रावण पर विजय पाने के बाद अयोध्या लौटकर श्रीराम का दरबार लगा। भक्तों को मनचाही वस्तु, ढेर सारा स्वर्ण आदि भेंट किया जा रहा था। हनुमान का नंबर आया तो प्रभु और भक्त आमने-सामने थे। श्रीराम ने कहा -‘मांगो, आज मैं बहुत प्रसन्न हूं। तुम्हें क्या दिया जाए’? हनुमान जी ने कहा - ‘प्रभु बिना मांगे ही आपने सब कुछ दिया है, फिर भी आप देना चाहते हैं तो अपनी भक्ति और प्रेम मुझे दीजिए। और कुछ नहीं चाहिए।’ फिर भी मां सीता नहीं मानीं और मोतियों की एक माला हनुमान जी को भेंट में दे दी।
हनुमान ने मोती की माला के मनके एक-एक कर तोड़े और देखकर फेंकने लगे। राम, लक्ष्मण, सीता यह देखकर हैरान हो गए। राज दरबारी व अन्य भी सोचने लगे कि इतनी सुंदर माला को कैसे नष्ट कर रहे हैं। किसी ने तो यहां तक कह दिया- वानर हैं न। मोती की माला उन्हें रास कैसे आ सकती है, पूछा गया - ‘हनुमान, यह माला क्यों तोड़ रहे हो?’ हनुमान ने उत्तर दिया - ‘जिसमें मेरे प्रभु का वास नहीं है, वह चीज मेरे किस काम की’, किसी ने ताना मारा कि क्या तुम्हारे शरीर में भगवान श्रीराम का वास है? इस शरीर को भी नष्ट कर दो। यह सुनते ही हनुमान ने अपना सीना चीरकर दिखा दिया श्री राम को।
हनुमान जी बहुत कुछ मांग सकते थे। अयोध्या का आधा राज्य भी मांगते तो श्रीराम दे देते। वानर की आकृति को बदलकर सुंदर रूप मांग सकते थे। मुक्ति मांग सकते थे, लेकिन नहीं। सिर्फ एक चीज मांगी - भक्ति। और कुछ नहीं।
क्यों भक्ति ही मांगी? क्योंकि भक्ति में ही सब कुछ है। भक्ति में मुक्ति है, आनंद है और प्रभु के दर्शनों का सान्निध्य है। श्रीचरणों में आश्रय है, प्रेम है। हर समय ईश्वर को ही चिंता रहती है अपने भक्त की, हर आवश्यकता पूरी करने की। इसलिए भक्ति में ही सब कुछ है। हमें भी यही सीखना है कि हम भी भक्ति का वरदान मांगें और कुछ नहीं।
जरा देखिए, आजकल भक्त भगवान से क्या-क्या नहीं मांगते। बेटा मांगते हैं, धन-मकान मांगते हैं, अच्छी पत्नी मांगते हैं, अच्छी नौकरी चाहते हैं। हमारे पास एक लंबी सूची है भगवान से मांगने के लिए जो कभी पूरी ही नहीं होने वाली। अच्छा होगा, हम विचार करें हनुमान जी की बात पर। और ईश्वर से सिर्फ उसकी भक्ति ही मांगें। भक्ति वह वट वृक्ष है जिसकी छाया में असीम शीतलता, आनंद और संतोष मिलता है। आनंद पाने की प्यास हमें बराबर रहती है। भक्ति रूपी सरिता में वह आनंद का पानी मौजूद है। इसलिए भक्तों ने हमेशा भक्ति ही मांगी है। वे भक्ति का महत्व अच्छी तरह से समझते हैं।
जय गुरुजी.
In English:
(Rama returned to Ayodhya after victory over Ravana took the court. Devotees wanted item, lots of gold, etc. was being presented. Lord Hanuman devotee opposite number were to come. Shriram -'mango said, today I am very happy. If you did? Hanuman said - "God is everything you've asked for, without, however, if you want to give me your devotion and love. And some do not. "Still not disregarded mother Sita and Hanuman offering of beads in a rosary given.
Hanuman beaded garland of pearls at one broke and began throwing. Rama, Sita was shocked. Secret court and how others might think are destroying such a beautiful necklace. So even if someone is not telling the monkey gave. How could he have gone pearl beads, were asked - "Hanuman, why are breaking the chain?" Hanuman replied - "which I do not believe in God, that thing which I work," taunted someone What is the abode of Lord Rama in your body? Even destroy this body. The hearing showed Hanuman Rama to rip his chest.
Hanuman could demand a lot. The state also sought to give the Ram of Ayodhya half. As the demand by changing the shape of the apes were beautiful. Could demand the liberation, but no. Just ask one thing - devotion. Nothing.
Why only ask devotion? In the devotion is everything. Devotion to freedom, to enjoy the proximity of the Lord's Darshan. Feet is the shelter, love. God is the concern of all of his devotees, to fulfill every requirement. So is everything in devotion. We also learn that nothing that we ask the gift of devotion.
Just see what God does not ask the man nowadays. Son asked, money-house demand, good wife ask, would a good job. We ask God for a long list that never finished. Well, we consider the point of Hanuman. Devotion to God and ask Him to. Coldness boundless devotion to the banyan tree whose shade, get pleasure and satisfaction. Is equal to us to enjoy the thirst. Enjoy the water in the river is a form of devotion exist. Therefore devotees have always sought to devotion. They well understand the importance of devotion.)
Jai Guruji.
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