Friday, July 25, 2014

सामूहिक शक्ति ...

कहा जाता है कि कलियुग में संघ ही शक्ति है। दूसरे शब्दों में कहें तो कलियुग में जीवों को मिलजुल कर एक साथ रहना चाहिए। इसकी वजह क्या है? क्यों ऐसा कहा गया है? कारण यही है कि मनुष्य का इतिहास कहता है कि सतयुग में जब धर्म का प्रकाश फैला था और मनुष्य ने धर्म को अपना लिया था उस वक्त मनुष्य का प्राण-धर्म क्या था? सतयुग में मनुष्य आत्मा-प्रधान था। आत्मा के कारण वह जीवित रहता था और आत्मा के लिए मरता था। शत्रु हो चाहे मित्र हो, आत्मिक साधना में भेदभाव नहीं था, वैमनस्य नहीं था। दुश्मन को भी लोग साधना करने का अवसर देते थे। यानी आत्मिक क्षेत्र में या आध्यात्मिक क्षेत्र में हर मनुष्य एक था।  इसके बाद त्रेता युग में क्या हुआ? उस युग में मनुष्य मन-प्रधान हो गया, आत्मा-प्रधान नहीं रहा, मन-प्रधान यानी अधोगति हुई तो भी एक दूसरे की मानसिक उन्नति के लिए, मानसिक शक्ति के लिए लोग आपस में मदद करते थे। उसमें शत्रु-मित्र का कोई भेदभाव नहीं था कोई यदि पंडित हो, ज्ञानी हो तो कोई उस पर हमला नहीं करता था, उन्हें दुख नहीं देता था। यह विचार था आत्मिक क्षेत्र में लक्ष्य एक रहने के कारण। संघ हो चाहे न हो, कोई असुविधा नहीं थी। त्रेतायुग में मनुष्य मन-प्रधान हो गया। तब मतभेद बढ़ने लगा और यह आप जानते ही हैं कि विद्वानों में आपसी मतभेद रहता ही है। इसलिए त्रेता से ही मनुष्य की अधोगति का सूत्रपात होता है। द्वापर युग हो गया शरीर-प्रधान यानी जो कुछ भी हो, मान लो दुश्मनी भी है तो जल्दी कोई किसी को मारता नहीं था। मन-प्रधान जीवन से शरीर प्रधान जीवन तुच्छ होता है। इसलिए द्वापर में और भी अधिक अवनति हुई। इसके बाद आया कलियुग। कलियुग में जीव है अन्न-प्रधान। शरीर और खाद्य वस्तुओं में क्या संबंध है? शरीर खाद्य वस्तु से आनंद लेता है। मनुष्य हो गया कमजोर, शरीर से साधना कर नहीं सकता था, क्योंकि अन्न पर अधिक निर्भरशील था। ‘कलियुग में संघ ही शक्ति है’ यह इसलिए कहा गया है कि यह जो अन्न का प्रश्न है, अन्नगत समस्या है, वस्त्रगत समस्या है, शिक्षागत समस्या है, चिकित्सा की समस्या है, निवास स्थान की समस्या है तो इन समस्याओं का समाधान अकेले होना मुश्किल है। इसलिए आप लोग मिलजुल कर सामूहिक रूप से समस्याओं का समाधान कर सकते हैं।

Jai Guruji

No comments: