Tuesday, December 2, 2014

हम दूसरों की सफलता से विचलित क्यों हो जाते हैं ....










एक कुत्ता तेजी से दौड़ रहा था। रास्ते में खड़े एक किसान ने उससे पूछा- ‘तुम कहां जा रहे हो।’ कुत्ते ने जवाब दिया- ‘मैं अपने पाप धोने गंगा स्नान को जा रहा हूं।’ ‘तुम्हें गंगाजी तक पहुंचने में कितना समय लगेगा/’ किसान ने पूछा। कुत्ता बोला- ‘यह दूरी तो कुछ ही दिनों में तय की जा सकती है, लेकिन मुझे कई गुना ज्यादा समय लगेगा।’ किसान ने जिज्ञासा रखी- ‘ऐसा क्यों/’ कुत्ते ने कहा- ‘इसकी वजह मेरे मनुहारिए मामा लोग हैं जो गांव-गांव में मिलते हैं।’ बात किसान की समझ में नहीं आई। उसने पूछा- ‘क्या आपके इतने सारे मामा हैं कि गांव-गांव में मिलते हैं।’ कुत्ते ने कहा- ‘मामाओं से मतलब मेरी बिरादरी के कुत्ते हैं। वे जहां भी मिलते हैं, भरसक मुझे रोकने का प्रयास करते हैं। बहुत समय अपनी बिरादरी वालों को समझाने-बुझाने और लड़ने-झगड़ने में ही बीत जाता है। बड़ी मुश्किल से मैं फिर यात्रा के लिए आगे निकलता हूं।’ 

किसान समझ गया कि घर की लड़ाई की वजह से सफलता देरी से मिलती है। आज हम जीवन नहीं, मजबूरियां जी रहे हैं। जीवन की सार्थकता नहीं रही। अच्छे-बुरे, उपयोगी-अनुपयोगी का फर्क नहीं कर पा रहे हैं। मार्गदर्शक यानि नेता शब्द कितना पवित्र और अर्थपूर्ण था, पर नेता अभिनेता बन गया। नेतृत्व व्यवसायी बन गया। आज ‘नेता’ शब्द एक गाली है। जबकि नेता तो पिता का पर्याय था। उसे पिता का किरदार निभाना चाहिए था। पिता वही नहीं होता जो जन्म का हेतु बनता है बल्कि वह भी होता है, जो अनुशासन और विकास की राह दिखाता है। अब यह केवल तथाकथित नेताओं के बलबूते की बात नहीं रही कि वे गिरते मानवीय मूल्यों को थाम सकें, सामाजिक व राष्ट्रीय ढांचे को सुधार सकें। इसके लिए हर घर एक प्रयोगशाला बने और हर मां-बाप यह मानसिकता बनाएं कि अपनी संतान को सुसंस्कार दे सकें।

आज ईमानदारी को नहीं, कैसे भी प्राप्त सफलता को एकमात्र मानवीय गुण माना जाता है। एक बड़ा अवगुण यह विकसित हो रहा है कि हम अपनी असफलता से उतने विचलित नहीं होते, जितने दूसरे की सफलता से। इससे नैतिक प्रयासों के सामने प्रश्न चिन्ह खड़ा हो गया है। आज सहज मानवीय गुणों से नई पीढ़ी को परिचित कराने की आवश्यकता है। इसकी अगुवाई का दायित्व कठमुल्लाओं और व्यवसायी नेताओं को नहीं दिया जाना चाहिए। हम अच्छाइयों का स्वर्ग जमीन पर नहीं उतार सकते पर बुराइयों के खिलाफ संघर्ष तो कर ही सकते हैं।


Jai Guruji


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