Tuesday, November 18, 2014

नजर बदलें, नजारे बदल जाएंगे सोच बदलें, सितारे बदल जाएंगे ...


एक गुरु के सामने कुछ शिष्य बैठे हुए थे। गुरु ने बातों-बातों में एक सवाल पूछा- ‘सबसे अधिक मूल्यवान कौन सी रोशनी है/’ एक शिष्य ने उठकर जवाब दिया- ‘सूरज की रोशनी। यह न केवल उजाला देती है बल्कि प्राण और आरोग्य भी देती है।’ दूसरे शिष्य ने चांद की रोशनी को मूल्यवान बताया क्योंकि रात के अंधेरे को वही चीरती है। उस समय सूरज कोई काम नहीं आता। गुरु के चेहरे पर संतुष्ति न पाकर अन्य शिष्यों ने भी अपने अपने उत्तर सामने रखे। किसी ने रत्न-मणियों को तो किसी ने दीपक और मोमबत्तियों को बेशकीमती कहा। लेकिन गुरुदेव को किसी का भी उत्तर संतोष नहीं दे सका। सभी शिष्यों ने उनसे निवेदन किया- ‘अब आप ही सही उत्तर बताएं।’ तब उन्होंने कहा- ‘तुम सबके उत्तर भी अपनी-अपनी जगह सही हैं। किंतु इन सब रोशनियों का महत्व तभी है जब हमारी आंखों की रोशनी सही सलामत हो। इसके बिना इन सबका कोई उपयोग नहीं। इसलिए सबसे मूल्यवान है- आंखों की रोशनी।’ इसके बाद वे कुछ रुके और बोले- ‘यह जवाब भी अपनी जगह आधा अधूरा है। इतनी मूल्यवान होते हुए भी इन आंखों की सबसे बड़ी कमी यह है कि ये दूसरों का चेहरा तो देख लेती हैं, लेकिन खुद का चेहरा नहीं देख पातीं। 

इस धरती पर ऐसा एक भी प्राणी नहीं मिलेगा जो अपना चेहरा अपनी ही आंखों से देख लेता हो। ये आंखें सदा औरों के चेहरों को देखने में लगी रहती हैं। धर्म ही वह आंख है जिससे आदमी अपना चेहरा देख सकता है।’

धर्म कहता है कि तुमने आज तक औरों चेहरे तो खूब देख लिए, अब जरा अपना भी देख लो। जिस दिन अपनी कालिख और धब्बे नजर आ जाएंगे, उस दिन से दूसरों की बुराई पर बात करना बंद कर दोगे। धर्म का अर्थ ही है कि हम अपने अवगुण और दूसरों के गुण देखें। तब हम पाएंगे कि औरों में गुणों और योग्यताओं की कमी नहीं है। यही है हंस की नजर। इसे पाने के लिए बड़ी साधना की जरूरत होती है। इसी नजर को पाने के लिए लोग जप-तप, पूजा-पाठ करते हैं। लेकिन याद रखना चाहिए कि साधना ही नहीं, जीवन के हर क्षेत्र में इस हंस दृष्टि का बहुत महत्व है। यदि यह न समझे तो हम सब बगुले की भूमिका में आ जाएंगे जो मोती के बजाय मछलियों पर ही ध्यान टिकाए रहता है। नजर को बदलिए, नजारे बदल जाएंगे। सोच को बदलिए, सितारे बदल जाएंगे। किश्तियां बदलने से कोई फायदा नहीं, दिशा बदलिए किनारे बदल जायेंगे।

Jai Guruji.

E-mail: birendrathink@gmail.com

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