Thursday, February 19, 2015

जो चाहेंगे पा लेंगे, इसके लिए बस आपकी मानसिक तैयारी जरूरी है ...


एक डाकू एक संत के पास आया और बोला, ‘महाराज! मैं जीवन से परेशान हो गया हूं। जाने कितनों को लूटकर दुखी किया है, घरों को तबाह किया है। मुझे कोई रास्ता बताइए, जिससे मैं इस बुराई से बच सकूं।’ संत ने बड़े प्रेम से कहा, ‘बुराई करना छोड़ दो, उससे बच जाओगे।’ डाकू ने कहा, ‘अच्छी बात है। मैं कोशिश करूंगा।’ डाकू चला गया। कुछ दिनों के बाद वह फिर लौट आया और बोला, ‘मैंने बुराई छोड़ने की बहुत कोशिश की, लेकिन छोड़ नहीं पाया। मैं अपनी आदत से लाचार हूं। मुझे कोई दूसरा उपाय बताइए।’ संत ने थोड़ी देर सोचा, फिर बोले, ‘अच्छा, ऐसा करो कि तुम्हारे मन में जो भी बात उठे, उसे कर डालो, लेकिन प्रतिदिन उसे दूसरे लोगों से कह दो।’ यह सुनकर डाकू को बहुत खुशी हुई। उसने सोचा कि इतने बड़े संत ने जो मन में आए, सो कर डालने की आज्ञा दे दी है। अब वह बेधड़क डाका डालेगा और दूसरों से कह देगा। वह उनके चरण छूकर लौट गया। कुछ दिनों के बाद वह फिर संत के पास आया और बोला, ‘आपने मुझे जो उपाय बताया था, उसे मैंने बहुत आसान समझा था, लेकिन वह बड़ा कठिन निकला। बुरा काम करना जितना मुश्किल है, उससे कहीं मुश्किल है दूसरों के सामने अपनी बुराइयों को कह पाना। मुझसे यह नहीं हो पाएगा। अब मैंने डाका डालना ही छोड़ दिया है।’ यह सुनकर संत बहुत प्रसन्न हुए।


हर आदमी बदलना चाहता है। बदलने की आधी-अधूरी इच्छा सार्थक परिणाम नहीं लाती। असल में मन घिस-घिस कर पुराना पड़ जाता है, पूर्वाग्रह व स्वार्थ से जड़ बन जाता है और बुराइयों से टूट-टूट कर जीर्ण-शीर्ण हो जाता है। ऐसे बूढ़े मन को भी यौवन दिया जा सकता है, उसे भी संकल्प द्वारा बदला जा सकता है। रॉबर्ट ब्राउनिंग ने इसीलिए कहा है-‘जो स्थिति आपके दिमाग की है, वही आपकी खोज की है। आप जिस चीज की इच्छा करेंगे, वह पा लेंगे।’ लेकिन उसे पाने के लिए आपकी मानसिक तैयारी जरूरी है। 

यदि दिशा परिवर्तन नहीं होता तो कितने ही संकल्प लिए जाएं, कितनी ही साधना की जाए, आदमी वैसा का वैसा बना रहता है। दृष्टि बदलनी चाहिए, चिंतन और विचार बदलना चाहिए। जीवन का कार्यक्रम और आचार-संहिता बदलनी चाहिए। बुराई से अच्छाई की ओर प्रस्थान का अर्थ है- बदलने की प्रक्रिया, दिशा और स्वभाव का परिवर्तन। यह बदलाव नहीं होता, चाहे मंदिर की सीढ़ियां चढ़ लें, ध्यान कर लें, तपस्या कर लें- बदलाव का बिंदु पकड़ में नहीं आएगा। जोहान वॉन ने कहा था-‘जिस पल कोई व्यक्ति खुद को पूरी तरह समर्पित कर देता है, ईश्वर भी साथ चलता है।’


Jai Guru ji.

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