सफल और सार्थक जीवन का सबसे बड़ा आधार-सूत्र संतोष है। संतोष के परम सुख के विषय में एक संत ने कहा है कि चाह से ही चिंता उत्पन्न होती है। चिंता ही दुख का कारण है। जिसकी चाहत समाप्त हो गई है वह प्रसन्न है, जितना है उसी में खुश है, ऐसा व्यक्ति ही शहंशाह है। हमारे अंतर्मन में अनंत इच्छाएं हैं और जितनी ज्यादा इच्छाएं होती हैं, उतना ही असंतोष बढ़ता है। इसी से हम कितनी मुश्किलें अपने जीवन में खड़ी कर लेते हैं। यदि हम अपनी इच्छाओं को कम कर दें तो वे मुश्किलें आसान हो जाएंगी। जिसके मन में संतोष होता है, उसका मन पूरा भरा होता है, किंतु जिसके मन में निरंतर इच्छाएं उठ रही हैं, उसका मन तो कभी नहीं भरता। तब क्यों न हम अपनी भौतिक इच्छाओं की पूर्ति से हटकर अपने जीवन को ऊंचा उठाने वाली भावनाओं को अपने भीतर विकसित कर लें। यह भी तपस्या का एक रूप है। तपस्या को यदि इस तरह हम अपने जीवन में अमल करें, तो कोई बहुत मुश्किल बात नहीं है। जीवन को अच्छा बनाना एक तरह से जीवन को तराशना है। वे लोग अधिक सुखी जीवन जीते हैं, जिन्होंने अपने जीवन में संतोष को धारण किया है। जबकि तरह-तरह की कामनाएं-इच्छाएं रखने वाले लोग अक्सर दुखी देखे गए हैं। मिथ्या दृष्टिकोण के कारण ऐसा होता है। लेखक जेम्स एलन इस बारे में एक स्थान पर लिखते हैं, ज्यादातर लोग यह मानते हैं कि वे तब और आनंद से रह पाते या खुद को सौभाग्यशाली मानते, अगर उनके पास फलां-फलां वस्तुएं होतीं। थोड़ी सी संपत्ति और होती या थोड़े से अवसर और मिलते तो ज्यादा सुखी होते, जबकि सच यह है कि जब हमारी आकांक्षाएं और ऐसे दिखावे बढ़ते हैं तो असंतोष ज्यादा बढ़ता है। यदि सुख और आनंद अपने अंदर नहीं मिल सकता तो यह कहीं और कभी नहीं मिल सकता। संतोष के साथ सुख की बात कबीरदास ने सरल शब्द में कही है अर्थात भगवान से इतना ही कहें कि हे प्रभु मेरे पास इतना हो कि जिसमें मैं और मेरे परिवार का भरण-पोषण हो जाए। अगर कोई संत मेरे द्वार पर आए तो उसे भूखा न जाना पड़े। जिसने संतोष की इस महिमा को समझ लिया, वास्तव में वही धनवान है और उसी का जीवन सार्थक और संतोषप्रद है।
जय गुरुजी.
In English:
(Successful and meaningful life is the greatest base-formula satisfaction. Satisfaction about the beatification of a saint is said that the desire arises from the concern. The only concern is the cause of suffering. He is pleased that the job has ended, much in the same happy person is the king. In our inner desires and higher aspirations are infinite, the discontent grows. By this we are able to create many problems in your life. If we turn down your desires, so they will be easier difficulties. The satisfaction in mind, his mind is full, but the constant desires in mind getting up, never fills his mind. Then why do not we move away from the fulfillment of their material desires to raise his life may develop your inner feelings. It is a form of penance. Austerity in the way we carry our life, then there is a very difficult thing. Pare life has a way to make life better. They live more happily, who is holding the satisfaction in your life. Desires-desires of the kinds of people who are often seen miserable. This is due to the false perspective. Author James Allen writes about a place, most people believe that they live in and enjoy it then or consider themselves lucky if they do such-and such things. The property is a little more or a little more happy, so are the opportunities and meet the truth is that our expectations are growing dissatisfaction over such increases appearances. If you can not get inside the pleasure can never get it anywhere else. Kabir Das spoke with satisfaction of all that is said in the simple word of God, so much so that I say, Lord, which I will be supporting my family. If someone came to the door of my saint not have to go hungry. The satisfaction of the glory of it, and that in fact he is rich and satisfying life is meaningful.)
Jai Guruji.
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