Wednesday, July 30, 2014

जीवन के संघर्ष हमें मूल्यवान बनाने के ईश्वरीय उपकरण हैं ...


एक मंदिर का निर्माण हो रहा था। कुछ सुंदर, बड़े पत्थर मंगवाए गए और मूर्तिकार को सौंप दिए गए। उसने सबसे पहले एक पत्थर पर छेनी रख कर हथौड़ी मारी। पत्थर पहले ही प्रहार में टूट गया। उसने दूसरे और फिर तीसरे पत्थर को आजमाया। जो पत्थर बार-बार टूटे और ज्यादा छोटे टुकड़ों में बंट गए, वे फर्श पर लगा दिए गए। जो घिसनी का घर्षण सहन कर थोड़ा-बहुत आकार ग्रहण कर सके, वे दीवारों पर सजा दिए गए। एक पत्थर ऐसा था जो छेनी-हथौड़ी के प्रहार को चुपचाप सहता रहा, लेकिन अपने अस्तित्व को बनाए रहा। मूर्तिकार ने उसे कई तरह की छेनियों से तराशा और कई तरह की घिसनियों से घिसा। पत्थर सब कुछ सहता गया पर टूटा नहीं। मंदिर बन चुका था, अब देव प्रतिमा की स्थापना होनी थी। लेकिन पत्थरों को उनका सबसे सहनशील साथी कहीं नजर नहीं आ रहा था। तभी देव प्रतिमा के रूप में उसे लाया जाता देख, कुछ सुखद और कुछ ईर्ष्यायुक्त आश्चर्य से भर गए। उससे उसके सौभाग्य का कारण पूछने लगे। उत्तर में वह बड़े स्नेह से बोला-‘हम स्वयं अपने भाग्य के निर्माता, नियंत्रणकर्ता और स्वामी हैं। मैंने हर उपकरण की मार को सहकर अपने आपको टूटने से बचाया, इसीलिए मुझे ये सौभाग्य प्राप्त हुआ।’

समाज में हमारा क्या स्थान होगा, यह इस पर निर्भर करता है कि हम नियति के कितने प्रहारों को सहकर स्वयं को मानसिक और आत्मिक रूप से अक्षत बनाए रखने में सक्षम हैं। संघर्ष हमें कितनी चारित्रिक मजबूती देते हैं। यदि हम जीवन में आने वाली बाधाओं को खुद को तराशने वाला ईश्वरीय उपकरण मान लें तो अपने व्यक्तित्व को देव प्रतिमा के सामान पूज्य बना सकते हैं। यदि उन्हें अवसाद और क्षोभ का निमित्त बना लें तो फिर फर्श पर लगे पत्थरों की तरह नगण्य जीवन ही जी पाएंगे।

एडिसन, कोलंबस और रामानुजन जैसे विद्वानों की खोजें भी असफलता की सीढ़ी चढ़े बिना सफलता की छत तक नहीं पहुंची थीं। न ही गांधी, नेल्सन मंडेला और लिंकन जैसे सुधारकों के प्रयास पराजयों या अवमाननाओं से गुजरे बिना मंजिल तक पहुंच सके थे। दृढ संकल्प शक्ति ही वह गुण है जो किसी मनुष्य को विजेता बनाती है। इसीलिए कहा जाता है कि सत्संकल्पों की राह में आने वाले संघर्षों को तो आमंत्रित करना चाहिए क्योंकि वे हमें मूल्यवान बनाने के ईश्वरीय उपकरण हैं।

कहा गया है -‘सोना, सज्जन, साधु जन, टूटि जुरे सौ बार। दुर्जन कुंभ कुम्हार के, एकै धका दरार।’ अर्थात सोना मूल्यवान है क्योंकि वो टूट जाए तो उसे बार-बार जोड़ा जा सकता है, लेकिन कुम्हार के घड़े को साधारण माना जाता है क्योंकि वह एक ही झटके में टूट कर अनुपयोगी हो जाता है।


Jai Guruji

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