Monday, March 9, 2015

अहिंसा ..(non-violence ...)

अहिंसा ..(non-violence ...)




Image result for non violenceशाब्दिक तौर पर किसी को मारने की इच्छा हिंसा कहलाती है और ऐसी इच्छा का न होना अहिंसा कहलाता है। अहिंसा के तीन रूप हैं जो उत्तरोत्तर श्रेष्ठ हैं। किसी को अपने शरीर द्वारा कष्ट पहुंचाने की इच्छा न करना शारीरिक अहिंसा है। वाणी से कष्ट की इच्छा न करना वाचिक अहिंसा है और किसी का मन से भी बुरा न चाहना मानसिक अहिंसा है। हमें मनसा, वाचा और कर्मणा, तीनों रूपों में हिंसा से बचना चाहिए। आज के युग में अहिंसा का मतलब शारीरिक हिंसा न करने से ही लिया जाता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि यह प्रत्यक्ष रूप में दिखाई पड़ता है।  शरीर पर लगी चोट के निशान तो फिर भी धूमिल हो जाते हैं, पर वाचिक हिंसा शायद सबसे ज्यादा आघात करती है। वाचिक ¨हिंसा मन पर वार करती है। वाणी किसी मनुष्य के अंतर्मन को जानने का सीधा माध्यम है। जैसी सोच, वैसी बोल। यह तो सीधी सी बात है कि जो वाणी के लिए अच्छा होता है उसे सभी पसंद करते हैं। विद्यालय, ऑफिस, व्यापार हर जगह यह बात लागू होती है। इस हिंसा को रोकने के लिए बस इतनी शपथ लेनी है कि हम भले कुछ न बोलें, पर कड़वा न बोलें। यह शपथ गुस्से पर काबू करना भी सिखा देगी और बेबुनियाद बातों पर विश्वास करना भी छुड़वा देगी। यानी एक वृत्ति पर विजय पाना कई वृत्तियों पर विजय पाने जैसा है। हमारे मन के तार दूसरे लोगों, यहां तक कि पशु-पक्षियों के तार से भी जुड़े रहते हैं। इसलिए जब हम किसी के लिए बुरा सोचते हैं, तो उसके मन में भी हमारे लिए दुर्भाव पैदा हो जाता है। यदि हमारा मन किसी के लिए सद्भावनायुक्त है तो उसके मन में हमारे प्रति कोई द्वेषभाव भी है तो वह समाप्त हो जाता है। महात्मा आनंद स्वामी ने अपनी जीवनी में कहा है कि जब वह स्वामी गंगागिरि के सान्निध्य में तप कर रहे थे तो एक शेर को उनकी ओर आते देख घबराकर स्वामीजी को सचेत करना चाहा, पर स्वामी गंगागिरि तटस्थ थे। जब शेर उनके पास गया, तब उन्होंने उसकी पीठ सहलाई और प्यार किया। शेर परे चला गया। अहिंसा को इसलिए परम धर्म कहा गया है, जिसमें सब बैर, भय और आशंकाएं दूर हो जाती हैं। सच तो यह है कि आज समाज में जो भी अराजकता दिखाई दे रही है, उसका बुनियादी कारण लोगों में नकारात्मक विचारों का होना है। ये नकारात्मक विचार ही कालांतर में किसी न किसी प्रकार की ¨हिंसा में तब्दील हो जाते हैं।



In English:

(Literally want to kill anyone willing absence of violence and non-violence is called is called. There are three forms of violence increasingly superior. Do not wish to curse someone by your body's physical violence. Do not wish to suffer from speech is non verbal and psychological violence seek one's mind is not too bad. We purpose, covenant and karmana, three forms of violence should be avoided. In today's era of non-violence is taken to mean the physical violence. So it appears directly. The bruises on the body, so are still foggy, but verbal violence is perhaps the most vulnerable. ¨vocal verbal attacks the mind. Knowing a man's conscience is a direct voice medium. Like thinking, so to speak. It is obvious that what is good for speech like it all. School, office, business is the case everywhere. Is just such a pledge to stop the violence that we do not even say anything, speak to the bitter. It will also teach oath to temper and uncoordinated to believe will also freed. Overcome the instinct to overcome the many professions like. Our minds wire others, even birds are also associated with the strings. So when we think the worse, his mind is born for us malevolence. If our mind is someone Containing goodwill no hostility towards us in his mind even if he is finished. Mahatma Anand Swami said in his autobiography that he was the owner Gangagiri tenacity in the company of a lion coming to see her upset Swamiji wanted to warn, the owner Gangagiri were neutral. He was the lion, he loved her back Shlai. Tiger went beyond. Non-violence is the so called ultimate religion, which all hate, fear and fears vanish. The fact that the chaos which appears in today's society, it is the basic reason why people have negative thoughts. These negative thoughts in the violence of the time, it becomes rough.)

Jai Guruji

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