Monday, August 25, 2014

अपराध के अनुसार सजा घर और बाहर सभी जगह जरूरी है ....


एक शिशु का जन्म घर में खुशियां भर देता है। सब उसकी देखभाल में, उसे हर खतरे से बचाने में लगे रहते हैं। पर कुछ बड़ा होते ही माता-पिता, परिवार, स्कूल, समाज सब उससे बड़ी बड़ी अपेक्षाएं करने लगते हैं। उसके चरित्र और व्यक्तित्व को बनाने में मुख्य रूप से वे ही सहायक या बाधक होते हैं। इन दिनों मीडिया में आने वाली खबरें अंदर तक कंपा देती हैं। छोटी सी बात पर झगड़ा होता है, किशोर अपने ही साथी की हत्या कर देते हैं। कोई अपनी मित्र को खुश करने के लिए लूटपाट करता है, तो बारह साल का बच्चा तेज रफ्तार से कार चलाते समय कुछ लोगों को कुचल कर फरार हो जाता है। खेलने-खाने की उम्र में जो बलात्कार करता है, उसे हम उसकी शैतानी नहीं मान सकते। ये सभी बातें समाज में पनपती एक सड़ी हुई मनोवृत्ति का संकेत देती हैं। बाल अपराधों की बढ़ती संख्या बताती है कि कहीं इस पीढ़ी को बड़ा करने में हमसे गलतियां हो रही हैं। बच्चा पैदाइशी बुरा नहीं होता। बड़े होते समय उसके चरित्र के विकास में कुछ आनुवंशिकता, बाकी पोषण, शिक्षा और वातावरण का असर होता है। आज जितना ध्यान अच्छे खाने-पीने और सजने-संवरने पर दिया जाता है, उतना शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर नहीं। स्वास्थ्य और ऊर्जा बढ़ाने के लिए व्यायाम जरूरी होता है। घरों में इसकी सुविधा मुश्किल हो सकती है पर स्कूलों में भी अब इसकी ओर उतना जोर नहीं रहा है। पढ़ाई के बाद बच्चे ज्यादा समय कंप्यूटर गेम्स या नये एप्स में लगा रहे हैं जहां से अच्छी के साथ बुरी जानकारी भी मिल रही है। खेल से उनमें फुर्ती आती है, लेकिन वे छोटी उम्र में ही रोगों के शिकार हो रहे हैं।

स्वामी विवेकानंद अपने भाषणों में शिक्षकों से छात्रों को संयम और ब्रह्मचर्य का महत्व सिखाने को कहते थे। आज की शिक्षा बच्चे को नैतिकता का पाठ नहीं पढ़ाती। न ही इस योग्य बनाती है कि वह ऊंची शिक्षा न पाकर भी अपने हस्त कौशल आदि के बूते पर अपने परिवार का सहारा बन सके। उसमें आत्मविश्वास पैदा हो। जब दिमाग व्यस्त रहेगा तो शरीर ही स्वस्थ नहीं होगा, खुराफात की तरफ भी ध्यान नहीं जाएगा। 

बचपन से ही अच्छे संस्कार देना और उस सर्वशक्तिमान के बारे में बताना बड़ों का कर्त्तव्य है। अपने से बड़ी ताकत में आस्था बुराई से डरना सिखाती है। इस सबके साथ कानून में भी उचित बदलाव आज जरूरी है। दया इंसान को मौकापरस्त और स्वार्थी बनाती है। अपराध के अनुसार सजा घर और बाहर सभी जगह जरूरी है। बार-बार एक से जघन्य अपराध करने के बावजूद कर्म से वयस्क और उम्र से छोटे अपराधी सिर्फ उम्र के कारण छूटने की उम्मीद में बड़े अपराधियों को मात दे रहे हैं।


Jai Guruji

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