Thursday, February 5, 2015

क्षमा करने का अर्थ है स्वयं को प्रसन्न और रोगहीन बनाए रखना ...



हमारे मन में अक्सर किसी के प्रति कोई शिकायत, क्रोध, विद्वेष, ईर्ष्या या प्रतिकार का भाव पैदा हो जाता है। लेकिन इसका कोई सकारात्मक प्रभाव हम पर नहीं होता बल्कि हमें इन घातक मनोभावों की पीड़ा झेलनी पड़ती है। हां, किसी को क्षमा करके हम इन घातक विकारों की पीड़ा से मुक्त भी हो सकते हैं। क्षमा करने का अर्थ है- अपने मनोभावों में परिवर्तन। इसका स्वयं पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ता है। 

आज का सबसे घातक रोग है- तनाव। तनाव में रहने वाले व्यक्ति का इम्यून सिस्टम धीरे-धीरे कमजोर होकर उसे रोगी बना डालता है। लेकिन किसी को क्षमा करने का सीधा अर्थ है स्वयं को स्वस्थ और रोगहीन बनाए रखना। क्रोध, घृणा, वैमनस्य आदि मनोभावों के स्थान पर शांति, प्रेम, मित्रता, सहयोग आदि भावों का उदय होने से व्यक्ति निरर्थक तनाव और दुश्चिंताओं से बच जाता है। अनेक अध्ययन और वैज्ञानिक शोध इस बात की पुष्टि करते हैं कि जो व्यक्ति जितना अधिक क्षमाशील होता है, वह उतना ही स्वस्थ होता है। कभी कोई रोग हो भी जाए तो वह जल्द ही उससे मुक्त हो जाता है।

आज के जीवन में सुधार न होने का प्रमुख कारण है- क्षमा का अभाव। इसीलिए संबंध प्राय: सामान्य नहीं रह पाते। संबंधों में सुधार का अर्थ है- उपचार। यह उपचार क्षमा के माध्यम से किया जा सकता है। यह सामाजिक या आर्थिक समस्याओं में ही नहीं, मानसिक और भौतिक व्याधियों में भी उपयोगी रहता है। लेकिन इसके लिए हमें स्वयं को क्षमाशील बनाना होगा। जिस व्यक्ति ने क्षमा करना सीख लिया उसने अपनी अनेक व्याधियों पर नियंत्रण करना भी सीख लिया। अब प्रश्न उठता है कि क्या क्षमा कर देना ही महत्वपूर्ण है या फिर क्षमा मांगना भी आना चाहिए/ वास्तव में क्षमा करना और क्षमा मांगना, दोनों ही महत्त्वपूर्ण हैं। क्षमा मांगने का अर्थ है अपने मिथ्या अहंकार से मुक्त होना। जो व्यक्ति जितना अधिक अहंकारी होता है, वह क्षमा से उतना ही दूर होता जाता है। ऐसा व्यक्ति न तो खुद क्षमा मांग सकता है और न किसी दूसरे को क्षमा कर सकता है। क्षमा मांगने वाले और क्षमा करने वाले, दोनों के अहंकार का अंत निश्चित है। अहंकार स्वयं में एक मनुष्य की एक विकट व्याधि है। क्षमा द्वारा इससे मुक्त हो हम अपना जीवन सुखद बना सकते हैं।

यदि क्षमा नहीं कर सकते तो इसका अर्थ है- हम क्रोध, क्षोभ, अशांति, अस्वीकृति, प्रतिकार आदि नकारात्मक भावों का संचय और पोषण करते जा रहे हैं। ऐसे में हमारी सारी ऊर्जा इन्हीं के पोषण में लग जाती है। यह असंतुलन हमारी अनेक व्याधियों के लिए उत्तरदायी है। क्षमा द्वारा हम अपना यह असंतुलन समाप्त कर सकते हैं।

Jai Guruji

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