पराया ये छोटे दिलों की बातें है. जिनके दिल उदार है, उनके लिए यह सम्पूर्ण धरती एक परिवार है. धर्म वह है जो विश्व-परिवार की भावना विकसित करे. उपनिषद के ऋषियों ने गाया है - यहाँ सारा विश्व एक घर है.
जय गुरुजी. 
  

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