इन दिनों अधिकतर लोग आपाधापी भरी जिंदगी में व्यस्त हैं। वे जीवन की
समस्याओं से परेशान हैं। इस स्थिति में वे पूरे जीवन एक क्षण भी आत्मावलोकन,
आत्मपरीक्षण और आत्मज्ञान के लिए समय नहीं निकाल पाते। जिंदगी की भागदौड़ में जीवन
की इहलीला समाप्त हो जाती है, परंतु मनुष्य कभी भी कुछ आधारभूत प्रश्नों पर विचार
नहीं कर पाता। व्यक्ति का पूरा जीवन असंतुलन का पर्याय बनकर रह जाता है। पूजा
व्यक्ति की व्यस्त-जीवन-शैली में से कुछ क्षण निकालकर मन को शांत व संतुलित करने का
अवसर प्रदान करती है। व्यस्तता के बीच व्यक्ति कुछ क्षणों के लिए आत्मावलोकन कर
सके, उसे वास्तविक संतुष्टि का आभास हो सके, इसके लिए पूजा एक साधन है। पूजा
चिंतन-मनन की भावभूमि तैयार करती है।
पूजा उस उद्विग्नता से मुक्ति का एक सरलतम
उपाय है। पूजा से व्यक्ति कुछ क्षणों के लिए स्व या आत्म तत्व में स्थिर होने का
प्रयास है। इस प्रयास में मनुष्य की आंतरिक व्यथा और कष्ट के निवारण में सहायता
मिलती है और व्यक्ति सुख और शांति का अनुभव करता है। पूजा करते समय किसी ज्ञात और
अज्ञात शक्ति के अनुभव से एक अभिभावकत्व का बोध होता है। यह ज्ञात होने पर कि कोई
अभिभावक की भूमिका में हमारा पालन-पोषण कर रहा है, इस अहसास से एक प्रकार की
सुरक्षा का बोध होता है। 1 जब व्यक्ति स्वयं को सुरक्षित अनुभव करता है, तब उसे
मानसिक शांति मिलती है। मानसिक शांति मानव शरीर के विभिन्न रोगों से रक्षा करती है।
पूजा से व्यक्ति को जो मानसिक संबल प्राप्त होता है वह उसकी जिजीविषा शक्ति व उसके
जीवन में प्रसन्नता का कार्य करता है। व्यक्ति सुरक्षित अनुभव करने में प्रसन्न
रहता है। यह प्रसन्नता अपने आसपास सकारात्मक ऊर्जा का सृजन करती है, जिससे एक
सकारात्मक वातावरण बनता है और उसका पूरे समाज पर प्रभाव पड़ता है। जीवन में अनेक
बार व्यक्ति स्वयं को एकाकी अनुभव करता है। एकाकी अनुभव करने पर मन में दीन-हीन
होने का भाव छाने लगता है। यह भाव मन में कौंधते ही ऊर्जा नकारात्मक हो जाती है और
व्यक्ति हीन बनकर कुंठाग्रस्त हो जाता है। पूजा करने से व्यक्ति इस अवसाद और
दैन्यभाव से बचा रह सकता है। शताब्दियों से पूजा अपराधबोध से मुक्ति और प्रायश्चित
का सबसे सरल साधन है।
Jai Guruji
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