Monday, July 28, 2014

ईद की खुशियों के साथ सामाजिक सरोकार भी समझें ....


ईद के आते ही पूरा माहौल बदल जाता है। हर तरफ उत्साह की लहर दौड़ जाती है। जिसे देखो, वह ईद को यादगार बना लेना चाहता है। लेकिन यह जानना जरूरी है कि ईद का असल मकसद क्या है। ईद-उल-फितर, यानी एक महीने की इबादत और फर्ज को पूरा करने की खुशी। फितर या फितरा हर मुस्लिम को अपनी कमाई में से गरीबों और जरूरतमंदों को दिया जाने वाला हिस्सा। यानी ऐसी खुशी जो सब मिल कर मनाएं। इस्लाम में दो ही त्यौहार हैं- एक ईद उल फितर और दूसरा ईद उल अजहा। इन्हें छोटी ईद और बड़ी ईद भी कहा जाता है। 

ईद उल फितर खुशियां बांटने का पर्व तो है ही, इससे ज्यादा समाजिक एकता और भाईचारे का पर्व भी है। अपने पड़ोसियों के दुखों को बांटना और उनके साथ अपनी खुशियों को बढ़ाना ईद का एक अहम मकसद है। इसीलिए ईद की नमाज के बाद नमाजी कब्रिस्तान जाकर उन लोगों के लिए भी दुआ करते हैं जो समाज से बिछड़कर यहां रब की पनाह में आ गए हैं।

ईद उल फितर में मीठी सिवइयां और मीठे पकवानों का चलन है, इसलिए इसे मीठी ईद भी कहा जाता है। बड़े छोटों को ईदी देकर उनकी खुशियां बढ़ा देते हैं। अपनों को ही नहीं, ईदी उन जरूरतमदों को भी दी जाती है, जो उसके हकदार होते हैं। मजहब का कोई फर्क नहीं किया जाता। ईद खुशियां बांटने का त्यौहार है, इसलिए नमाजी एक रास्ते से नमाज के लिए जाते हैं और दूसरे रास्ते से वापस आते हैं। इसका यही मकसद है कि ज्यादा से ज्यादा लोगों सें मिल कर उनके जाती दुखों को भी समझने की कोशिश करते हुए, उनके दुखों में शरीक हो उन्हें सामाजिकता का एहसास कराया जाए। यही तरीका बड़े पैमाने पर दुनिया को एक डोर में बांधने का काम करता है।

इस्लाम कोई भी खुशी, अपने फर्ज और समाज के हक के बगैर पूरा नहीं मानता। ईद की खुशी से पहले जकात का हक जरूरी है। जकात पूरे साल में कमाई हुई दौलत में से ढाई फीसदी हिस्सा है। यह गरीबों, जरूरतमंदों और कमजोर लोगों को दिया जाता है। ताकि वे भी सभी के साथ मिलकर खुशियां मना सकें। 

ईद मन के मैल मिटाने का दिन भी है। दूसरों की गलतियों को माफ कर उन्हें गले लगाना और दिलों की दूरियां दूर करते हुए बेहतर माहौल बनाकर समाज की एकता और देश की तरक्की में भागीदार बनना ईद और इस्लाम के बुनियादी उसूलों में हैं। इन्हें आज का समाज अपने स्वार्थ के जाल में फंस कर भूलता जा रहा है। ईद की खुशियों के साथ सामाजिक सरोकारों को समझना भी जरूरी है। आइए, एक दूसरे के गले मिल कर ईद मुबारक कहते हुए यह अहद करें कि हम सबके दुख और खुशियां एक हैं।

Jai Guru Ji



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